Netaji Subhash Chandra Bose की मौत की जांच की मांग वाली याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने दी कड़ी फटकार

Netaji सुभाष चंद्र बोस की मौत के बारे में जांच की मांग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने इस याचिका को गैर-जरूरी

भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी Netaji सुभाष चंद्र बोस की मौत के बारे में जांच की मांग करने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने इस याचिका को गैर-जरूरी और अस्वीकार्य बताते हुए स्पष्ट किया कि सरकार चलाने और ऐतिहासिक तथ्यों की जांच करने का काम अदालत का नहीं है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को भी नकारते हुए कहा कि यह मामला न्यायिक प्रक्रिया से बाहर है, और ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट हर समय दखल नहीं दे सकता।

इस याचिका को पिनाक मोहंती, जो कि विश्व मानवाधिकार संरक्षण संगठन के कटक जिले के सचिव हैं, ने दायर किया था। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि Netaji की मृत्यु 1945 में ताइवान में हुई विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी और इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की आवश्यकता है। हालांकि, भारत सरकार पहले ही एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) के जवाब में यह स्पष्ट कर चुकी है कि नेताजी की मौत उसी वर्ष ताइवान में एक दुर्घटना में हुई थी।

कोर्ट की कड़ी फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पिनाक मोहंती को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि उनकी याचिका में निराधार और गैर जिम्मेदाराना आरोप लगाए गए हैं, खासकर उन नेताओं के खिलाफ जो अब जीवित नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा और उनका भी आरोपों से बचाव नहीं किया, जो पूरी तरह से अनुचित था। इस तरह के आरोप राजनीतिक उद्देश्य के तहत लगाए गए प्रतीत होते हैं और इसे गंभीरता से नहीं लिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की प्रामाणिकता पर सवाल उठता है, और यह आवश्यक है कि उनकी याचिका की सच्चाई की जांच की जाए। कोर्ट ने यह संकेत दिया कि यदि याचिकाकर्ता को जनता के हित में काम करने का दावा है, तो पहले यह साबित करना होगा कि उन्होंने मानवाधिकारों के लिए वास्तविक काम किया है, बजाय इसके कि केवल हास्यास्पद आरोप लगाकर अदालत का समय बर्बाद किया जाए।

न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र प्रयोग

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा कि न्यायिक शक्ति का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करना अदालत का कर्तव्य है, लेकिन यह किसी भी मामले में अनावश्यक दखल से बचने की आवश्यकता है। जस्टिस नागरत्ना ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट को ऐसी याचिकाओं का समाधान नहीं करना चाहिए, जो केवल राजनीतिक या ऐतिहासिक विवादों को बढ़ावा देती हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर हर राजनीतिक या ऐतिहासिक मामले में अदालत को दखल देना शुरू कर दिया जाए तो यह न्यायिक व्यवस्था के सम्मान के खिलाफ होगा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत में इतिहास और राष्ट्रीय नेतृत्व से जुड़े मामलों को सरकार और इतिहासकारों द्वारा संभाला जाना चाहिए, न कि अदालतों द्वारा। ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप न्यायिक सिद्धांतों के विपरीत हो सकता है।

Netaji की मृत्यु और सरकार का रुख

भारत सरकार ने पहले ही इस बात की पुष्टि की थी कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 1945 में ताइवान में हुई एक विमान दुर्घटना में हुई थी। यह जानकारी एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से प्राप्त की गई थी, जिसके आधार पर सरकारी अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया था कि बोस की मौत के बाद से कई प्रकार के दावे और कयास लगाए गए हैं, लेकिन कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है जो उनकी मौत को लेकर नए तथ्यों को सामने लाए।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि नेताजी के निधन को लेकर ऐतिहासिक साक्ष्य और सरकार के पहले के निर्णयों पर अदालत का कोई नया फैसला नहीं आएगा।

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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला याचिकाकर्ता द्वारा Netaji सुभाष चंद्र बोस की मौत के मामले में जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज करने पर आया है। कोर्ट ने यह फैसला देते हुए कहा कि यह काम न्यायपालिका का नहीं है और ऐतिहासिक विवादों पर अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। साथ ही, याचिकाकर्ता की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे उपयुक्त जांच की आवश्यकता की बात की है। यह फैसला न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं को स्पष्ट करता है और यह भी दर्शाता है कि सरकार के फैसले और ऐतिहासिक तथ्यों के मामले में अदालत का दखल उचित नहीं है।

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