Pashupati Paras ,RLJP पार्टी ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला

Pashupati पारस, जो कि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अध्यक्ष हैं, ने एनडीए (National Democratic Alliance) से अलग होने की संभावना जताई है।

Pashupati , NDA में बढ़ते मतभेद

भारतीय राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल मच रही है, क्योंकि Pashupati पारस, जो कि लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अध्यक्ष हैं, ने एनडीए (National Democratic Alliance) से अलग होने की संभावना जताई है। सूत्रों के अनुसार, पारस इस महीने के अंत तक एनडीए से अपने संबंधों को समाप्त करने का ऐलान कर सकते हैं। इस निर्णय के पीछे पार्टी में बढ़ते मतभेद और एनडीए में उनकी घटती राजनीतिक अहमियत को कारण माना जा रहा है।

चिराग पासवान के कारण उत्पन्न हुआ तनाव

Pashupati पारस का एनडीए से नाराज होने का मुख्य कारण पार्टी के भीतर और एनडीए के सहयोगी दलों के साथ बढ़ते तनाव को बताया जा रहा है। खासकर चिराग पासवान, जो पहले LJP के अध्यक्ष थे और अब अपनी अलग पार्टी चला रहे हैं, उनके साथ रिश्तों में खटास के कारण पारस को लगातार दबाव महसूस हो रहा है। चिराग के नेतृत्व में LJP के कई नेता भी एनडीए के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं, जिससे पारस की राजनीतिक स्थिति कमजोर हुई है।

Pashupati और चिराग के बीच खटपट सार्वजनिक हो चुकी है, और दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी कर चुके हैं। चिराग पासवान की पार्टी और उनके राजनीतिक आंदोलन ने पारस के लिए कई मुश्किलें खड़ी की हैं, खासकर बिहार में जहां दोनों की पार्टी के बीच सत्ता संघर्ष की स्थिति है। इस स्थिति ने एनडीए के भीतर पारस की भूमिका को चुनौती दी है।

NDA से अलग होने का निर्णय

Pashupati ने खुद इस बात के संकेत दिए हैं कि वे एनडीए से अलग हो सकते हैं, और इस बारे में वे जल्द ही सार्वजनिक बयान जारी करेंगे। इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है, क्योंकि एनडीए में पारस और उनकी पार्टी का एक महत्वपूर्ण स्थान था। हालांकि, पारस के अलग होने के बाद LJP और बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।

NDA में घटती भूमिका

एनडीए में पारस की भूमिका पिछले कुछ समय से सीमित होती जा रही थी। पार्टी के भीतर चिराग पासवान के बढ़ते प्रभाव और कुछ अन्य सहयोगी दलों के साथ मतभेदों ने उनकी स्थिति को कमजोर किया है। पारस की पार्टी के लिए यह कठिन समय है, क्योंकि उन्हें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि बिहार में भी अपनी पहचान बनाए रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

आने वाले समय में क्या होगा?

Pashupati के एनडीए से अलग होने के बाद उनकी अगली रणनीति क्या होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। वे अकेले चुनावी मैदान में उतर सकते हैं, या फिर कोई नया गठबंधन बना सकते हैं, जिससे उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रहे। बिहार की राजनीति में उनकी स्थिति को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि वे किस दिशा में आगे बढ़ेंगे, लेकिन यह निश्चित है कि उनके इस निर्णय से बिहार के राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आ सकता है।

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Pashupati पारस का एनडीए से अलग होने का निर्णय बिहार और भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है। चिराग पासवान के साथ बढ़ती नासमझी और एनडीए के भीतर घटती स्थिति ने पारस को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया है। अब यह देखना होगा कि वे अपने अगले कदम के रूप में किस दिशा में आगे बढ़ते हैं और इसका बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

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