India in Debt : मनमोहन, नरसिम्हा और मोदी सरकारों की तुलना में कौन जिम्मेदार?
India in Debt भारत, जो कभी अपनी स्वदेशी संसाधनों और अर्थव्यवस्था की ताकत पर गर्व करता था, आज बढ़ते कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है।
India in Debt भारत, जो कभी अपनी स्वदेशी संसाधनों और अर्थव्यवस्था की ताकत पर गर्व करता था, आज बढ़ते कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है। देश की आर्थिक स्थिति, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय कर्ज के मामले में, गंभीर चर्चा का विषय बन गई है। आइए समझते हैं कि अलग-अलग सरकारों के कार्यकाल में भारत ने कितना कर्ज लिया, वर्तमान स्थिति क्या है, और इसे चुकता करने के लिए हमारे पास क्या योजनाएँ हैं।
मनमोहन सिंह सरकार (2004–2014)
मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर विकास दर का अनुभव कर रही थी। हालांकि, इस दौरान अंतरराष्ट्रीय कर्ज भी बढ़ा, लेकिन इसका मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक मंदी (2008) था। उस समय, भारत ने IMF और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सहायता ली थी।
भारत का बाह्य कर्ज 2004 में लगभग 112 अरब डॉलर था, जो 2014 तक बढ़कर 440 अरब डॉलर हो गया। यह वृद्धि आवश्यक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश के कारण थी। हालांकि, GDP के मुकाबले कर्ज का स्तर नियंत्रित था।
नरसिम्हा राव सरकार (1991–1996)
नरसिम्हा राव सरकार का कार्यकाल भारत के लिए आर्थिक सुधारों का दौर था। 1991 में भारत एक गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा था और विदेशी मुद्रा भंडार केवल कुछ दिनों की आयात जरूरतों को पूरा कर सकता था।
इस स्थिति में, सरकार ने IMF से 2.2 अरब डॉलर का कर्ज लिया और आर्थिक सुधारों को लागू किया। इस कदम ने भारतीय अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे सुधारने में मदद की, लेकिन इस दौर ने भारत के लिए आर्थिक निर्भरता की शुरुआत भी की।
नरेंद्र मोदी सरकार (2014–वर्तमान)
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत ने कई नई योजनाओं और परियोजनाओं की शुरुआत की। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में विदेशी कर्ज में तेजी से वृद्धि हुई है।
भारत का विदेशी कर्ज 2014 में लगभग 440 अरब डॉलर था, जो 2024 तक बढ़कर लगभग 620 अरब डॉलर हो गया। इसके प्रमुख कारण हैं – कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था में मंदी, बुनियादी ढांचा और रक्षा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश, और वैश्विक बाजार में हलचल।
India in Debt वर्तमान स्थिति और आगे का रास्ता
India in Debt आज भारत की आर्थिक स्थिति चुनौतीपूर्ण है। बढ़ते कर्ज के बोझ के बीच, हमारी GDP वृद्धि दर धीमी हो रही है। 2024 में भारत का कर्ज GDP का लगभग 19.2% होने का अनुमान है। यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि बढ़ते कर्ज पर ब्याज देश की वित्तीय स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है।
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इस कर्ज के बोझ से निपटने के लिए भारत को निर्यात बढ़ाने, घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और वित्तीय अनुशासन को लागू करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, सतत विकास और विदेशी निवेश आकर्षित करने को भी प्राथमिकता देनी चाहिए।
यदि सरकार सही कदम उठाती है और देश के संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करती है, तो भारत इस चुनौती से उबर सकता है। लेकिन इसके लिए मजबूत नीतियों और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।