किसानों को तारीख पर तारीख मिलने के आखिर क्या हैं मायने! कितने सहज है नरेंद्र मोदी?
नई दिल्ली : दिल्ली (Delhi) की दहलीज पर पिछले 11 दिन से जमीं किसानों ने मोदी सरकार के लिये खासी मुश्किलें पैदा कर दी है। निश्चित रुप से अगर इस आंदोलन की तुलना 2011 के अन्ना आंदोलन से करें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जब केंद्र पर काबिज मनमोहन सरकार की चुल्हे गांधीवादी नेता अन्ना हजारे और उनकी टीम ने हिला दी थी।उसके बाद ही अरविंद केजरीवाल के तौर पर दिल्ली को एक नया नेता मिला। उन्होंने आम आदमी पार्टी बनाकर दिल्ली की राजनीति ही बदल दी। तो सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार के लिये भी किसान आंदोलन बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है? साथ ही सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और मोदी सरकार के लिये किसान आंदोलन क्या खतरे की घंटी तो नहीं है?
पिछले 6 सालों में विरोध के स्वर इतने मुखर नहीं हुए
इन सारे पहलुओं पर चर्चा करने से पहले विगत 6 सालों के विरोध पर नजर दोड़ाए तो नरेंद्र मोदी के तख्त और रात की नींद उड़ाने वाला सभी तरह के आंदोलन आंशिक ही दमदार रहा। किसान आंदोलन के अलावा दूसरे विरोध जो केंद्र सरकार को झेलने पड़े उसकी चर्चा की जाए तो हाल-फिलहाल में CAA और NRC का विरोध भी था। इन सबके बीच खूब सुर्खियां जरुर दिल्ली की बेनाम कॉलोनी शाहीन बाग ने उठाया।
पीएम मोदी, शाह भी हुए विचलित
लेकिन शाहीन बाग का विरोध हो या देश भर में सीएए के खिलाफ दूसरा विरोध केंद्र सरकार के लिये कभी परेशानी का सबब नहीं बना। तो फिर किसान आंदोलन मोदी सरकार के लिये आखिर क्या परेशानी पैदा कर दी? जिससे पीएम नरेंद्र मोदी,गृह मंत्री अमित शाह बैचेन हो उठे है। जबकि यह तय है कि नरेंद्र मोदी की सत्ता को दूर-दूर तक खतरा नहीं है। क्या यह विपक्ष की मोदी सरकार पर आभासी जीत है? क्या यहां से भारतीय राजनीति करवटें बदलनी शुरु कर देगी? अगर एनडीए सरकार ने जल्द ही किसान आंदोलन को खत्म नहीं किया तो… किया होगा। यह सवाल आज जरुर सबको भीतर से झकझोर दिया है।
विरोध के बाद मोदी हमेशा हुए सशक्त और मजबूत
अगर हम अतीत पर नजर दोड़ाए तो 2014 के बाद देश ने बड़े बदलाव को देखा है। जब नरेंद्र मोदी के तौर पर देश को नया, सशक्त और मजबूत नेतृत्व मिला। जिसकी धमक देश ही नहीं दुनिया के अनेक देशों ने महसूस किया। यह कहना गलत नहीं होगा जैसे-जैसे समय बीतत गया वैसे-वैसे नरेंद्र मोदी का नेतृत्व निखरता गया। हालांकि तमाम राजनीतिक पंडितों के भविष्यवाणी को नरेंद्र मोदी ने अपने करिश्मा से झुठला ही दिया है।
कहीं राजनीति यू टर्न न कर जाएं…
लेकिन राजनीति हमेशा से संभावनाओं और अनिश्चितता से भरा रहा है। कब राजनीति किस करवट बैठ जाए-इसको लेकर कोई निश्चित भविष्यवाणी नहीं कर सकता। 2014 के बाद से मोदी सरकार को अनेक छोटे-बड़े विरोध का सामना करना पड़ा है। लेकिन नरेंद्र मोदी की चमक के सामने विरोधी दलों के तमाम विरोध के स्वर ताश के पत्ते की तरह बिखर गए। यह भी देखा गया जब कभी-भी नरेंद्र मोदी की अग्निपरीक्षा ली गई वे हीरे की तरह हमेशा से निखरते गए और विपक्षी दल लगातार गौण और नेता बौने साबित होते गए। लेकिन यह ऐसा देश हैं जहां राख से भी शक्ति पैदा हो सकती है। जिसके उदाहरण से इतिहास के पन्ने भरे है।
कई दौर के बाद भी महामंथन की आवश्यकता
सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी किसानों को तारिख पर तारिख क्यों दे रहे है? ऐसा करके वे क्यों किसानों की परीक्षा ले रहे है? जबकि पीएम मोदी इस बात को बखूबी जानते है कि किसान आंदोलन का विरोध उनके सर के उपर से बहने के लिये तैयार खड़ी है। उनका एक गलत निर्णय न सिर्फ एनडीए बल्कि उनके अब तक के राजनीतिक कौशलता और चतुराई को मिट्टी में मिला सकता है। यह समझ से परे है कि 8 दिसंबर के भारत बंद को निश्चित रुप से टाला जा सकता था। इसके लिये सरकार के प्रतिनिधि और किसान संगठन के नेताओं के बीच मेज पर बातचीत कई दौर में हुई। जिसमें 5 दिसंबर की बातचीत बेहद अहम थी। जहां मोदी सरकार को ऐसा निर्णय करना चाहिये था जिससे 8 दिसंबर के भारत बंद को रोक सकते थे।
9 दिसंबर को हो सकते अहम फैसला
लेकिन फिर से बातचीत के लिये 9 दिसंबर की तारिख तय कर दी गई। क्या केंद्र सरकार 8 दिसंबर के विरोध स्वर को पूरे भारत में टटोलना चाहती है? क्या एनडीए सरकार फिर से वहीं गलतियां दुहरा रही जिसमें सितंबर से ही किसान विरोध के स्वर को ही हल्के में लेने की असफल कोशिश कर गई? लेकिन इतना तो तय है कि 9 दिसंबर को आखिरी बातचीत होगी। कारण तब तक नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार भी 8 दिसंबर के किसान आंदोलन के ताप को पूरी तरह टटोल लेगी। आने वाले 9 दिसंबर की बातचीत का आधार ही 8 दिसंबर के भारत बंद के सफलता और असफलता पर निर्भर होगी। इसमें कोई दो राय नहीं है। यदि भारत बंद अभूतपूर्व तरीके से सफल रहा तो मोदी सरकार को बातचीत के मेज पर झुकना ही होगा। यदि ऐसा नहीं होता है तो नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिये आत्मघाती साबित हो सकता है।