2022 में समाजवादी पार्टी का ऑपरेशन शिवपाल, क्या सपा की साइकिल को रफ्तार देंगें शिवपाल यादव ?

  • अखिलेश  यादव के सारथी बने शिवपाल यादव !
  • सपा की साइकिल को रफ्तार देंगें शिवपाल यादव !
  • अखिलेश यादव के लिए ज़मीन पर उतरे शिवपाल यादव !

 


ये जो तस्वीरें आप देख रहे है ये तस्वीरें देखने में तो सामान्य लग रही हैं। प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव समाजवादी धारा से जुड़े हुए 94 साल के जमुना प्रसाद बोस से मिलने गए। उनका हालचाल जाना, लेकिन ये तस्वीरें जितनी सामान्य दिख रही है उतनी है नही। दरअसल इन तस्वीरों की अगर आप गहराई में जाएंगें तो आपको समाजवादी पार्टी के ऑपरेशन शिवपाल का सही कॉसेप्ट समझ आऐगा। दरअसल भले ही 2018 में शिवपाल यादव ने आंतरिक या पारिवारिक कलह के कारण सपा छोड़ प्रसपा का गठन कर लिया हो। लेकिन सपा और प्रसपा की सोच और विचारधारा में कोई खास अंतर नही हैं और अगर यूपी की सियासत की पुरानी तस्वीरों को देखा जाए तो मुलायम शिवपाल यादव की जोड़ी की च्रचे आम हैं। यहां तक की 2017 में इटावा से शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव को खुलेआम चुनौती देते हुए कहा था कि ‘तुम सरकार बनाओं मैं पार्टी बनाउंगा।’


यूपी के कद्दावर नेता शिवपाल यादव ये बात यू ही नही कही थी। दरअसल यूपी में सरकार बनाने और गिराने में महारत रखने वाले शिवपाल यादव यूपी की सियासत में चाणक्य की नीति अपनाने वाले नेता हैं। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सपा परिवार में वर्चस्व की लड़ाई शुरु हो गई जिसका खामियाज़ा सपा ने 2017 में सत्ता गंवाकर उठाया लेकिन यूपी की सियासतदान जानते है कि यूपी की ज़मीन पर शिवपाल यादव की पकड़ काफी मज़बूत हैं। शिवपाल यादव की पैठ ना सिर्फ सपा की पुरानी जड़ों में बल्कि यूपी के दूसरे राजनैतिक दलों में सेंध लगाने में भी शिवपाल यादव माहिर हैं। राजनीति के जानकार मानते है कि 2003 में बसपा की सरकार गिराने और मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाने में शिवपाल यादव की भूमिका काफी खास थी। साथ ही 2012 में जहां अखिलेश यादव साइकिल पर सवार होकर यूपी की जनता का दिल जीतने के लिए मेहनत कर रहे थे। वही दूसरी तरफ शिवपाल यादव साइकिल की रफ्तार में रोड़ा बन रहे कांटों को हटाते हुए नज़र आ रहे थे।

ऐसे में अखिलेश यादव की मेहनत और शिवपाल यादव की रणनीति का ही नतीजा था कि 2012 में यूपी में सपा की सरकार बनी। लेकिन जब 2018 में भाई भाई से अलग हो गया, चाचा से भतीजा अलग हो गया। तो सपा से निकल कर प्रसपा बनी। जहां सपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव 2017 के विधानसभा चुनाव यहां तक 2019 के लोकसभा चुनाव में बार बार हार का मुंह देखा तो वही प्रसपा आज भी यूपी में अपनी ज़मीन तलाश कर रही हैं और इसी के चलते सपा को प्रसपा की और प्रसपा को सपा की अहमियत का अंदाज़ा हो गया और ये समझ आ गया कि बंद मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की।

2022 में अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सपा को सत्ता दिलाने के लिए साथ ही प्रसपा का भी अस्तित्व बचाने के लिए शिवपाल यादव एक बार फिर से ज़मीन पर सक्रिय हो गए हैं और मिशन 2022 में जुट गए हैं और इसी मिशन के चलते शिवपाल यादव अब सपा के उन नेताओं से मिल रहे है जिनकी जड़े ना सिर्फ यूपी की सियासत में मज़बूत है बल्कि जिनकी रगों में समाजवाद बहता हैं और सपा की नई और पुरानी पीढ़ी को जोड़कर आने वाले समय में सपा और प्रसपा इतिहास रचने की तैयारी करने में जुट गए हैं।

दरअसल शिवपाल यादव की ये भूमिका सपा में पहले भी थी जिन लोगो से सपा का शीर्ष नेतृत्व नही मिला पाता था वे शिवपाल यादव से मिलकर संतुष्ट हो जाते थे। अब उसी भूमिका में एक बार फिर शिवपाल यादव दिखने लगे है। सपा की जिन जड़ो तक अखिलेश यादव अपनी पहुंच नही बना पा रहे थे। उन तक पहुंच बनाने में अब शिवपाल यादव जुट गए हैं। शिवपाल यादव तो पहले ही सपा में वापसी के संकेत दे चुके हैं और अब तो अखिलेश यादव के भी हालिया बयानों से सपा में शिवपाल यादव को हरी झंड़ी मिलती हुई नज़र आ रही हैं और जहां तक बात है मुलायम सिंह यादव की तो भाई शिवपाल पर तो मुलायम सिंह यादव शुरु से ही मुलायम थे। अब बस देखना ये है कि 2022 में समाजवादी पार्टी का ऑपरेशन शिवपाल कितना सफल होता हैं।

 

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