अजां देने या शंख फूकने का मतलब धर्म नहीं है : विद्यार्थी
आज से नौ दशक पहले सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसे कानपुर को अमन चैन का संदेश देने गली गली घूम रहे गणेश शंकर विद्यार्थी हिंसक भीड़ की क्रूरता की भेंट चढ़ गये थे लेकिन उनके वे शब्द सदियों तक प्रेरणा का श्रोत बने रहेंगे कि अज़ां देने, शंख बजाने का मतलब धर्म-मजहब नहीं है। दूसरों की आज़ादी को रौंदने और उत्पात मचाने वाले लोगों की तुलना में, वे ला-मज़हब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊँचे दर्जे के हैं, जिनका आचरण अच्छा है।
कानपुर में भड़के साम्प्रदायिक दंगे को शांत करने के लिए वे गली-गली घूम रहे थे। इसी क्रम में 25 मार्च 1931 को दंगाइयों की भीड़ ने उनकी हत्या कर दी थी। हत्या के बाद महात्मा गांधी ने प्रताप के संयुक्त संपादक को तार भेजा था जिसमें लिखा था “ कलेजा फट रहा है तो भी गणेश शंकर की इतनी शानदार मृत्यु के लिए शोक संदेश नहीं दूंगा। उनका परिवार शोक-संदेश का नहीं बधाई का पात्र है। इसकी मिसाल अनुकरणीय सिद्ध हो।”
अमरोहा में मंडी धनौरा सघन क्षेत्र के प्रांगण में आयोजित हिंदी पत्रकारिता के पितामह गणेश शंकर विद्यार्थी की स्मृति में शहादत दिवस के अवसर पर व्याख्यान माला में पत्रकार, साहित्यकार तथा विद्वतजनों ने उनका भावपूर्ण स्मरण किया और उनके चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर पुष्प अर्पित किए गए।
वरिष्ठ पत्रकार डा.संतोष गुप्ता ने कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने अखबार ‘प्रताप’ के पहले अंक में पत्रकारिता की अवधारणा प्रस्तुत की थी, जो आज भी मौजूद है। इसे पत्रकारिता का घोषणा पत्र कहा जाता है।
उन्होंने लिखा था “ समस्त मानव जाति का कल्याण करना हमारा परमोद्देश्य है। हम अपने देश और समाज की सेवा का भार अपने ऊपर लेते हैं। हम अपने भाइयों और बहनों को उनके कर्तव्य और अधिकार समझाने का यथाशक्ति प्रयत्न करेंगे। राजा और प्रजा में, एक जाति और दूसरी जाति में , एक संस्था और दूसरी संस्था में बैर और विरोध, अशांति और असंतोष न होने देना हम अपना परम कर्तव्य समझेंगे।” प्रताप का पहला अंक 9 नवंबर 1913 को प्रकाशित हुआ था।
वरिष्ठ पत्रकार डा.मुस्तकीम ने पत्रकारिता के मौजूदा हालात पर अपने संबोधन में कहा कि…कहाँ तो तय था चिरागाँ हर घर के लिए कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।”
उन्होने कहा कि आज पत्रकारिता अब तक के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। ऐसा इसलिए ठीक है कि जब मूल्यहीनता सबसे नीचे की सीढी या सबसे पहले की पीढी तक आ जाती है तब उसे बदल पाना सामान्य नहीं होता। पत्रकारों की पहली सीढी या पीढी जिले और तहसील के पत्रकार हैं। पत्रकारों के सवालों से बचने की प्रवृत्ति के चलते सत्ता पक्ष और विपक्ष अब एकतरफ़ा संवाद करने लगे हैं। सरकार पत्रकारों और पत्रकारिता का वर्गीकरण नहीं कर पा रही है, इसलिए ‘सब ढाम सत्ताईस सेर’ कहावत चरितार्थ हो रही है।
वरिष्ठ पत्रकार महिपाल सिंह ने कहा कि दिल्ली के पत्रकार एवं प्रबंधक वर्ग को संभवतः यह पता नहीं होगा कि जिस मूल्यधारा को उन्होंने समय सापेक्ष मानकर अपने काम और जीवन में स्वीकार कर लिया है वह नीचे तक पहुंचकर पत्रकारिता को पूरी मूल्यधारा को परिवर्तित कर चुकी है। मीडिया आजादी के बाद से आजतक लोगों के लिए जानकारियां और विचार देने का मंच बना हुआ है। यह सभी लोग जानते हैं कि सत्ता के लोग अपनी हर बात और कदम को विकास बताते हैं,जबकि विरोधी पक्ष उसके ही कदम और विचार का विरोध करता आ रहा है।
उन्होने कहा कि किसी ने भी लोकतंत्र के संबंध में लोगों को शिक्षित-प्रशिक्षित नहीं किया। यह कहा जा सकता है कि मीडिया की ऐसी कोई प्राथमिक या आवश्यक जिम्मेदारी नहीं है कि वह लोगों को लोकतंत्र की शिक्षा दे पर जब वह शासन के समाचार देता है, लोगों को भागेदारी के लिए प्रेरित करता है, सत्ता के मूल्यांकन के लिए लोगों से कहता है या सत्ता के पुनः गठन के लिये मतदान करने का आह्वान करता है, तब यह उसकी जवाबदारी तो होती ही है कि उसके कथन को, अर्थ को समझ लें और समझकर अपनी भूमिका तय करें।
डा.यतीन्द्र विद्यालंकार ने इस अवसर पर कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया की जिम्मेदारी सरकार और नागरिकों के बीच संवाद को संभव करना है। इस प्रक्रिया में सरकारी कामकाज के गुण-दोष को जाहिर करना होता है।जर्नलिज्म किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है ये संस्थान का काम है। प्रिंट मीडिया का आज भी दमदार वजूद है, जो भारत जैसे देश में लगातार बढता रहेगा। चाहे प्रिंट हो या टीवी, रेडियो हो या वेब जर्नलिज्म हर माध्यम दूसरे माध्यम के लिए कांपलिमेंटरी है न कि काम्पटेटिव क्योंकि कोई एक माध्यम पाठक या दर्शक के लिए पूर्ण नहीं होता है।
फेक न्यूज पर चिंता जताते हुए कहा कि ये सबसे बड़ी चुनौती है, मीडिया को इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है,क्योंकि मीडिया की पूंजी उसकी विश्वसनीयता है और फेक न्यूज क्रेडिबिलिटी पर चोट लगा रही है।इसलिए अब स्पीड न्यूज की जगह सही न्यूज पर फोकस करना ज्यादा जरूरी है।
गोष्ठी में आह्वान किया गया कि गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत को ध्यान में रख पत्रकार आत्मावलोकन करें और जनता का साथ दें। किसी भी वैचारिक आंदोलन को व्यापकता देने में जनसरोकारी पत्रकारिता का सर्वाधिक योगदान रहा है, इसलिए पत्रकारों की महती जिम्मेदारी है कि पत्रकारिता में गणेश शंकर विद्यार्थी की अवधारणा फलीभूत हो सके।इस अवसर पर टाईम्स नाऊ के राकेश कुमार सिंह,दैनिक आर्यवर्त केसरी के संपादक डा.अशोक रुस्तगी,डा.बीना रुस्तगी,वरिष्ठ पत्रकार सरदार गुरमुख सिंह चाहल, गजेंद्र सिंह एडवोकेट, हाजी अब्दुल सलाम आदि उपस्थित रहे।