आधुनिक रुस के महानायक का “विजन 2036”
– ए॰ एम॰ कुणाल
एक समय जैसे भारत में “इंदिरा इज़ इंडिया” एंड “इंडिया इज़ इंदिरा” कहा जाता था, आज रूश में व्लादिमीर पुतिन के लिए कहा जाता है। ऐसा लगता है कि “पुतिन-मेदवेदेव की टैंडेमोक्रेसी” डील के तहत सत्ता की जो चाभी व्लादिमीर पुतिन के हाथ लगी थी, वह कभी पुरानी नहीं होने वाली है। रूश के संविधानिक संशोधन के बाद स्टालिन को पुतिन पीछे छोड़ सकते है, जिन्होंने सोवियत संघ पर लगभग तीन दशकों तक राज किया था। अब पुतिन के लिए 2036 तक सत्ता में रहने का रास्ता साफ़ हो गया है।
एक गुमनाम जासूस से लेकर रुस के राष्ट्रपति बनने तक का व्लादिमीर पुतिन का सफ़र काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जब 2000 मे पुतिन ने सत्ता संभाली थी, तो उन्हे विरासत में विघटन की कगार पर खड़ा एक ऐसा देश मिला, जिसपर गर्व करना किसी भी युवा रुसी के लिए मुश्किल था। येल्तसिन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था, सड़को पर आए दिन खून-खराबा और लूट-पाट की वारदातों का होना आम बात थी। कुलीन तंत्रा का बोलबाला था। रुबल की कोई कीमत नही रह गयी थी। अलगाववादियों और चेचन विद्रोहीयों के कारण सेना पर भारी दबाव था। ऐसे परिस्थिति से अपने पहले आठ साल के कार्यकाल में रुस को विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर खड़ा करना पुतिन के कुशल नेतृत्व का ही कमाल कहा जा सकता है।
पुतिन ने सत्ता संभालते ही सिलोविकी और सरकारी नौकरशाहों को कड़े शब्दों में चेतावनी देकर अपनी रणनीति साफ कर दी थी। पुतिन का कहना था कि ‘यदि आप देश के लिए काम करना चाहते है तो अपने काम पर ही पूरा ध्यान केंद्रित करें, व्यवसाय में हाथ न आजमाएं, वह आपका काम नही है, अपने वेतन पर ही जीना सीखें।’ ठीक उसी तरह कुलिन वर्ग को संदेश भेजा था कि ‘यदि आप व्यवसाय करना चाहते है तो जरुर करिए, लेकिन अपने काम से मतलब रखिए और सत्ता हथियाने की कोशिश न करें, यह आपका काम नही है।’
इसका एक उदाहरण तेल कंपनी के मालिक मिखाइल खोदोर्कोव्स्की के मामले मे देखने को मिला, जिन्होंने पुतिन की राजनीतिक शक्ति को चुनौती देने की कोशिश की थी, पुतिन ने आर्थिक धोकाधड़ी के मामले मे उन्हें दोषी ठहराकर जेल मे डाल दिया।
हालांकि कई मौके पर पुतिन ने एक निरंकुश शासक की तरह काम किया और अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए सत्ता का गलत इस्तेमाल किया, लेकिन आज की तारीख मे पुतिन रुस के सबसे लोकप्रिय नेता है। यही वजह है कि पुतिन के विजन 2020 को रुस की जनता पूरा समर्थन मिला था।
पुतिन के भ्रष्टमुक्त समाज के सपने और पश्चिमी देशों के डर के कारण रुस की 75 प्रतिशत जनता अपना हीरो मानती है। ऐसे में रुस की जनता को विजन 2036 का सपना दिखा कर लम्बे समय तक सत्ता मे बने रहने का ख्वाब पाले बैठें आधुनिक रुस के इस महानायक की तुलना यदि स्टालिन से की जा रही है तो इसमें कोई गलत भी नही है।
67 साल के पुतिन का मौजूदा कार्यकाल 2024 में ख़त्म हो रहा है। संविधानिक संशोधन के बाद वे फिर से राष्ट्रपति चुनाव लड़ सकते है। साफ़ शब्दों में कहे तो पुतिन 6-6 साल के दो टर्म तक राष्ट्रपति बने रह सकते है। अगर पुतिन दो बार चुनाव लड़ते हैं, तो वो 2036 तक रूश के राष्ट्रपति बने रहेंगे।
राष्ट्रपति के कार्यकाल में बढ़ोतरी के अलावा इस संशोधन से संसद की शक्तियां बढ़ेंगी। राष्ट्रपति के बजाय अब संसद सदस्य प्रधानमंत्री चुन सकेंगे। प्रधानमंत्री अपनी पसंद का कैबिनेट बना सकता है। एक सलाहकार परिषद की तरह काम करने वाली स्टेट काउंसिल की शक्तियों में बढ़ोतरी की जाएगी।
हालांकि संवैधानिक सुधार के ख़िलाफ़ मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। मगर सत्ता और प्रेस के बल पर पुतिन अपनी बात मनवाने में एक बार फिर सफल होंगे।
1989 की जर्मन क्रांति के दौरान पुतिन ड्रेसडेन में केजीबी के एजेंट के तौर पर तैनात थे।जर्मनी से वापस आने के बाद क्रेमिलन के लिए काम करने लगे और अति महत्वाकांक्षी पुतिन देखते ही देखते राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के ख़ास बन गए। 1999 में बोरिस येल्तसिन ने व्लादिमीर पुतिन को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। येल्तसिन के पद छोड़ने के एक साल रहते भ्रष्टाचार में नाम आने के कारण अचानक उन्होंने त्यागपत्र दे दिया। उसके बाद 2000 से 2008 तक पुतिन दो बार राष्ट्रपति के पद पर रहे। इसके बाद 2008 से 2012 तक वो फिर देश के प्रधानमंत्री रहे और 2012 से अब तक राष्ट्रपति है।
विश्व राजनीति के मंच से ग़ायब हो चुके रूश की वापसी पुतिन ने 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़ा करके किया। उसके बाद रूस को अमेरिका और उसके सहयोगी पश्चिमी देशों की पाबंदियां झेलनी पड़ी पर पुतिन झुके नहीं।पुतिन के बड़ते क़द का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन पर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के चुनाव में हस्तक्षेप के आरोप लगाया गया। पुतिन ने पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-असद का साथ दिया और अमेरिका देखता रह गया।
कोल्ड वॉर में अपना सब कुछ गवा चुका रूश तेल के खेल का बादशाह बन गया है। तेल के खेल में मात खा चुका अमेरिका की आर्थिक हालात काफ़ी नाज़ुक है। जबकि रूश आगे निकल चुका है।
हालांकि 2008 -12 तक मेदवेदेव के राष्ट्रपति रहते माना जा रहा था कि वे पुतिन के लिए ख़तरा साबित हो सकते है पर ऐसा हुआ नहीं। उसके बाद पुतिन को चुनौती मिली लोकतंत्र समर्थक लोगों से। 2011 से 2013 के बीच रूस के कई इलाक़ों में चुनावों में व्यापक सुधार की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसे “बोलोत्नाया विरोध” कहा जाता है। सुधार का झूठा वादा कर पुतिन ने आंदोलन को दबा दिया। आज पुतिन की सत्ता को चुनौती देने वाला कोई नहीं है।