“ये मेरी हिन्दू बहन है..” और आतंकियों से भिड़ गए आदिल, रौंगटे खड़े करने वाली कश्मीरी गाइड की कहानी

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया। इस खूबसूरत घाटी में टूरिस्टों पर हुए इस हमले में 28 लोगों की जान चली गई, लेकिन इस खौफनाक मंजर के बीच एक नाम पूरे देश के लिए मिसाल बनकर सामने आया—”आदिल हैदर”। 29 वर्षीय आदिल एक लोकल गाइड थे, जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर एक महिला टूरिस्ट की जान बचाई। आदिल इस हमले में शहीद हो गए, लेकिन पीछे छोड़ गए एक ऐसी कहानी, जो बताती है कि असली ‘कश्मीरियत’ क्या होती है।

‘ये मेरी बहन है, मैं इसे अकेला नहीं छोड़ूंगा’: आदिल

आदिल रोज की तरह बैसरन घाटी में टूरिस्ट घुमाने गए थे। उस दिन उनके साथ एक महिला टूरिस्ट और उनके पिता थे। तभी अचानक आतंकियों ने हमला कर दिया। गोलियों की आवाज़ सुनते ही लोग जान बचाने के लिए भागने लगे, लेकिन आदिल डटे रहे। उन्होंने कहा—”ये टूरिस्ट मेरी बहन है, मैं इसे अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

आदिल ने आतंकियों का सामना किया, उनसे बहस की, हथियार छीनने की कोशिश की। जवाब में उन्हें तीन गोलियां मारी गईं। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके।

परिवार के लिए शोक, देश के लिए गर्व

आदिल के भाई सैयद नौशाद कहते हैं—“हमें दुख है कि भाई अब नहीं रहा, लेकिन उस पर गर्व भी है। महिला टूरिस्ट ने मुझसे कहा कि आपके भाई की वजह से मैं आज जिंदा हूं।”

घर में मातम पसरा है, लेकिन आदिल की बहन फौजिया कहती हैं—“उसने इंसानियत के लिए जान दी। वो बहुत अच्छा था, हमेशा सही के साथ खड़ा होता था।”

कश्मीरियत और इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल

आदिल न सिर्फ एक गाइड थे, बल्कि वे कश्मीर के उस चेहरे की नुमाइंदगी करते थे जो अमन, भाईचारे और मानवता में विश्वास करता है। उनके बहनोई सईद अल्ताफ मूसा कहते हैं—“मुझे फख्र है कि आदिल ने कश्मीरियत को जिंदा रखा है। उसने आतंकियों को बताया कि ये टूरिस्ट मेरी बहन है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता।”

पिता बोले—”मेरा बेटा हक के लिए लड़ा, सरकार अब सख्ती दिखाए”

आदिल के पिता सैयद हैदर शाह कहते हैं—“बाकी सबको एक-एक गोली मारी गई, मेरे बेटे को तीन। उसने आतंकियों से बहस की, मासूमों की जान बचाई। सरकार को अब ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।”

आतंक के खिलाफ एकजुट हो रहा देश

इस हमले के बाद जहां पूरे देश में दुख और गुस्सा है, वहीं आदिल की बहादुरी ने एकजुटता और भाईचारे का संदेश दिया है। ये कहानी इस समय की सबसे अहम ज़रूरत है—जहां मज़हब नहीं, इंसानियत की बात हो। आदिल हैदर की कुर्बानी को सलाम, जिन्होंने न सिर्फ जान बचाई, बल्कि अमन का परचम भी बुलंद किया।

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