वाह रे ‘हिंदू रक्षा दल’ के कार्यकर्ताओं! औरंगजेब समझ ‘बहादुर शाह ज़फर’ की तस्वीर पर पोत डाली कालिख

गाजियाबाद रेलवे स्टेशन की घटना बनी मज़ाक का कारण

गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर शुक्रवार को एक विचित्र और हास्यास्पद घटना सामने आई। हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने प्लेटफॉर्म नंबर 4 की दीवार पर बनी बहादुर शाह ज़फर की तस्वीर को औरंगज़ेब समझ लिया और गुस्से में आकर उस पर कालिख पोत दी। देश की राजधानी के करीब इस प्रकार की “ऐतिहासिक भूल” पर न केवल सवाल उठे, बल्कि सोशल मीडिया पर भी जमकर मज़ाक उड़ाया गया।

कौन थे बहादुर शाह ज़फर ?

जिस शख्स की तस्वीर पर कालिख पोती गई, वे थे बहादुर शाह ज़फर — भारत के अंतिम मुगल सम्राट और 1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख चेहरा। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में भारतीय सिपाहियों का साथ दिया। उनका काव्य, संवेदनशीलता और देशभक्ति का भाव आज भी साहित्य और इतिहास का अहम हिस्सा हैं।

“ग़लती से माफ़ी नहीं, मुकदमा दर्ज”

आश्चर्यजनक यह है कि करीब आधे घंटे तक चले इस प्रदर्शन के दौरान न तो RPF पहुंची और न ही GRP ने रोकने का प्रयास किया। बाद में रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स ने अज्ञात कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और वीडियो फुटेज के ज़रिए आरोपियों की तलाश शुरू की है।

“औरंगज़ेब को राक्षस बता दिया”, लेकिन तस्वीर किसकी है?

हिंदू रक्षा दल के प्रमुख पिंकी चौधरी ने मीडिया से बातचीत में कहा, “हम औरंगज़ेब के चित्र को यहां बर्दाश्त नहीं करेंगे।” उन्होंने औरंगज़ेब द्वारा मंदिरों के विध्वंस और अपने परिवार के सदस्यों की हत्या की बात करते हुए अपनी कार्रवाई को सही ठहराया।
लेकिन कुछ ही देर बाद जब रेलवे अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि वह चित्र औरंगज़ेब का नहीं, बल्कि बहादुर शाह ज़फर का है, तो सबकी बोलती बंद हो गई।

क्या इतिहास में ज़रा भी दिलचस्पी नहीं?

सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं, “क्या अब किसी को भी झंडा थमाकर इतिहास सुधारने भेज दिया जाएगा?” घटना के बाद सोशल मीडिया पर “इतिहास ज्ञान” की इस महान भूल पर मीम्स और व्यंग्य की बाढ़ आ गई। लोग पूछ रहे हैं कि अगर यही ज्ञान है तो फिर इतिहास बचाने का जिम्मा किस पर छोड़ा जाए? कुछ लोगों ने लिखा – “इतिहास सुधारो या पहले इतिहास पढ़ो!”

गाजियाबाद की यह घटना न केवल हास्यास्पद है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि बिना तथ्य और जानकारी के की गई ‘देशभक्ति’ अक्सर इतिहास की हत्या बन जाती है। अगर तस्वीर सही पहचानने में गलती हो सकती है, तो फिर बाकी ज्ञान का स्तर क्या होगा, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है।

शायद अब वक्त आ गया है कि ‘असली राष्ट्रवाद’ में इतिहास की किताबें पढ़ना अनिवार्य कर दिया जाए!

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