खतरा: होम आइसोलेशन और गलत इलाज से देश में बढ़ रहे फंगस के मामले
नई दिल्ली. कोरोना की दूसरी लहर (Corona Second Wave) में संक्रमित हुए मरीजों में फंगस (Fungus) का खतरा तेजी से फैल रहा है. ब्लैक और व्हाइट फंगस क्यों तेजी से फैल रहा है इसका तो अभी तक पता नहीं चल सका है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है को कम करने के लिए दी जाने वाली दवाएं (Medicine) ही इसके फैलने का बड़ा कारण हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक अस्पतालों में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों को अधिक स्टेरॉयड दिए जाने से फंगस का खतरा बढ़ गया है. वहीं ऐसा भी अनुमान है कि घरों में ऑक्सीजन लीक होने या फिर पुराने सिलेंडर की वजह से भी ब्लैक फंगस तेजी से फैल रहा है.
कई मामलों में ऐसा भी देखने को मिला है जिसमें गलत चिकित्सा या फिर व्हाट्सएप के जरिए प्रिस्क्रिप्शन लेने के बाद जैसे मामले सामने आए हैं. जोधपुर स्थित एम्स के डॉ. अमित गोयल का कहना है कि उनके यहां फंगस के 10 में से आठ मरीज ऐसे हैं जिन्होंने ओपीडी आधारित स्टेरायॅड दवाओं का सेवन किया था. यानी इन मरीजों को किसी ने फोन पर सलाह दे दी और उन्होंने एजिथोमाइसनि, मेड्रोल, विटामिन सी, जिंकोविट जैसी प्रचलित दवाओं का सेवन करना शुरू कर दिया.
इन दवाओं का सेवन तो कोरोना के दौरान होना था लेकिन मरीज के हिसाब से उसे देने की बात किसी ने भी नहीं बताई. किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई कि स्टेरॉयड दवाएं लेने के बाद दिन में दो बार मधुमेह की जांच आवश्यक है. बता दें कि एम्स जोधपुर में फंगस रोगियों की मृत्युदर 50 फीसदी तक दर्ज की जा चुकी है. वहीं दूसरी तरफ नई दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के पूर्व निदेशक डॉ. एनएन माथुर का कहना है कि उनके यहां 100 में से 60 फंगस के रोगियों की उम्र 30 से 35 साल के बीच की है. इन रोगियों में मधुमेह अनियंत्रित पाया गया है.
इन युवाओं में फंगस इसलिए भी बढ़ा क्योंकि होम आइसोलेशन में रहते हुए इन्होंने पैनिक होकर इंटरनेट, व्हाट्सएप के आधार पर दवाओं का सेवन किया. डॉ. माथुर ने बताया कि उनके यहां फंगस से मृत्युदर 45 फीसदी के आसपास है जबकि कोरोना से होने वाली मौत 44 फीसदी से अधिक है. डॉक्टरों के मुताबिक जिन मरीजों को अस्पताल में जगह नहीं मिली और उन्होंने घर पर ही अपना इलाज किया उनके केस ज्यादा बिगड़े हैं.