क्या है ‘अभय मुद्र’, जिसका राहुल ने किया जिक्र

राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा था कि 'अभय मुद्रा', जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक संकेत माना जाता है, इस्लाम में भी पाया जाता है।

हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक बयान ने विवाद खड़ा कर दिया है, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि इस्लाम में भी ‘अभय मुद्रा’ का प्रचलन होता है। इस बयान पर अजमेर शरीफ दरगाह के सैयद जैनुल आबेदीन अली खान चिश्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और इसे नकार दिया है। आइए जानते हैं इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी।

राहुल गांधी का बयान

राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा था कि ‘अभय मुद्रा’, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक संकेत माना जाता है, इस्लाम में भी पाया जाता है। उनका कहना था कि यह मुद्रा विभिन्न धर्मों में समान रूप से सम्मानित है और इसका उद्देश्य शांति और साहस का संदेश देना है।

अजमेर के चिश्ती की प्रतिक्रिया

अजमेर शरीफ दरगाह के सैयद जैनुल आबेदीन अली खान चिश्ती ने राहुल गांधी के इस बयान को सिरे से नकार दिया। उन्होंने कहा, “इस्लाम में ‘अभय मुद्रा’ जैसा कोई संकेत या परंपरा नहीं है। इस्लाम के अपने धार्मिक संकेत और परंपराएं हैं, जो विशिष्ट और स्पष्ट हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि इस्लाम में हाथ उठाने का एकमात्र संकेत ‘दुआ’ के समय होता है, जब मुसलमान अल्लाह से प्रार्थना करते हैं। ‘अभय मुद्रा’ जैसा कोई संकेत इस्लामी शिक्षाओं में नहीं मिलता।

धार्मिक विशेषज्ञों की राय

धार्मिक विशेषज्ञों का मानना है कि ‘अभय मुद्रा’ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भयमुक्ति और सुरक्षा का प्रतीक है। इसे भगवान बुद्ध और अन्य हिंदू देवताओं के चित्रों में देखा जा सकता है। दूसरी ओर, इस्लाम में ऐसी कोई मुद्रा या संकेत नहीं पाया जाता है।

धार्मिक विशेषज्ञों के अनुसार, इस्लाम के धार्मिक संकेतों में हाथ उठाकर दुआ करना, सलाम (शांति) का अभिवादन देना आदि शामिल हैं, लेकिन ‘अभय मुद्रा’ नहीं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

राहुल गांधी के बयान और अजमेर के चिश्ती की प्रतिक्रिया ने राजनीतिक हलचल भी मचा दी है। विभिन्न दलों के नेताओं ने इस पर अपनी राय दी है। कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के बयान को अज्ञानता का परिणाम बताया, जबकि कुछ ने इसे राजनीतिक चाल करार दिया।

निष्कर्ष

राहुल गांधी के ‘अभय मुद्रा’ के बयान पर अजमेर के चिश्ती की प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस्लाम में ऐसी कोई परंपरा नहीं है। इस विवाद ने धार्मिक और राजनीतिक दोनों ही क्षेत्रों में चर्चा को जन्म दिया है। यह महत्वपूर्ण है कि धार्मिक मुद्दों पर बयान देने से पहले पूरी जानकारी प्राप्त की जाए, ताकि किसी भी प्रकार की गलतफहमी या विवाद से बचा जा सके।

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