Global Warming से लड़ाई में भारत के लिए चुनौती
Global Warming लगातार पटरी से उतरते जा रहे हैं, प्रकृति अप्रत्याशित रूप से एक गर्म ग्रह बनने की ओर बढ़ रही है। वैश्विक उष्मायन से लड़ाई में कार्बन उत्सर्जन को कम करना मुख्य उद्देश्य है, और इसके लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा।
अज़रबैजान में आयोजित जलवायु सम्मेलन (COP29) का परिणाम निराशाजनक रहा है। यह सम्मेलन अमेरिकी राजनीति के संक्रमणकाल में हुआ, जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ता ठप हो गई है। जबकि जलवायु परिवर्तन पर Global Warming लगातार पटरी से उतरते जा रहे हैं, प्रकृति अप्रत्याशित रूप से एक गर्म ग्रह बनने की ओर बढ़ रही है। वैश्विक उष्मायन से लड़ाई में कार्बन उत्सर्जन को कम करना मुख्य उद्देश्य है, और इसके लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा।
भारत का 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य
विकसित देशों ने 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य स्वीकार किया है, जबकि चीन ने 2060 और भारत ने 2070 तक ऊर्जा संक्रमण के लिए इस लक्ष्य को अपनाया है। यह अंतराल भारत के लिए एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत करता है, क्योंकि भारत को अपने विकास और औद्योगिकीकरण के लिए ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ-साथ पर्यावरणीय संकट का भी सामना करना है। हालांकि, भारत ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को स्वीकार किया है, लेकिन शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँचने के लिए एक सटीक और व्यावहारिक योजना की आवश्यकता है।
Global Warming कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़म (CBAM) और भारत की चुनौती
यूरोपीय संघ (EU) द्वारा 2026 से प्रभावी होने वाले कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज़म (CBAM) ने वैश्विक व्यापार में नया मोड़ लाया है। इस तंत्र के तहत, अगर निर्यातक देशों में कार्बन कर यूरोपीय संघ के स्तर तक नहीं पहुँचते हैं, तो उन देशों से आयातित सामान पर जुर्माना शुल्क लगाया जाएगा। इसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा, क्योंकि भारत में ऊर्जा उत्पादन के लिए बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। इससे भारतीय उद्योगों की लागत बढ़ सकती है और यह देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
उत्सर्जन पीकिंग की बढ़ती आवश्यकता
इसके अलावा, Global Warming दबाव भी बढ़ रहा है कि प्रमुख देशों को उत्सर्जन पीकिंग स्वीकार करना चाहिए। जी-7 सम्मेलन, जो पिछले वर्ष हिरोशिमा में आयोजित हुआ था, और 2024 में एपूलिया में आयोजित सम्मेलन ने प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से 2025 तक उत्सर्जन पीकिंग स्वीकार करने का आह्वान किया। यूरोपीय संघ और अमेरिका ने पहले ही उत्सर्जन के पीकिंग को स्वीकार कर लिया है, और अब चीन और भारत को इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके लिए, भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
भारत की आर्थिक और ऊर्जा स्थिति
भारत की बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं और औद्योगिक विकास के बीच यह चुनौती और भी कठिन हो जाती है। भारत एक विकासशील देश है, और यहाँ के नागरिकों की जीवन गुणवत्ता में सुधार के लिए ऊर्जा की आवश्यकता लगातार बढ़ रही है। इस स्थिति में, शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए भारत को न केवल ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर बढ़ना होगा, बल्कि वैश्विक दबाव के बीच अपनी नीति को संतुलित भी करना होगा।
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Global Warming भारत के लिए, वैश्विक उष्मायन से लड़ाई में प्रमुख चुनौती यह है कि वह अपने विकासात्मक लक्ष्य और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं के बीच संतुलन बनाए रखे। कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट और उत्सर्जन पीकिंग की बढ़ती आवश्यकता भारत को अपनी ऊर्जा नीतियों और औद्योगिक रणनीतियों में तेजी से बदलाव लाने के लिए मजबूर करेगी। भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्तर पर अपनी भूमिका को जिम्मेदारी से निभाना होगा कि वह एक स्थिर और हरित भविष्य की ओर बढ़े।