टिकैत के बढ़ते कद से योगी असहज! आंदोलन की लहलहाते फसल पर किसकी है नजर?
गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान नेता राकेश टिकैत का बढ़ता कद अगर किसी के लिये खतरे की घंटी है तो वो उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के लिये है। कारण अगले साल ही उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने है जहां योगी को सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा। अगर योगी कुर्सी बचा ली तो कद बढ़ेगा लेकिन हारे तो ‘हारे को हरिनाम’ वाली स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता। दरअसल यूपी में अप्रैल में पंचायत चुनाव होने है। उसके ठीक एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में राकेश टिकैत का यह आंदोलन अक्टूबर तक चलने की बात बार- बार दोहराना कहीं विधानसभा पर तो असर नहीं डालेगा? आज यह सवाल सबके महत्वपूर्ण है।
आंदोलन लंबा खीचें जाने के हैं मायने
बता दें कि राकेश टिकैत के आंदोलन लंबे खींचने से सबसे ज्यादा बैचेन अगर कोई दल है तो वो बीजेपी ही है। तो दूसरी तरफ विरोधी दल एक सुर में टिकैत को बिन मांगे समर्थन और ताली बजाते हुए मोदी-योगी की किरकिरी होते देख मंद-मंद मुस्करा भी रहे है। इन विरोधी दलों को यह महसूस हुआ है कि जो काम सभी विपक्षी दलों के एकजुटता से गत 7 सालों से मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा नहीं कर पाया,वो चंद महीने के आंदोलन ने कर दिया है।
अगले साल होने हैं यूपी में विधानसभा चुनाव
बीजेपी की मुश्किलें तब और बढ़ गई जब यह किसान आंदोलन पंजाब,हरियाणा से शुरु होकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक फैल गया। यह वहीं पश्चिमी उत्तरप्रदेश है जहां से 44 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचते है। जिसमें 20 से 22 सीटों पर जाटों की निर्णायक भूमिक रहती है। पिछले दो लोकसभा चुनाव और गत विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बल्ले-बल्ले तब हो गई जब कभी कांग्रेस,रालोद,समाजवादी दलों के गढ़ ध्वस्त हो गए। बीजेपी की जीत इतनी बड़ी हुई कि इसमें अजित सिंह,जयंत चौधरी और राकेश टिकैत भी अपना किला सुरक्षित नहीं बचा सके। लेकिन बदले हुए हालात में राकेश टिकैत को मिलता जनसमर्थन बीजेपी के लिये कहीं न कहीं सिरदर्दी पैदा करती है। जिसकी काट फिलहाल बीजेपी खोज नहीं पा रही है।
टिकैत को समर्थन देने के लिये मची होड़
अब देखना होगा कि किसान आंदोलन से भरे लहलहाते फसल को कौन-सा दल काटने के लिये आगे आती है? कहीं बीजेपी ही तो नहीं राकेश टिकैत को आंदोलन का एकमात्र और बड़ा चेहरा बनाकर सही समय पर इस्तेमाल करने की तैयारी में है? यह भी बहुत बड़ा सवाल है जिसकी चर्चा कभी हम विस्तार से करेंगे। तो वहीं जिस तरह से विपक्ष टिकैत बंधुओं के पीछे लामबंद है उसका फायदा उठा पायेगी-यह सवाल भी संदेह में ही है। कम से कम इतिहास तो गवाह है कि आंदोलन का फायदा उठाने में विपक्षी दल हमेशा से मौका गंवाते रहे तो दूसरी तरफ बीजेपी फेंके गए पत्थर से ही रास्ता बनाने में महारत हासिल की हुई है।