सपा की जीत के मायने
7 सीटों पर उपचुनाव के नतीजों आए लेकिन UP की घोसी विधानसभा सीट ही सुर्खियों का केन्द्र बनी, क्या है वजह?
8 सितम्बर के दिन जहां एक ओर दुनियाभर के शीर्ष नेता भारत में G-20 शिखर सम्मेलन में शिरकत लेने पहुंच रहे थे। वहीं विधानसभा उपचुनाव के 7 सीटों के नतीजे आए। 7 में से 3 पर बीजेपी जीती, कांग्रेस को एक, TMC और JMM को भी एक एक सीट मिली। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा का केन्द्र उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा उपचुनाव की सीट रही।
इस सीट पर सपा ने 40 हजार से भी अधिक वोट पाकर अपनी जीत दर्ज की। जिस पर अलग अलग प्रतिक्रियाएं आ रही है। कुछ इसे इंडिया गठबंधन की जीत के तौर पर देख रहें। तो कुछ दो नेताओं की जोड़ी का जादू बता रहे जिनके कारण BJP को UP में हार का सामना करना पड़ा।
साल 2022 के विधानसभा चुनावों में घोसी विधानसभा सीट पर दारा सिंह चौहान ने समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव जीता था। लेकिन दारा सिंह और सपा की ज्यादा दिन बनी नहीं। जल्द ही दारा सिंह सपा छोड़ बीजेपी में आ गए। जिसके बाद घोसी सीट खाली हो गई। नतीजतन उपचुनाव की नौबत आ गई। साल 2022 के उपचुनाव में दारा सिंह ने BJP के उम्मीदवार विजय कुमार राजभर को करीब 22 हजार वोटों से हराया था।
जो दारा सिंह साल 2022 में सपा से जीत कर आए थे। वे ही 2023 के उपचुनाव में BJP के उम्मीदवार बने। दारा सिंह चौहान सपा से BJP में तो चले गए लेकिन उनके वोट उनके साथ नहीं गए। जहां घोसी उपचुनाव में सपा के सुधाकर सिंह को 1 लाख 24 हजार 427 वोट मिले वहीं बीजेपी के दारा सिंह चौहान को 81 हजार 668 वोटों के साथ संतोष करना पड़ा।
इस जीत के बाद सुधाकर सिंह को चौतरफा बधाईयां तो मिल रही है, लेकिन इस जीत के पीछे का असली किंग मेकर तो कोई और है। जानकार इस जीत का असली हकदार अखिलेश यादव के चाचा और सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल सिंह यादव को बता रहें।
ये पहला मौका नहीं जब शिवपाल सिंह यादव का नाम चाणक्य की तरह लिया जा रहा। इससे पहले भी शिवपाल ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में अपनी कुशल रणनीति के तहत सपा को जीत दिलाई थी।
मीडिया में भले ही शिवपाल का नाम अखिलेश जैसा नहीं आता। लेकिन शिवपाल अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव के समय से ही दूसरे नंबर पर आते थे। सपा के संगठन को मैनेज करने का काम शिवपाल ही करते थे। शिवपाल को मुलायम सिंह के साए के तौर पर देखा जाता था। यहां तक तो सब ठीक था।
लेकिन अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों में विवाद शुरू हो गया। अखिलेश की राजनीतिक शैली ये शिवपाल इत्तेफाक नहीं रखते थे। भले ही अखिलेश CM पद पर थे लेकिन पार्टी में पकड़ शिवपाल की मजबूत थी।
इस विवाद पर मुलायम सिंह यदा कदा बीच बचाव करते दिखते लेकिन बात बनीं नहीं। कभी मुलायम अपने बेटे को पार्टी से 6 साल के लिए निकाल दिया। तो कभी शिवपाल सपा को छोड़ अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम उन्होंने “प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा” रखा।
मुलायम सिंह के रहते कई दफा दोनों को साथ लाने के नाकाम प्रयास हुए। फिर मौका आया साल 2022 मैनपुरी उपचुनाव का जब इस चाचा भतीजा 6 साल के बाद अंततः साथ आ गए। और एक ही बैनर के तले चुनाव लड़ा। बताया गया कि दोनो मुलायम सिंह की विरासत को साथ मिलकर आगे बढ़ाएंगे। बानगी देखिए कि घोसी में मिली जीत के बाद ट्विटर से लेकर हर जगह प्रत्याशी सुधाकर सिंह से ज्यादा इसी जोड़ी की चर्चा हो रही है।
साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए अखिलेश यादव ने सपा को मजबूत करने की जिम्मेदारी चाचा शिवपाल यादव को पहले ही दे दी है। देखना होगा कि क्या शिपपाल अपना जादू लोकसभा के चुनावों में भी दिखा पाएंगे या नहीं।
अगर इस कहानी से आप कुछ सीखना/ समझना चाहते है तो यह समझिए भारतीय राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता।
उदाहरण के लिए इस सीट से मायावती की बसपा ने अपना कोई भी प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा। जबकि बसपा दोनों गुटों एनडीए और इंडिया गठबंधन में से किसी भी पार्टी की राजनीतिक पक्षधर नहीं बताती। अब भविष्य में इस स्थिति में क्या बदलाव होगा। ये तो वक्त ही बताएगा। बाकी आपको ये खबर कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में बताएं।