लखनऊ के हिंदू पुजारी ने मोहर्रम में लिया हिस्सा, लोग देख कर रह गए दंग।
मुहर्रम मनाने के लिए हिंदू पुजारी ने जुलूस में ज़ंजीरज़ानी किया।
- उत्तर प्रदेश:मुहर्रम पैगंबर मोहम्मद के पोते, हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में मारे गए थे। इस दौरान पैगंबर के दामाद अली और अली के बड़े बेटे हसन को भी याद किया जाता है। जैसे कि किसी धर्मी कारण के लिए कष्ट सहना और मरना।
हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर मोहर्रम के मातम का एहतमाम किया जा रहा है। इस दौरान देशभर से मातम की तस्वीरें भी सामने आ रही हैं। लेकिन एक तस्वीर उत्तर प्रदेश के लखनऊ मैं देखने को मिली जहां एक हिंदू युवक ने भगवा रंग धारण करके मुस्लिम समुदाय के साथ मिलकर मोहर्रम जुलूस में हिस्सा लिया। शायद यही वजह है की लखनऊ में मोहर्रम के जुलूस की तस्वीर गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रही हैं।अपनी पीठ पर ज़ंजीरज़नी करते नजर आए शिव स्वामी सारंग लखनऊ में जुलूस के दौरान जब शिया समुदाय के लोग लखनऊ की सड़कों पर मातम मना रहे थे, इस दौरान शिव स्वामी सारंग भी वहां पहुंच गए और उन्होंने या अली, या हुसैने के नारों के बीच मातम मनाया।मातम के दौरान शिव स्वामी सारंग अपने हाथों से अपनी पीठ पर ज़ंजीर ज़नी करते नजर आए।
बता दें कि 10 मोहर्रम के दिन कर्बला के मैदान में तब के बादशाह यजीद की फौज के साथ इस्लाम की रक्षा के लिए जंग करते हुए हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इम्माम हुसैन शहीद हो गए थे। दुनियाभर के शिया मुसलमान उनकी शाहदत को याद करते हुए मोहर्रम के दिन काले कपड़े पहनकर मातम मनाते हैं।इस दौरान ताजिया के साथ जुलूस भी निकाला जाता है।
क्या है आशूरा और मोहर्रम का संबंध?
इस्लाम धर्म में चार माह बेहद पवित्र होते हैं।इसमें एक महीना मोहर्रम का है।मोहर्रम माह में दसवें दिन को आशूरा कहते हैं।इसी महीने इस्लामिक नववर्ष भी होता है। आशूरा इस्लामिक कैलेंडर का सबसे बुरा दिन माना जाता है।वस्तुतः यह मातम का पर्व होता है। आशूरा के दिन इमाम हुसैन की शहादत की याद में शिया मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग काले रंग के कपड़े पहनकर विभिन्न किस्मों के ताजिया के साथ जुलूस निकालते हैं।
गौरतलब है कि इमाम हुसैन ने इस्लाम और मानवता के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी थी, इसी वजह से आशुरा को इस्लामिक कैलेंडर का सबसे बुरा दिन माना जाता है।