Terror Attack: “अब सरकार पर भरोसा नहीं.. नेता सिर्फ फोटो खिंचवाकर..” BJP मंत्री पर भड़कीं शहीद की पत्नी

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने न सिर्फ जानें लीं, बल्कि भरोसे को भी तोड़ दिया। हमले में जान गंवाने वाले सूरत निवासी शैलेशभाई कलथिया की पत्नी शीतलबेन का गुस्सा उस वक्त फूट पड़ा जब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल उनके घर शोक व्यक्त करने पहुंचे। शीतलबेन ने सरकार, सुरक्षा एजेंसियों और पूरे सिस्टम पर तीखे सवाल उठाए और कहा कि सरकार सिर्फ VIP लोगों की सुरक्षा करती है, आम नागरिकों की जान की कोई कीमत नहीं।
“हमें अब सरकार पर भरोसा नहीं है”
शीतलबेन ने मंत्री के सामने स्पष्ट कहा –
“पहले भरोसा था, इसलिए पहलगाम घूमने गए थे। अब कोई भरोसा नहीं। पहलगाम में कोई पुलिस नहीं थी, कोई सेना नहीं थी। मैं मदद के लिए चिल्लाती रही, लेकिन कोई नहीं आया।”
उन्होंने सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अगर पहलगाम जैसे टूरिस्ट प्लेस पर कोई मेडिकल सुविधा नहीं, कोई आर्मी या पुलिस मौजूद नहीं थी, तो आम जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा?
“आपकी ज़िंदगी ज़िंदगी है, टैक्स देने वालों की नहीं?”
शीतलबेन ने अपने दर्द को शब्दों में बदलते हुए कहा –
“नेताओं की सुरक्षा के लिए हेलिकॉप्टर हैं, कारों का काफिला है, लेकिन हम टैक्स देने वालों की जान की कीमत नहीं। आप लोग जनता के टैक्स से हेलिकॉप्टर पर घूमते हैं। आपकी ज़िंदगी ज़िंदगी है, टैक्स देने वालों की ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं?”
यह सवाल न सिर्फ एक पीड़ित पत्नी का दर्द है, बल्कि पूरे सिस्टम पर सीधा वार भी है।
“आतंकी हिंदू-मुस्लिम पूछकर गोली मारते हैं, सेना कहां थी?”
शीतलबेन ने बताया कि हमले के वक्त आतंकी ने धर्म पूछकर निशाना बनाया।
“आतंकवादी हमारे सामने आए और हिंदू-मुसलमान पूछकर सिर्फ हिंदुओं को गोली मार दी। अगर वहां सुरक्षा होती, तो शायद मेरे पति आज ज़िंदा होते।”
उनका कहना था कि पहलगाम में सेना और मेडिकल कैम्प न होना प्रशासनिक लापरवाही का स्पष्ट संकेत है।
“नेता सिर्फ फोटो खिंचवाकर चले जाते हैं”
जब मंत्री पाटिल ने आश्वासन देने की कोशिश की, तो शीतलबेन ने तीखा जवाब दिया –
“सरकार कहती है कार्रवाई होगी, लेकिन होता कुछ नहीं। नेता लोग आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और चले जाते हैं।”
उनके मुताबिक, सरकार को पीड़ितों के दर्द का अंदाज़ा ही नहीं होता और घटना के बाद सिर्फ दिखावा किया जाता है।
“मुझे मेरे बच्चों के लिए न्याय चाहिए”
शीतलबेन ने अपने बच्चों की ओर इशारा करते हुए कहा –
“इन बच्चों का क्या होगा? मैं अपने बेटे को इंजीनियर, बेटी को डॉक्टर बनाना चाहती थी। अब कैसे बनाऊंगी? सिर्फ मेरे पति के लिए नहीं, उन 27 लोगों के लिए न्याय चाहिए जो मारे गए।”
इस घटना ने यह सवाल फिर से जगा दिया है कि क्या आम नागरिक की सुरक्षा सरकार की प्राथमिकता है? पीड़ित का गुस्सा एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता पर जनता की प्रतिक्रिया है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को अब जवाब देना होगा—क्या आम आदमी की जान वाकई कीमती है?