किसान आंदोलन को रोकने की भाजपा ने किया ये काम, जनता हुई हैरान

आज- कल किसान आंदोलन की चर्चा चारों तरफ है। हो भी क्यों न जब एक आंदोलन से दिल्ली में केंद्र की सत्ता पर काबिज मोदी सरकार की भले ही कुर्सी नहीं हिली हो लेकिन नाकों चने चबा ही दिये है। हम बात कर रहे है दिल्ली की दहलीज और मोदी सरकार के ठीक नाक के ही नीचे पिछले 2 महीनें से अधिक समय से आंदोलन पर बैठे किसान दो-दो हाथ करने के लिये तैयार है।

दिल्ली की हुई किलाबंदी 

हालांकि मोदी सरकार की भी तैयारी पूरी पुख्ता है। मसलन दिल्ली के सिंधु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर सड़कों को खोद दिया गया, बड़ी-बड़ी कीलें ठोंक दी गई, सीमेंट के बैरिकेड लगा दिये गए है। दरअसल मोदी सरकार की तैयारी को देखकर लगता है कि दिल्ली की किलाबंदी करके अब किसानों को 26 जनवरी वाली घटना दोहराने नहीं देंगे। कारण दिल्ली की सड़कों को जिस तरह से बैरिकेड किये गए है उससे लगता है कि बहुत बड़े हमले की इंटिलेंस इनपुट थी। जिसे दिल्ली पुलिस हर हाल में फेल करने पर आमदा है। यह बात अलग है कि 26 जनवरी से पहले ऐसी इनपुट सवालों के घेरे में है। हालांकि सरकार की ऐसी तैयारी देखकर आमजन भी आश्चर्य में भी डूबे है। खैर यह तैयारी और सोच तो मोदी सरकार की है।

Narendra Modi

किसान अपनी मांग पर अड़े

उधर किसान लगातार उग्र होते जा रहे है। हर हाल में नए कृषि कानून को वापस की मांग से एक इंच भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। जिससे सरकार भारी पशोपेश में है। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने एक कॉल दूर बताकर किसानों से ज्यादा देश को भरोसा दिया कि वे आंदोलन को खत्म करने के लिये तैयार है। वैसे पीएम के इस ऑफर को किसानों को मान- मनौव्वल से ज्यादा पुचकारने और सरकार का फेस सेविंग ही प्रतीत होता है। इसलिये बातचीत की मेज पर किसानों को निराशा ही हाथ लगी है। वैसे इसमें दो राय नहीं है कि सरकार ने एक कदम पीछे हटने को राजी भी हुई लेकिन किसान नेताओं ने सरकार के ऑफर पर बेरुखी ही दिखाई। जिससे एक बार फिर बातचीत से समाधान के रास्ते ठंडे बस्ते में चला गया।

गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड का आयोजन

उधर जब 11 वें दौर की बैठक के बाद किसान नहीं मानें तो गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टर परेड निकालकर आंदोलन को ही धूमिल कर दिया। जिसके बाद पहली बार आंदोलन पटरी से उतरता हुआ नजर आया। हालांकि पासा तब पलट गया जब गाजीपुर बॉर्डर से राकेश टिकैत को हटाने के लिये भारी-भरकम पुलिस बल पहुंची जरुर लेकिन किसान नेता के आंसू ने सब पर पानी फेर दिया।

Farmers Protests

शह- मात का खेल है जारी

सरकार और किसान नेताओं के बीच शह-मात जारी है। जिससे एक बार फिर फिर मोदी-शाह किसान ही नहीं विपक्षी दलों के नेताओं के निशाने पर आ चुके है। कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि दम तोड़ चुकी किसान आंदोलन को फिर से जिंदा करके मोदी सरकार अब क्या हासिल करना चाहती है? रातोंरात राकेश टिकैत किसानों के न सिर्फ मसीहा बन गए बल्कि गाजीपुर बॉर्डर नए राजनीतिक पर्यटन केंद्र के तौर पर हॉटस्पॉट बन चुका है।

महापंचायत में उमड़ी भारी भीड़

वहीं राकेश टिकैत के गांव में महापंचायत में उमड़ी भीड़ को देखकर विरोधी दलों के नेता भी गदगद है। पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लगभग सभी जिलें में किसान महापंचायत का आयोजन करके टिकैत का समर्थन करने का फैसला लिया गया है। जिससे बीजेपी को गहरा धक्का लगा है। दूसरी तरफ इन महापंचायतों में लगातार जयंत चौधरी ही नहीं दिल्ली से भी नेता उड़ान भर रहे है। जो दर्शाता है कि किसान आंदोलन की ताप पर रोटी सेकने के लिये सभी दल कितने आतुर है।

Rakesh Tiket

जयंत चौधरी समेत सभी नेताओं ने की परिक्रमा

वैसे इसमें दो राय नहीं है कि महापंचायत में अजित सिंह के पक्ष में गोलबंदी करके संकेत भी दिया गया कि आने वाले दिनों में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी तो रालोद फिर से राजनीतिक जमीन तैयार करने में कामयाब होगी। इसलिये जयंत चौधरी का बीजेपी को किसान विरोधी और जाट विरोधी बताकर गोलबंदी को अपने पार्टी के पक्ष में करते हुए देखा जा सकता है। लेकिन इतना तो तय है कि यदि आंदोलन सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच फुटबॉल बनकर रह गया तो किसानों का भला होने से रहा।आंदोलन से जुड़े नेताओं को भी समझना होगा कि वे सरकार से बातचीत में लचीला रुख अपनाकर ज्यादा से ज्यादा किसानों के हितों पर चर्चा केंद्रित करें ना कि विपक्षी दलों के लिये महज एक मुद्दा बनकर शोकेस में सजावट के लिये दीवारों पर टंगे रहे।

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