Adani मामले पर संसद का घमासान: विपक्ष की अडिग मांग और सरकार की चुप्पी
Adani विवाद ने भारतीय राजनीति में गहरी खाई पैदा कर दी है। जहां विपक्ष इसे लोकतंत्र और पारदर्शिता का मुद्दा बना रहा है, वहीं सरकार इसे राजनीति से प्रेरित हमला मान रही है।
संसद के शीतकालीन सत्र में Adani विवाद ने एक ऐसा मोड़ ले लिया है, जहां हर दूसरी चर्चा इस मुद्दे की वजह से पीछे छूटती जा रही है। विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अडानी समूह के बीच कथित घनिष्ठता को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं। यह मुद्दा भारत की आर्थिक और लोकतांत्रिक अखंडता से जुड़ा हुआ बताते हुए विपक्ष ने संसद के अंदर और बाहर जोरदार प्रदर्शन किया।
विरोध प्रदर्शन में गांधी परिवार की भागीदारी
5 दिसंबर को प्रियंका गांधी ने पहली बार सांसद के तौर पर संसद परिसर में प्रदर्शन किया। राहुल गांधी के साथ खड़ी प्रियंका ने अडानी मामले में जांच की मांग की और विपक्ष के नेतृत्व में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। विरोध के दौरान विपक्षी सांसदों ने “मोदी-अडानी एक हैं, Adani सुरक्षित है” जैसे नारे लगाते हुए जैकेट पहन रखी थी। राहुल गांधी ने इस मौके पर कहा, “प्रधानमंत्री मोदी अडानी की जांच क्यों नहीं करवा सकते? क्योंकि ऐसा करने का मतलब होगा अपनी जांच कराना। मोदी और अडानी अलग नहीं हैं, वे एक ही हैं।”
लोकसभा और राज्यसभा में हंगामा
शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही दोनों सदनों में कार्यवाही बार-बार बाधित हुई है। विपक्ष ने अडानी समूह पर अमेरिकी न्याय विभाग और यूएस सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर चर्चा की मांग की है। कांग्रेस सांसद माणिकम टैगोर ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव लाते हुए कहा कि यह मामला भारत की अंतरराष्ट्रीय साख पर सवाल खड़ा करता है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि Adani समूह ने आंध्र प्रदेश सरकार को रिश्वत दी थी, जिससे सौर ऊर्जा परियोजनाओं में अनियमितताएं हुईं।
राज्यसभा में भी विपक्ष ने इसी मुद्दे पर जोर दिया। विपक्षी सदस्यों के नारेबाजी और विरोध के चलते सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा, “इस तरह की कार्यवाही लोकतंत्र के लिए अच्छी मिसाल नहीं है। हम जनता की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय खुद पर हंसी का पात्र बन रहे हैं।”
सरकार का रुख और भाजपा की प्रतिक्रिया
सरकार ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि सभी मामलों में कानून अपना काम करेगा। भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर जवाबी हमला करते हुए इसे राजनीतिक एजेंडा बताया। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने विपक्ष पर संसद की कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनका मकसद केवल ध्यान खींचना है।
Adani समूह ने भी आरोपों को खारिज करते हुए उन्हें पूरी तरह से आधारहीन बताया। समूह ने एक बयान में कहा, “हमने हमेशा कानून का पालन किया है और इस मुद्दे पर सभी कानूनी विकल्प अपनाएंगे।”
विपक्षी एकता का प्रदर्शन
इस मुद्दे पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के सदस्य एकजुट दिखाई दिए। टीएमसी, आप, डीएमके और अन्य दलों ने कांग्रेस के साथ मिलकर प्रदर्शन में भाग लिया। तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा, “यह मामला भारत के लोकतंत्र की साख से जुड़ा है। हम इस पर चुप नहीं बैठेंगे।”
आप नेता संजय सिंह ने संसद परिसर में कहा कि सरकार की चुप्पी इस बात का सबूत है कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने अडानी मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की मांग की।
आगे का रास्ता
संसद का शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर तक चलेगा, लेकिन Adani विवाद ने इसके एजेंडे को बुरी तरह से प्रभावित किया है। अब तक किसी प्रमुख विधेयक पर चर्चा नहीं हो सकी है, और बार-बार स्थगन की स्थिति बनी हुई है। विपक्ष ने साफ कर दिया है कि जब तक अडानी मामले की जांच नहीं होगी, तब तक वे पीछे नहीं हटेंगे।
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Adani विवाद ने भारतीय राजनीति में गहरी खाई पैदा कर दी है। जहां विपक्ष इसे लोकतंत्र और पारदर्शिता का मुद्दा बना रहा है, वहीं सरकार इसे राजनीति से प्रेरित हमला मान रही है। यह स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में यह विवाद और गहराएगा और संसद में गतिरोध लंबे समय तक जारी रह सकता है।
इस मुद्दे ने न केवल संसद बल्कि देश की जनता के बीच भी चर्चा का माहौल बना दिया है। क्या यह विवाद एक निष्पक्ष जांच की ओर बढ़ेगा, या यह राजनीतिक उठापटक में उलझकर रह जाएगा, यह देखना बाकी है।