‘इलेक्ट्रोल बॉंड घोटाले की SIT जांच की मांग वाली याचिका खारिज’

'इलेक्ट्रोल बॉंड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दी गई चंदा प्रणाली जिसमें दानकर्ता की पहचान नहीं उजागर होती थी, अब रद्द की जा चुकी है'

इलेक्ट्रोल बॉंड के माध्यम से राजनीतिक दलों को चंदा देने की प्रणाली, जो दानकर्ता की पहचान को गोपनीय रखती थी, अब पूरी तरह से रद्द कर दी गई है। इस प्रणाली ने राजनीतिक फंडिंग के क्षेत्र में विवादों और चिंताओं को जन्म दिया था, जिसमें दानकर्ताओं की पहचान छुपी रहती थी और इस वजह से पारदर्शिता की कमी महसूस की जाती थी।

इलेक्ट्रोल बॉंड योजना की शुरुआत 2018 में की गई थी। इसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को अनाम दान प्राप्त करने का एक वैध तरीका प्रदान करना था, जिससे दानकर्ता की पहचान को गुप्त रखा जा सके। हालांकि, इस व्यवस्था ने राजनीतिक चंदे की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए और कई आलोचक इसे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को बढ़ावा देने वाला मानते थे।

सुप्रीम कोर्ट और अन्य कानूनी संस्थानों द्वारा उठाए गए मुद्दों और दलीलों के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने इस प्रणाली की समीक्षा की और अंततः इसे रद्द करने का निर्णय लिया। अब राजनीतिक दलों को चंदा प्राप्त करने के लिए अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी तरीके अपनाने की आवश्यकता होगी। इस निर्णय से यह उम्मीद जताई जा रही है कि भविष्य में राजनीतिक फंडिंग में अधिक स्पष्टता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी।

इस निर्णय के बाद, राजनीतिक दलों और समाज के विभिन्न हिस्सों में प्रतिक्रिया आना शुरू हो गई है। कई लोग इसे लोकतंत्र की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानते हैं, जबकि कुछ इसे एक अस्थायी उपाय मानते हैं और अधिक व्यापक सुधार की आवश्यकता की बात करते हैं। अब देखने की बात होगी कि नए नियमों और व्यवस्थाओं के तहत राजनीतिक चंदा देने की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और प्रभावी होती है।

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