MVA की हार: कारणों का विश्लेषण

MVA के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद और असहमति रही। शिवसेना (उद्धव ठाकरे), कांग्रेस और एनसीपी के बीच समझौतों में मतभेद थे।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में महाविकास अघाड़ी (MVA) को बीजेपी-नेतृत्व वाली महायुति से हार का सामना करना पड़ा। इस हार के पीछे कई रणनीतिक और संगठनात्मक कमजोरियां थीं। आइए, इन कारणों पर विस्तार से नजर डालते हैं।

1. आंतरिक कलह और सीटों का बंटवारा

MVA के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद और असहमति रही। शिवसेना (उद्धव ठाकरे), कांग्रेस और एनसीपी के बीच समझौतों में मतभेद थे। शरद पवार ने 85-85-85 सीटों का समझौता कराया, लेकिन यह एकता को बनाए रखने में असफल रहा। इसके अलावा, मुख्यमंत्री पद को लेकर भी कड़ी प्रतिस्पर्धा थी, जिसने चुनाव अभियान को कमजोर किया।

2. शरद पवार और उद्धव ठाकरे के बीच विश्वास की कमी

बीजेपी ने आरोप लगाया कि शरद पवार ने उद्धव ठाकरे का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए किया और फिर उन्हें हाशिए पर धकेल दिया। ठाकरे पर हिंदुत्व की विरासत से समझौता करने का आरोप भी लगा, जिससे शिवसेना (UBT) के समर्थकों में नाराजगी बढ़ी। यह विश्वास की कमी ने MVA के अंदर गहरे संकट को जन्म दिया।

3. लोकसभा चुनावों की विफलता का असर

2024 के लोकसभा चुनावों में MVA को अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन नहीं मिला था। गठबंधन को 48 में से 30 सीटें मिलीं, लेकिन बीजेपी की बढ़त ने सत्ता संतुलन को चुनौती दी। इसके अलावा, एनसीपी के भीतर अजित पवार के बीजेपी के साथ गठबंधन करने से स्थिति और भी जटिल हो गई।

4. ग्रामीण और मराठा समुदाय की नाराजगी

MVA सरकार की मराठा आरक्षण और किसानों के मुद्दों पर कथित विफलता ने राज्य के ग्रामीण इलाकों में नाराजगी बढ़ाई। यह नाराजगी महायुति के लिए एक बड़ा फायदा बन गई। बीजेपी के प्रचार अभियान ने खासकर किसानों और मराठा समुदाय को अपने पक्ष में किया।

5. बीजेपी और महायुति की आक्रामक रणनीति

बीजेपी ने देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में आक्रामक प्रचार किया। महायुति ने समय पर 90% उम्मीदवारों का चयन किया, जबकि MVA अपनी रणनीतियों को लेकर असमंजस में रही। बीजेपी ने शिवसेना और एनसीपी के बीच विभाजन का लाभ उठाया और मज़बूती से अपने समर्थकों को एकजुट किया।

Maharashtra में बीजेपी की जीत: गडकरी और फडणवीस की भूमिका

MVA की हार रणनीतिक और संगठनात्मक गलतियों का परिणाम है। बीजेपी ने समयबद्ध निर्णय और आक्रामक प्रचार अभियान के जरिए महायुति को जीत दिलाई। यह चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में नए शक्ति संतुलन को परिभाषित करता है और MVA को अपनी एकता और रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

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