बीजेपी नेता पर हत्या के प्रयास का आरोप, पीड़ित ने पुलिस पर लगाये गंभीर आरोप – कोर्ट भी हुआ सख़्त।

आखिर दोबारा जांच की आवश्यकता क्यों पड़ी ? बड़ा सवाल तो जरूर है।

उत्तर प्रदेश: ग़ाज़ियाबाद सिविल कोर्ट ने राज कुमार गिरी बनाम विकास गर्ग मामले में कविनगर पुलिस द्वारा लगाई गई चार्जशीट रद्द कर दी है।

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जसवीर सिंह यादव ने कविनगर थाना थानाध्यक्ष को आदेशित किया है की हत्या के प्रयास से जुड़े मामले में दोबारा जाँच करके पुनः चार्जशीट दाखिल की जाए।
बीजेपी आर्थिक प्रकोष्ठ के सायोजक विकास गर्ग की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। पहले धोखाधड़ी और ब्लैकमेलिंग और अब हत्या के प्रयास से जुड़े एक मामले में ग़ाज़ियाबाद कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जसवीर सिंह यादव ने राज कुमार गिरी बनाम विकास गर्ग से जुड़े मामले में आईओ अभीर सिंह द्वारा की गई विवेचना को रद्द कर दिया है।

पीड़ित राज कुमार गिरी का आरोप है कि सत्ता की धौंस दिखाकर विकास गर्ग लंबे समय से उसे प्रताड़ित कर रहा है।इतना नहीं उत्तर प्रदेश कि ग़ाज़ियाबाद पुलिस भी उसकी कोई सुनवाई नहीं कर रही। उल्टे बार बार विकास गर्ग को बचाने के लिए झूठी और भ्रामक विवेचना करके कोर्ट का समय बर्बाद कर रही है।

क्या है पूरा मामला?

ये मामला 2023 का है जब कथित तौर पर पीड़ित राज कुमार गिरी और विकास गर्ग के बीच विवाद शुरू हुआ। जिसके बाद आरोपी ने सत्ता की धौंस दिखाकर लाखों रुपए की धोखाधड़ी की। पीड़ित का आरोप है कि विकास गर्ग ग़ाज़ियाबाद पुलिस की मिलीभगत से उन्हें निरंतर परेशान कर रहा है। इस मामले में दो विवेचक बदल चुके हैं लेकिन हर बार पुलिस मैनेज हो हो जाती है।

विवेचक अभीर सिंह के बाद जब जाँच विवेचक यतेन्द्र कुमार को सुपुर्द की गई और नतीजा आरोपी के फ़ेवर में ही रहा। लेकिन अब एक बार फिर पीड़ित राज कुमार गिरी की माँग पर कोर्ट ने पुनः विवेचना के आदेश दिये हैं।

ग़ाज़ियाबाद कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने कहा है की मुक़दमा संख्या 965/2023 में जिसमे विकास गर्ग के ख़िलाफ़ धारा 420, 323, 504, 506, 307, 392, 120B के तहत थाना-कविनगर, जिला गाजियाबाद में मामला दर्ज है। उसमें विवेचक द्वारा प्रेषित अन्तिम रिपोर्ट निरस्त की जाती है और सम्बन्धित थानाध्यक्ष को निर्देशित किया जाता है कि वह प्रस्तुत प्रकरण में प्रोटेस्ट प्रार्थना-पत्र में वर्णित तथ्यों / साक्षीगण के बयान और चिकित्सीय साक्ष्य के संदर्भ में अग्रिम विवेचना कराया जाना सुनिश्चित करें।

क्या है धारा 307?

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 के तहत, हत्या के प्रयास के अपराध और उसके लिए सज़ा का प्रावधान है।इस धारा के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे इरादे या ज्ञान से कोई काम करता है जिससे किसी की मौत हो सकती है, तो उसे हत्या का प्रयास करने का दोषी माना जाएगा।

इस मामले में, आरोपी को दस साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर इस काम से किसी को नुकसान पहुंचता है, तो आरोपी को उम्रकैद या कोई और सज़ा हो सकती है।

Related Articles

Back to top button