इकबाल अंसारी भी देंगे श्रीराम मंदिर निर्माण में चंदा, कहा धार्मिक विद्वेष खत्म हो
अयोध्या में रामलला के मंदिर निर्माण के लिए देशभर में निधिसंग्रह का कार्य चल रहा है।राम मंदिर का निर्माण वस्तुत: राष्ट्र मंदिर का निर्माण है। मो. इकबाल के रुख से यह सच्चाई बखूबी परिभाषित हो रही है।
इकबाल के पिता हाशिम अंसारी बाबरी मस्जिद की दावेदारी के पर्याय रहे हैं। इकबाल भी अदालत में मस्जिद के पक्षकार रह चुके हैं।
हालांकि नौ नवंबर 2019 को सुप्रीमकोर्ट का फैसला आने के साथ वे विवाद को पीछे छोड़ सद्भाव की इबारत लिख रहे हैं।
इसी क्रम में उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान की शुरुआत के मौके पर मंदिर निर्माण के लिए चंदा देने की घोषणा की। कहा, लोग धार्मिक विवाद में न उलझें।
विवाद खत्म हो चुका है और अब श्रीराम का मंदिर बन रहा है, इस मंदिर के निर्माण में सबका सहयोग होना चाहिए।
चंदा देने से एक-दूसरे की मुसीबत कम होती है और पुण्य मिलता है। यह पहला मौका नहीं है, जब इकबाल सौहार्द के दूत में रूप में आगे आये हैं। सौहार्द इकबाल के डीएनए में है।
उनके वालिद हाशिम अंसारी भी आपसी सहमति से मंदिर-मस्जिद विवाद खत्म करने के हामी रहे। सितंबर 2010 में हाईकोर्ट का फैसला आने के पूर्व ही वे इस दिशा में सक्रिय हुए।
वे यह कहने वाले पहले प्रमुख मुस्लिम नेता थे कि फैसला जो भी आये, वह स्वीकार्य होगा। उन्होंने यह कह कर भी सद्भाव की खुशबू बिखेरी कि रामलला का टेंट के मंदिर में रहना उनके लिए असह्य है और इस मसले का जल्दी से जल्दी निपटारा होना चाहिए। यह स्वप्न लेकर हाशिम 20 जुलाई 2016 को चिरनिद्रा में लीन हो गये, पर अपने पीछे आपसी सहमति की प्रबल विरासत छोड़ गये।
उनके न रहने पर उनके पुत्र इकबाल अंसारी ने बाबरी मस्जिद की पैरोकारी तो स्वीकार की, पर वे कभी हार्ड लाइनर नहीं रहे। वालिद का वास्ता देकर इकबाल बराबर आपसी सहमति से मंदिर निर्माण की वकालत करते रहे।
रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने भी उनकी भावनाओं का आदर किया और गत वर्ष पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन समारोह में देश के जिन चुनिंदा दो सौ लोगों को आमंत्रित किया गया, उनमें से एक इकबाल अंसारी भी थे।
श्रीराम की विरासत के अनुरूप मानवीय एकता के लिए प्रयासरत तिवारी मंदिर के महंत गिरीशपति त्रिपाठी के अनुसार अपने रुख से इकबाल स्वयं के साथ रामनगरी को भी गौरवांवित कर रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि रामनगरी संकीर्णता से ऊपर उच्चतर मनुष्यता की हामी रही है।