UCC लोगों को कभी समझ नहीं आएगी बोले CJI रंजन गोगोई
UCC) एक प्रस्तावित कानून है जिसका उद्देश्य भारत में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लिए समान व्यक्तिगत कानून स्थापित करना है।
समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code, UCC) एक प्रस्तावित कानून है जिसका उद्देश्य भारत में विभिन्न धर्मों और समुदायों के लिए समान व्यक्तिगत कानून स्थापित करना है। इसका उद्देश्य विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच एक समान और समानांतर नागरिक क़ानून व्यवस्था लागू करना है, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करे। भारत में वर्तमान में अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लिए विभिन्न व्यक्तिगत कानून हैं, जैसे हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख आदि के लिए अलग-अलग विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार आदि की व्यवस्था है। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य इन सब कानूनों को एक समान कानूनी ढांचे में लाना है।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश का दृष्टिकोण
UCC ; भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में समान नागरिक संहिता को लेकर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने इसे एक “बहुत ही प्रगतिशील कानून” के रूप में देखा, जो विभिन्न पारंपरिक प्रथाओं की जगह लेगा जो अब तक कानून बन गई हैं। उनका मानना था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने से समाज में समानता को बढ़ावा मिलेगा और विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच के भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश का यह विचार महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे भारतीय न्यायपालिका के सबसे उच्च पद पर रहे हैं और उनका दृष्टिकोण संविधान और न्यायिक विचारधारा के प्रति गहरा है। उनके अनुसार, समान नागरिक संहिता न केवल धर्मनिरपेक्षता और समानता की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह समाज में प्रगति और एकता की ओर भी अग्रसर है।
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
UCC ; समान नागरिक संहिता की आवश्यकता कई कारणों से महसूस की जाती है। पहला, विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग-अलग कानूनी व्यवस्था होने के कारण कई बार एक ही मुद्दे पर विभिन्न निर्णय सामने आते हैं, जिससे न्याय की समानता पर सवाल उठता है। उदाहरण के लिए, विवाह और तलाक के मुद्दे पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लिए अलग-अलग कानून हैं। ऐसे में, समान नागरिक संहिता लागू होने से हर नागरिक को एक समान कानूनी अधिकार मिलेंगे।
दूसरा, यह समाज में समानता और न्याय का संवर्धन करेगा। आज भी कुछ पारंपरिक प्रथाएं और कुरीतियां समाज में प्रचलित हैं, जो महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। समान नागरिक संहिता के जरिए इन प्रथाओं को समाप्त किया जा सकता है और समाज में एक न्यायपूर्ण वातावरण उत्पन्न किया जा सकता है।
विरोध और चुनौती
हालांकि समान नागरिक संहिता का समर्थन किया जा रहा है, लेकिन इसके खिलाफ भी कई चुनौतियाँ हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देखते हैं, क्योंकि यह विभिन्न धार्मिक समुदायों की विशिष्टताओं को खत्म कर सकता है। इसके अलावा, इस कानून के लागू होने के बाद विभिन्न समुदायों के बीच तनाव और विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
संविधान और समान नागरिक संहिता
भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय का पालन करने का संकल्प करता है, और समान नागरिक संहिता का उद्देश्य इन्हीं मूल्यों को संस्थागत बनाना है। हालांकि, संविधान में समान नागरिक संहिता को अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन इसे लागू करने का समर्थन भारतीय राजनीति में एक गंभीर चर्चा का विषय रहा है।
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UCC ; समान नागरिक संहिता के बारे में पूर्व प्रधान न्यायाधीश का दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि यह कानून भारतीय समाज में समानता, न्याय और एकता को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि इसके लागू होने के रास्ते में चुनौतियाँ हैं, लेकिन यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाता है, तो यह भारत के संविधान और समाज की प्रगति की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुधार साबित हो सकता है।