India-China संबंधों में पुनर्संयोजन के लिए साहसी और नए दृष्टिकोण की आवश्यकता
India-China के रिश्ते में सुधार के लिए नया और साहसी दृष्टिकोण जरूरी है। यह सिर्फ सैन्य मामलों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि दोनों देशों को आर्थिक, सांस्कृतिक, और कूटनीतिक मोर्चों पर भी एक दूसरे के साथ सहयोग करने के नए रास्ते तलाशने होंगे।
समझदार नेताओं की पहचान यह है कि वे विवादों का समाधान शांतिपूर्वक करते हैं और उन्हें संघर्ष में बदलने नहीं देते। यहां तक कि जब एक ऐतिहासिक विवाद संघर्ष को उकसाता है, तो वे हर संभव प्रयास करते हैं कि इसे संवाद के माध्यम से शांत किया जाए और यह बड़े संघर्ष में न बदले। इस परिपक्वता की कसौटी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। 2020 में गालवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के कारण दोनों देशों के बीच हुए सैन्य गतिरोध का समाधान इसलिए संभव हो सका, क्योंकि दोनों नेताओं ने सैन्य और कूटनीतिक टीमों के बीच हुई बातचीत के बाद एक disengagement (वापसी) समझौते को लागू करने के लिए राजनीतिक समर्थन दिया था।
India-China के रिश्तों की बड़ी चुनौती:
अब दोनों नेताओं के सामने एक बड़ी चुनौती है, जिसमें उनकी परिपक्वता और जिम्मेदारी फिर से परखी जाएगी। क्या वे भारत-चीन संबंधों को समग्र और आपसी लाभकारी सहयोग की दिशा में निरंतर बढ़ाने के लिए रणनीतिक निर्णय लेंगे, या फिर वे आपसी अविश्वास की जमा हुई परतों को बढ़ने देंगे और रिश्तों को न्यूनतम सहयोग और बढ़ते प्रतिद्वंद्विता की ओर धकेल देंगे? यदि दूसरा विकल्प अपनाया जाता है, तो निश्चित रूप से भविष्य में सैन्य टकराव का खतरा उत्पन्न होगा, खासकर क्योंकि सीमा विवाद अब भी सुलझा नहीं है। कोई भी नया टकराव, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति और सामंजस्य को नष्ट कर देगा, जो द्विपक्षीय सहयोग के फलने-फूलने की शर्त है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत-चीन संबंध:
जब दुनिया एक ऐसे समय से गुजर रही है, जिसमें बढ़ती भू-राजनीतिक अशांति और अनिश्चितता है, भारत-चीन का विरोधी रुख वैश्विक समस्याओं में इजाफा करेगा। इसके विपरीत, यदि दोनों देश सहयोग की दिशा में कदम बढ़ाते हैं, तो यह न केवल आपसी लाभ देगा, बल्कि दुनिया को एक बेहतर और सुरक्षित स्थान भी बना देगा। इस वैश्विक संदर्भ में, यह एक रणनीतिक विकल्प है जिसे प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी को चुनना होगा।
India-China संबंधों में पुनर्संयोजन की आवश्यकता:
India-China के रिश्ते में सुधार के लिए नया और साहसी दृष्टिकोण जरूरी है। यह सिर्फ सैन्य मामलों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि दोनों देशों को आर्थिक, सांस्कृतिक, और कूटनीतिक मोर्चों पर भी एक दूसरे के साथ सहयोग करने के नए रास्ते तलाशने होंगे। विशेष रूप से, दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, पर्यावरण, और सामाजिक कल्याण के क्षेत्रों में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। इसके साथ ही, एक मजबूत और स्थिर द्विपक्षीय संबंध न केवल इन दोनों देशों के लिए, बल्कि समग्र एशिया और वैश्विक समुदाय के लिए भी फायदेमंद होगा।
Trump ने Biden के फैसले के बाद फांसी की सजा लागू करने का किया वादा
भारत और चीन के बीच संबंधों को नई दिशा देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग को साहसिक और दूरदर्शी कदम उठाने होंगे। यह समय एक रणनीतिक निर्णय लेने का है, जो न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए सकारात्मक परिणाम ला सके। अगर वे संवाद और सहयोग के रास्ते पर चलते हैं, तो यह न केवल उनके देशों के लिए बल्कि वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए भी फायदेमंद होगा।