CJI चंद्रचूड़ के सामने नेहरू का खत, खुला सालों पुराना राज

चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की बेंच ने गुरुवार को एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण की अनुमति दी है,

सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण में एक बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की बेंच ने गुरुवार को एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण की अनुमति दी है, जिससे अब इन कोटे के भीतर अलग-अलग समूहों को आरक्षण मिल सकेगा।

इस फैसले का अर्थ यह है कि एससी-एसटी आरक्षण में विभिन्न उप-समूहों को अलग से आरक्षण देने का प्रावधान किया जा सकता है, जिससे इन समुदायों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को लाभ पहुंचाया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने 2004 के ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले के फैसले को पलट दिया है, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों को उप-समूहों में विभाजित नहीं किया जा सकता।

इस ऐतिहासिक फैसले के दौरान, जस्टिस पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत की। उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के 1961 में लिखे गए एक पत्र का उल्लेख किया, जिसमें नेहरू ने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी।

नेहरू ने अपने पत्र में लिखा था कि वे चाहते थे कि भारत हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने, और दोयम दर्जे को बढ़ावा देने पर उन्होंने चिंता जताई थी। उनका मानना था कि पिछड़े समूह की मदद करने का सबसे प्रभावी तरीका उन्हें अच्छी शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के अवसर प्रदान करना है, न कि उन्हें आरक्षण के रूप में विशेषाधिकार देना।

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने 6:1 के बहुमत से इस बात की अनुमति दी कि राज्यों को एससी और एसटी के भीतर उपवर्गीकरण करने का अधिकार है, जिससे सबसे अधिक जरूरतमंद और पिछड़ी जातियों तक आरक्षण का लाभ पहुंच सके।

इस फैसले ने ईवी चिन्नैया मामले में आए निर्णय को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों को किसी भी तरह से उपवर्गों में विभाजित नहीं किया जा सकता। 2020 में, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता जताई थी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आरक्षण का लाभ सबसे अधिक जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे।

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