26वें महन्थ के कार्यकाल में बढ़ती गई सिद्धपीठ की ख्याति

 

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरा करीब 700 साल पुरानी है तथा यह देश की प्रसिद्ध सिद्धपीठों में शुमार है। मठ की शाखाएं देश के कोने-कोने में फैली हुई है जिसके लाखों शिष्य हैं।
महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनन्दन यति 26वें पीठाधीश्वर के रूप में सिद्धपीठ हथियाराम की गद्दी पर फाल्गुन शुक्ल पंचमी तद्नुसार 23 फरवरी 1996 को सिद्धपीठ के 25 वें पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति महाराज द्वारा चयनित किये गए। जिन्हें बाद जूना अखाड़े द्वारा महामण्डलेश्वर की उपाधि प्रदान की गई।
श्री यति जी का जन्म देवभूमि उत्तराखंड में हुआ था किंतु पूर्व आश्रम में आपने वेद और व्याकरण की शिक्षा गुरुकुल पद्धति से काशी में रहकर प्राप्त की। जहां अध्ययन कॉल में अपने विद्वता के दम पर व्याकरणाचार्य की उपाधि से विभूषित किये गए। अपने चरित्र अनुसाशन व कर्तव्यनिष्ठ दिनचर्या के चलते आपको क्षात्र जीवन से हथियाराम मठ के तत्कालीन महन्थ व जूना अखाड़े के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी का सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
श्री यति जी महाराज सनातन धर्म की ध्वजा लेकर धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा देश के कोने कोने में भटके हुए लोगों को मानवता की राह दिखाते रहे। इस क्रम में उन्होंने सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर पद की बागडोर संभालने के साथ ही लगातार 12 वर्षों तक द्वादश ज्योतिर्लिंगों पर चातुर्मास व्रत का अनुष्ठान करते हुए निरंतर धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही सामाजिक कार्य, धर्म प्रचार, राष्ट्र धर्म पालन का कार्य करते रहे। खास बात यह रही कि द्वादश ज्योतिर्लिंग ऊपर चातुर्मास के दौरान नागेश्वर ज्योतिर्लिंग पर प्याऊ की स्थापना के साथ ही नागेश्वर के ही लुडाई माता मंदिर में धर्मशाला निर्माण, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थल पर धर्मशाला निर्माण, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग आश्रम मार्ग का निर्माण, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तीर्थ स्थल पर शंकराचार्य आश्रम में भोजन कक्ष निर्माण के साथ ही ओमकारेश्वर, केदारनाथ, बैद्यनाथ धाम, महाकालेश्वर, सोमनाथ, बाबा विश्वनाथ, मल्लिकार्जुन, घृष्णेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग के साथ ही परली वैधनाथ, पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल में चतुर्मास महायज्ञ के साथ ही तमाम धार्मिक अनुष्ठान व सामाजिक लोककल्याण की गतिविधियों में अग्रणी भूमिका में रहे। प्रायः सभी ज्योतिर्लिंगों पर इनके द्वारा रचनात्मक कार्य किए गए। इसके साथ ही काशी के प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर “गंगोत्री सेवा समिति” की स्थापना कर गंगा आरती की शुरुआत कराने वाले श्री यति जी महाराज इस समिति के संस्थापक संरक्षक बने।
सिद्धपीठ की कठिन आचार संहिता के तहत निरंतर 12 वर्ष फलाहार व्रत का पालन, चातुर्मास महायज्ञ, शारदीय व वासन्तिक नवरात्रि, महाशिवरात्रि पूजन, रामहित धर्म यात्रा के साथ ही सामाजिक गतिविधियों में अग्रणी भूमिका के चलते इन्हें प्रयागराज में अर्धकुंभ के दौरान प्राचीन सरस्वती घाट पर 4 जनवरी 2007 को जूना अखाड़े द्वारा महामंडलेश्वर चुना गया। सामाजिक व लोक कल्याण की गतिविधियों में श्री यति जी की भागीदारी का सहज अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनके पीठाधीश्वर बनने के प्रारंभ काल में पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों में लगभग सैकड़ों विद्यालयों की आधारशिला में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जहां लगे शिलापट्ट आज भी इनके सामाजिक दायित्व पूर्ण कार्य के प्रमाण देते नजर आते हैं।
इन 25 वर्ष के कार्यकाल में तमाम धार्मिक व सामाजिक कार्यों व सिद्धपीठ के अधिष्ठात्री देवी वृद्धाम्बिका देवी “बुढ़िया माई”, सिद्धेश्वर महादेव व लक्ष्मी नारायण भगवान के आशीर्वाद से सिद्धपीठ का उत्तरोत्तर विकास होता नजर आया है।
महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज पर 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए काफी दबाव बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश नेतृत्व चाहता था कि श्री यति जी गाजीपुर लोकसभा से चुनाव लड़े। ऐसे में इस कार्य के लिए उन्हें राजी करने के निमित्त राजनैतिक सामाजिक क्षेत्र के दिग्गजों के साथ ही भाजपा के अनुषांगिक संगठनों से जुड़े संत महात्माओं द्वारा भी काफी प्रयास किए गए। लेकिन बड़ी अडिगता के साथ श्री भवानीनंदन यति जी महाराज ने कहाकि राजनीति हमारा धर्म नहीं है। सिद्धपीठ हमें वैदिक सनातन धर्म के पालन का संदेश देता है जिसका निर्वहन करना ही हमारा दायित्व है।

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