हरियाणा जीत: RSS की चिंता बढ़ी

RSS की नाराजगी का मुख्य कारण यह है कि, वर्षों से बीजेपी की राजनीतिक सफलता में सहायक रहे आरएसएस के नेता अब बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व से असंतुष्ट हैं।

हरियाणा चुनाव परिणाम ने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। जहां बीजेपी के लिए यह जीत सत्ता में स्थिरता का संकेत है, वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए यह चिंता का कारण बन चुका है। इस जीत का श्रेय मुख्य रूप से अमित शाह और नरेंद्र मोदी की राजनीतिक रणनीति को दिया जा रहा है, न कि RSS की किसी सक्रियता को। इससे संघ में असंतोष और दरार गहराती जा रही है।

RSS की नाराजगी का मुख्य कारण यह है कि, वर्षों से बीजेपी की राजनीतिक सफलता में सहायक रहे आरएसएस के नेता अब बीजेपी के मौजूदा नेतृत्व से असंतुष्ट हैं। संघ का मानना है कि बीजेपी ने अपने वैचारिक मूल्यों और हिंदुत्व के सिद्धांतों को नजरअंदाज कर सत्ता की राजनीति को प्राथमिकता दी है। इस स्थिति ने आरएसएस को चिंतित कर दिया है, क्योंकि वे हमेशा बीजेपी की मूल विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं।

हरियाणा में बीजेपी की जीत को मोदी और शाह की रणनीति का नतीजा माना जा रहा है। चुनाव प्रचार में RSS की भागीदारी नगण्य थी, जो यह दर्शाता है कि अब RSS और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच संबंध पहले जैसे नहीं रहे। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी हिंदुत्व की विचारधारा की ओर लौटे, जबकि मोदी और शाह सत्ता में बने रहने के लिए व्यावहारिक और चुनावी राजनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

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यह स्थिति आरएसएस के लिए एक चुनौती बनती जा रही है, क्योंकि संघ को यह चिंता है कि यदि बीजेपी अपने मूल सिद्धांतों से दूर होती रही, तो इसका दीर्घकालिक प्रभाव पार्टी की पहचान और जन समर्थन पर पड़ेगा। आरएसएस का यह मानना है कि चुनावी जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि पार्टी अपने सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहे।

इस प्रकार, हरियाणा की जीत ने न केवल बीजेपी की सत्ता को मजबूत किया है, बल्कि आरएसएस के भीतर असंतोष और चिंता को भी जन्म दिया है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो आगे चलकर इसका असर दोनों संगठनों के बीच के संबंधों पर पड़ सकता है, और इससे भारतीय राजनीति में नई चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

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