सस्ती ब्याज दरों की वकालत: FM और पीयूष गोयल के बयान के बाद अब क्या करेगा आरबीआई?

M निर्मला सीतारमण ने हाल ही में सस्ती ब्याज दरों की वकालत की है, जिसे लेकर एक बार फिर यह सवाल उठने लगा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) अगले कदम के रूप में क्या फैसला करेगा।

देश की FM निर्मला सीतारमण ने हाल ही में सस्ती ब्याज दरों की वकालत की है, जिसे लेकर एक बार फिर यह सवाल उठने लगा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) अगले कदम के रूप में क्या फैसला करेगा। यह बयान ऐसे समय पर आया है, जब आरबीआई महंगाई को लेकर अपनी नीति पर कड़ी नजर बनाए हुए है और ब्याज दरों में कटौती की संभावना फिलहाल समाप्त नजर आ रही है। वित्त मंत्री और वाणिज्य मंत्री के इस बयान के बाद, अब यह देखना होगा कि आरबीआई ब्याज दरों में बदलाव के लिए किस दिशा में कदम बढ़ाता है।

FM निर्मला सीतारमण का बयान

मुंबई में आयोजित एक कार्यक्रम में, FM निर्मला सीतारमण ने जोर देते हुए कहा कि भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए सस्ती ब्याज दरों की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार यह सुनने को मिलता है कि ब्याज दरें अधिक हैं, जो औद्योगिक विकास और उत्पादन क्षमता को प्रभावित कर रही हैं। सीतारमण का मानना है कि सस्ती ब्याज दरों के माध्यम से आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता है और उद्योगों के लिए आसान वित्तीय सहायता उपलब्ध हो सकती है।

FM सीतारमण ने यह भी कहा कि ब्याज दरों में कटौती के बारे में लगातार बातचीत करनी होगी, ताकि देश की औद्योगिक क्षमता और विकास की गति में वृद्धि हो सके। उनकी यह टिप्पणी सरकार के व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा प्रतीत होती है, जिसमें आर्थिक वृद्धि और औद्योगिक विस्तार पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।

FM, पीयूष गोयल का भी ब्याज दरों में कटौती पर जोर

वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी हाल ही में ब्याज दरों में कटौती की आवश्यकता पर बल दिया था। गोयल का कहना था कि उच्च ब्याज दरें औद्योगिक विकास में रुकावट डाल सकती हैं, और उद्योगों को सुगम वित्तीय मदद के लिए सस्ती ब्याज दरों की जरूरत है। उनका बयान सरकार की आर्थिक नीति को ध्यान में रखते हुए आया है, जिसमें उद्योगों को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन के लिए कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

आरबीआई की स्थिति: महंगाई की चिंता और ब्याज दर

हालांकि वित्त मंत्री और वाणिज्य मंत्री की ओर से ब्याज दरों में कटौती की वकालत की जा रही है, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) महंगाई को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है। अक्टूबर महीने में खुदरा महंगाई दर छह प्रतिशत के पार पहुंच गई थी, जो आरबीआई के लिए एक चिंता का विषय बन गई है। महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने पहले ही ब्याज दरों में वृद्धि की थी, ताकि बाजार में मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित किया जा सके और महंगाई की दर पर नियंत्रण रखा जा सके।

नवंबर के अंत तक महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई के पास किसी भी प्रकार की ब्याज दर में कटौती की संभावना बहुत कम नजर आ रही है। ऐसे में, यह देखना होगा कि क्या आरबीआई महंगाई दर में थोड़ी कमी आने के बाद दिसंबर में अपनी नीति में कोई बदलाव करता है या फिर उच्च ब्याज दरों को बनाए रखता है।

खाद्य महंगाई पर सीतारमण का बयान

FM सीतारमण ने यह भी कहा कि वर्तमान में महंगाई में वृद्धि मुख्य रूप से आलू, प्याज और टमाटर जैसे जल्दी नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में गिरावट के कारण हो रही है। इन तीन वस्तुओं की आपूर्ति में अचानक कमी होने से खाद्य महंगाई में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा, खाद्य तेलों की कीमतों में भी वृद्धि का महंगाई पर असर पड़ा है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बाकी प्रमुख वस्तुओं की खुदरा महंगाई दर नियंत्रित है और यह चिंता का कारण नहीं बन रही है।

भविष्य की दिशा: ब्याज दरों का संतुलन

सरकार और आरबीआई के बीच ब्याज दरों के मुद्दे पर मतभेद स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। वित्त मंत्री सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल जहां सस्ती ब्याज दरों का समर्थन कर रहे हैं, वहीं आरबीआई महंगाई को नियंत्रित करने के लिए उच्च ब्याज दरों को उचित मानता है। इस तरह के अलग-अलग दृष्टिकोण अंततः भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा को प्रभावित करेंगे।

आरबीआई का यह दायित्व है कि वह महंगाई पर काबू पाए और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए संतुलित नीति बनाए। सरकार की तरफ से सस्ती ब्याज दरों की वकालत की जा रही है, लेकिन यह देखना होगा कि आरबीआई इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है, खासकर जब महंगाई अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है।

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सस्ती ब्याज दरों के पक्ष में सरकार और उद्योगों के मंत्रियों के बयान के बावजूद, भारतीय रिज़र्व बैंक की प्राथमिकता महंगाई को नियंत्रण में रखना है। मौजूदा स्थिति में, आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम नजर आ रही है, लेकिन अगर महंगाई में कमी आती है, तो आरबीआई अपनी नीति में बदलाव कर सकता है। इस स्थिति में, यह महत्वपूर्ण होगा कि आरबीआई अपनी वित्तीय नीति में संतुलन बनाए रखे, ताकि आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके और महंगाई पर नियंत्रण भी रखा जा सके।

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