Maharashtra चुनाव 2024: विधानसभा में गूंजे चुनावी नारे और रणनीतियां

Maharashtra विधानसभा चुनाव 2024 में इस बार एक दिलचस्प घटना सामने आई जब शरद पवार और उनके परिवार के सदस्यों ने धर्म और नारे के मुद्दे पर एक नई दिशा दिखाई।

Maharashtra विधानसभा चुनाव 2024 में इस बार एक दिलचस्प घटना सामने आई जब शरद पवार और उनके परिवार के सदस्यों ने धर्म और नारे के मुद्दे पर एक नई दिशा दिखाई। शरद पवार, जो खुद सार्वजनिक रूप से नास्तिकता की बात करते रहे हैं और उनका परिवार भी उनके विचारों का पालन करता दिखाई देता है, इस बार अपने भतीजे अजीत पवार के खिलाफ भतीजे युगेंद्र पवार को उम्मीदवार के रूप में उतारने के बाद, चुनावी प्रचार में एक नया मोड़ आया।

बारामती में युगेंद्र पवार की पहली चुनावी सभा में शरद पवार और उनकी पुत्री सुप्रिया सुले भी शामिल हुए। इस सभा में सुप्रिया सुले ने मंच से “राम, कृष्ण, हरी” का नारा दो बार जोर से लगाया। यह नारा महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के भक्तों के बीच लोकप्रिय है, जो हर साल पंढरपुर के विट्ठल मंदिर की यात्रा पर जाते हैं और इस नारे का जाप करते हैं। श्रोताओं ने इस नारे का जवाब “बाजवा तुतारी” (तुरही बजाने वाला) से दिया, जो शरद पवार की पार्टी राकांपा का चुनाव निशान है।

इस नारे के जरिए सुप्रिया सुले ने न केवल अपने परिवार की धर्मनिरपेक्ष छवि को बदलने की कोशिश की, बल्कि राज्य के महत्वपूर्ण धार्मिक समुदाय को भी अपनी ओर आकर्षित करने की योजना बनाई। वारकरी संप्रदाय की राजनीतिक महत्ता को समझते हुए, यह नारा उनकी धार्मिक पहचान से जुड़ा हुआ है, और चुनावी रणनीति का हिस्सा बन गया है।

Maharashtra चुनावी नारे और ‘वोट जिहाद’ का मुद्दा

Maharashtra चुनाव के दौरान विभिन्न दलों द्वारा चुनावी नारे गूंजते रहे, जिसमें से एक विवादित नारा था “बटेंगे तो कटेंगे” और “वोट जिहाद”। यह नारे विपक्षी दलों के खिलाफ लगाए गए थे, खासकर उन पर यह आरोप लगाए गए कि वे वोटों के लिए धर्म और जाति के आधार पर समुदायों को विभाजित कर रहे हैं। इन नारों को लेकर कुछ खास राजनीतिक दलों के बीच तीखी बयानबाजी भी देखी गई, और यह आरोप लगाया गया कि यह नारे चुनावी माहौल को तूल देने के लिए जानबूझकर फैलाए जा रहे हैं।

“बटेंगे तो कटेंगे” का नारा खासकर उन गठबंधनों को लेकर था, जो चुनाव में एकजुट होकर सरकार बनाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि “वोट जिहाद” जैसे आरोपों को कुछ पार्टियों ने धर्मनिरपेक्ष चुनावी अभियान में हस्तक्षेप के रूप में देखा। ये नारे विभिन्न समुदायों के बीच ध्रुवीकरण का प्रयास करते नजर आए, और यह भी माना गया कि इस प्रकार के नारों से चुनावी माहौल में कटुता फैल सकती है।

चुनावी प्रचार में नारे और उनके प्रभाव

Maharashtra चुनावों में नारे हमेशा से एक प्रभावी हथियार रहे हैं, जो मतदाताओं को आकर्षित करने के साथ-साथ राजनीतिक संदेश भी देते हैं। महाराष्ट्र के चुनाव में भी ऐसे कई नारों का उपयोग किया गया है, जो राज्य के विभिन्न वर्गों और समुदायों को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए थे।

सुप्रिया सुले द्वारा “राम, कृष्ण, हरी” का नारा लगाना, जहां एक ओर धार्मिक समुदाय को जोड़ने का प्रयास था, वहीं दूसरी ओर यह नारा प्रचार की रणनीति के रूप में भी कार्य कर रहा था। इसके अलावा, विपक्षी दलों ने भी अपनी विचारधारा और नारों को चुनावी मैदान में रखा, जिससे राज्य की राजनीतिक धारा को लेकर मतदाताओं में उत्सुकता बनी रही।

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Maharashtra चुनाव में इस बार नारे सिर्फ चुनावी प्रचार का हिस्सा नहीं बल्कि राज्य की सामाजिक और धार्मिक पहचान को भी चुनौती दे रहे थे। शरद पवार के परिवार का “राम, कृष्ण, हरी” का नारा और “वोट जिहाद” जैसे विवादास्पद नारे दोनों ही दिखाते हैं कि चुनावी राजनीति में कैसे धार्मिक और सामाजिक मुद्दे प्रमुख हो सकते हैं। इन नारों के असर से यह साफ है कि इस चुनावी माहौल में पार्टियां न सिर्फ अपनी पहचान मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं, बल्कि मतदाताओं को विभिन्न समुदायों के आधार पर जोड़ने और बांटने का भी प्रयास कर रही हैं।

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