Fadnavis और विनोद तावड़े के बीच बीजेपी की अंदरूनी राजनीति

Fadnavis और विनोद तावड़े के बीच गहराते मतभेद चर्चा का विषय बने हुए हैं। यह टकराव न केवल दोनों नेताओं के व्यक्तिगत समीकरणों को दर्शाता है,

महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों देवेंद्र Fadnavis और विनोद तावड़े के बीच गहराते मतभेद चर्चा का विषय बने हुए हैं। यह टकराव न केवल दोनों नेताओं के व्यक्तिगत समीकरणों को दर्शाता है, बल्कि बीजेपी की अंदरूनी राजनीति और चुनावी रणनीतियों पर भी सवाल खड़े करता है।

तावड़े का बयान और विवाद की शुरुआत

हाल ही में विनोद तावड़े ने एक साक्षात्कार में कहा कि मुख्यमंत्री पद के लिए जो नाम शुरुआत में उभरते हैं, वे अक्सर फाइनल नहीं होते। इस बयान को कई लोग देवेंद्र Fadnavis के संदर्भ में देख रहे हैं। यह बयान फडणवीस समर्थकों को खटक गया और बीजेपी के भीतर खेमेबाजी को और हवा दी।

पुराना तनाव

Fadnavis और तावड़े के बीच राजनीतिक तनाव नया नहीं है। तावड़े पहले भी फडणवीस के खिलाफ अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं, खासकर जब उन्हें महाराष्ट्र में अहम भूमिका नहीं दी गई। हालांकि, तावड़े अब पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, लेकिन राज्य की राजनीति से उनकी दूरी ने उनके समर्थकों को निराश किया है  ।

चुनाव से ठीक पहले बढ़ता विवाद

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान यह विवाद बीजेपी के लिए भारी पड़ता दिख रहा है। कई कार्यकर्ता फडणवीस की कार्यशैली से नाखुश हैं। पार्टी के एक वर्ग का मानना है कि फडणवीस अंदरूनी विरोध को दबाने के लिए कठोर रणनीति अपना रहे हैं, जिससे उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है ।

Fadnavis बीजेपी की रणनीति पर असर

चुनाव के एक दिन पहले इन मतभेदों का सामने आना पार्टी के लिए एक झटका है। देवेंद्र फडणवीस की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं, और पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इस बात से चिंतित हैं कि Fadnavis विरोधी गुट इन मतभेदों का फायदा उठा सकता है।

क्या बीजेपी में बदलाव होगा?

पार्टी के भीतर एक धड़ा मानता है कि फडणवीस को अब केंद्रीय राजनीति में लाया जाना चाहिए ताकि महाराष्ट्र में उनकी छवि को बचाया जा सके और पार्टी को नया नेतृत्व दिया जा सके। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इस अंदरूनी संकट को कैसे सुलझाती है .

Gautam Adani और Trump : कैसे बदल गए हालात?

यह विवाद बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। जहां विनोद तावड़े और देवेंद्र Fadnavis के बीच का तनाव लंबे समय से चला आ रहा है, वहीं चुनाव के समय इसे सार्वजनिक रूप से सामने आना पार्टी की एकजुटता पर सवाल खड़ा करता है। अब देखना यह होगा कि पार्टी इस स्थिति से कैसे निपटती है और क्या यह विवाद भविष्य में महाराष्ट्र की राजनीति को नया मोड़ देगा।

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