रायसेन : प्रसिद्ध बौद्ध पर्यटन स्थल सांची में इस बार नहीं होगा महाबोधि महोत्सव, जाने क्यों
रायसेन : विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सांची में प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह के अंतिम रविवार को आयोजित होने वाला महाबोधि महोत्सव कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के चलते इस बार आयोजित नहीं होगा। इस बार यहां मेला भी नहीं लगेगा। कलेक्टर उमाशंकर भार्गव द्वारा महाबोधि सोसायटी के प्रस्ताव पर महाबोधि महोत्सव और सांची मेले को स्थगित कर दिया है। इस दौरान केवल प्रतीकात्मक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
रायसेन कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने बताया कि महाबोधि सोसायटी के प्रस्ताव पर इस बार केवल प्रतीकात्मक रूप से 29 नवम्बर को एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस दिन प्रातः 07.30 बजे पवित्र अवशेषों को निकाला जाएगा, प्रातः 08.30 बजे पंचशील और सूत्र कार्यक्रम तथा प्रातः 10 बजे महापूजा का आयोजन होगा। इसके पश्चात दोपहर 12.30 बजे कार्यक्रम का समापन होगा। कलेक्टर भार्गव ने प्रतीकात्मक कार्यक्रम के लिए एसडीएम एलके खरे को नोडल अधिकारी तथा तहसीलदार अजय प्रताप सिंह को सहायक नोडल अधिकारी बनाया गया है। कार्यक्रम के अवसर पर कोविड-19 से बचाव के लिए सेनेटाईजर, मास्क तथा थर्मल स्क्रीनिंग दल सहित अन्य सभी व्यवस्थाओं का दायित्व सीएमएचओ डॉ दिनेश खत्री, सिविल सर्जन डॉ एके शर्मा तथा खण्ड चिकित्सा अधिकारी सॉची को सौंपा गया है।
सांची के बौद्ध स्तूप परिसर में नवम्बर माह के अंतिम रविवार को हर साल दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में देश-विदेश के बौद्ध अनुयायी शामिल होते हैं। इस बार 29 नवम्बर को यह महोत्सव प्रस्तावित था, लेकिन इस बार महाबोधि सोसायटी द्वारा कोरोना संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर इस आयोजन को स्थगित करने का निर्णय लिया गया।
उल्लेखनीय है कि सांची में महाबोधि महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1952 में नवम्बर के अंतिम रविवार को सांची के बौद्ध स्तूप परिसर स्थित चैत्यगिरि विहार मंदिर के लोकार्पण समारोह के रूप में हुई थी, जिसमें तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू शामिल हुए थे। तब से हर साल नवंबर के अंतिम रविवार को इस महोत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस महोत्सव में देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अलावा देश की कई शख्सियतें शामिल हो चुकी हैं। इनमें तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी शामिल हैं। पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी एक बार इस महोत्सव में आकर अस्थि कलश की पूजा अर्चना की थी। इस महोत्सव में हर साल वियतनाम, सिंगापुर, थालेंड, जापान, श्रीलंका, म्यामार, भूटान, वर्मा सहित कई अन्य देशों से सैकंडों बौद्ध अनुयायी शामिल होते हैं और यहां दो दिवसीय भव्य मेले का आयोजन भी होता है। इस बार यह आयोजन स्थगित किया गया है।