पृथ्वी के 10 फ़ीसदी हिस्से में खतरनाक उल्कापिंड का मलबा, आखिर मिल गई वो जगह

धरती बनने की शुरुआत से लेकर अभी तक न जाने कितने ही आकाशीय पिंड धरती पर गिरे हैं। इनमे कुछ छोटे खगोलीय पिंड, तो कई बार विशाल पिंड शरती पर गिरे। इनमे से एक उल्का पिंड तकरीबन आठ लाख साल पहले पृथ्वी से टकराया था जो अभी तक पृथ्वी से टकराया सबसे बड़ा उल्का पिंड माना जा रहा है। पृथ्वी से टकराने पर इसका मलबा तीन महाद्वीपों एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका तक फैल गया था। यानी पृथ्वी की सतह के 10 फीसदी हिस्से में यह मलबा फैला था।

सैंकड़ों साल पहले से इस उल्का पिंड के पृथ्वी पर गिरने की जगह खोजी जा रही थी। लेकिन इसके गिरने की ठीक जगह का पता नहीं चल पा रहा था। सदी भर की मेहनत के बाद अब शोधकर्ताओं को उस जगह का पता चला है जहाँ यह 1.2 मील चौड़ा उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरा था। जानकारी के अनुसार, पृथ्वी के इतिहास का सबसे बड़ा उल्का पिंड दक्षिणपूर्व लाओस में टकराया था। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी कंबोडिया से मध्य लाओस, दक्षिणी चीन और पूर्वी थाइलैंड से वियतनाम तक एक खोज अभियान चलाया गया। जिसमे यह खुलासा हुआ।

दरअसल, पृथ्वी के वातावरण की परतों से गुजरते हुए ये उल्का पिंड आग के गोले बन जाते हैं। इनके धरती से टकराते ही वहां की चट्टानें अत्यधिक गरम होकर उड़ जाती हैं। शेष द्रव्यशील चट्टानें ठंडी होकर टेक्टाइट्स में बदल जाती हैं। इन्ही टेक्टाइट्स के ज़रिए उल्कापिंड के गिरने की जगह का पता चलता है। लेकिन इस मामले में शोधकर्ताओं ने बताया कि उल्कापिंड से बना गड्ढा जमीन के अंदर गुम होने की वजह से अभी तक इस उल्का पिंड के गिरने की ठीक जगह का अनुमान नहीं लगाया जा सका था। हालाँकि आधुनिक शोध में सबसे ज़्यादा टेक्टाइट्स इंडोचाइना(कंबोडिया, लाओस और वियतनाम) प्रायद्वीप में मिले।

इस सुराग के बाद गड्ढे की खोज पहले कंबोडिया, मध्य लाओस और दक्षिणी चीन में प्राचीन जगहों पर की गई। इन जगहों पर बहुत पुराने उल्कापिंडों के अवशेष पाए गए। इसके बाद आखिर में दक्षिणी लाओस के बोलवेन प्लाटू में ज्वालामुखी क्षेत्र मिला। जिसमे तकरीबन 51000 से 780,000 साल पुराना लावा प्रवाह मिला। वैज्ञानिकों के अनुसार, ज्वालामुखी क्षेत्र की चट्टानों में टेक्टाइट्स था।

शोध रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं को बोलवेन प्लाटू में जमीन के नीचे 300 फुट गहरा, 11 मील लंबा और 8 मील चौड़ा अंडाकार क्षेत्र तलाशने पर अजीब गुरुत्वाकर्षण मिला। यहाँ मिले अवशेषों और असाधारण गुरुत्वाकर्षण के चलते वैज्ञानिकों ने इसे ही उल्कापिंड के गिरने की जगह माना है। इसके पहले न मिलने की वजह इन गढ्ढों का अत्यधिक बड़ा आकर होना बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार, 2300 वर्ग मील के पठारों पर हुए विस्फोटों से 1000 फुट गहरे वलयाकार गड्ढे कर बन गए थे। इसके चलते ज्वालामुखी क्षेत्र बन गया जिसने उल्का पिंड के टकराने से बने गड्ढे को छिपा लिया था।

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