आखिर पहली बार मोदी सरकार राहुल गांधी से क्यों डरी?

नई दिल्ली –राहुल गांंधी की संसद सदस्यता को रद्द कर दिया गया है। आज लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी करते हुए इसकी जानकारी दी। 23 मार्च को सूरत की एक अदालत ने आपराधिक मानहानि के एक मामले में उनको दोषी ठहराते हुए दो साल कैद की सजा सुनाई थी
लेकिन बीजेपी अचानक राहुल गांधी को लेकर इतनी आक्रामक क्यों हो गई है, इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन अपना पूरा ध्यान एक व्यक्ति पर केंद्रित कर बीजेपी राहुल गांधी की ही मदद कर रही है।लगातार बहुमत के साथ दो लोकसभा चुनाव जीतने वाली बीजेपी के नेताओं में हाल तक कहीं भी सरकार बना लेने की काबिलियत का दम नजर आता था।पार्टी केंद्र में ही नहीं बल्कि हर राज्य में भी एक के बाद चुनाव जीतती जा रही थी।
कई राज्यों में तो पार्टी ने चुनाव हारने के बाद भी सरकार बना ली और चुनावी हार और जीत के बीच के अंतर को खत्म ही कर दिया।मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के घटनाक्रम इसके बड़े उदाहरण हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

लेकिन इन दिनों जिस तरह पार्टी के नेताओं, सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों ने अपनी पूरी ऊर्जा विपक्ष के सिर्फ एक नेता की आलोचना में झोंक दी है, उससे बीजेपी में असुरक्षा के संकेत मिल रहे हैं।पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया। दूसरे देशों की सरकारें इस पर भले कुछ ना कहती हों, लेकिन दुनिया भर के कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां लगातार भारत की तरफ देख रहे हैं।बीजेपी के इस अभियान की शुरुआत में एक केंद्रीय मंत्री ने राहुल गांधी के इन बयानों की आलोचना करते हुए उन्हें पप्पू कहा था।और अब अचानक वही पप्पू बीजेपी के लिए इतना खतरनाक हो गया है कि पार्टी चाहती है उसे संसद से निकाल बाहर किया जाए।दिलचस्प यह भी है देश के बड़े ताकतवर नेता नरेंद्र मोदी को आखिर खुद चौकीदार क्यों बनना पड़ा और फिर उसके बाद कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक आवाज निकल कर बाहर आती है कि देश का चौकीदार चोर है। इन सारी गतिविधियों को देखा जाए तो कहीं ना कहीं राहुल गांधी को लेकर बीजेपी सरकार में डर लगातार काफी समय पहले से ही बनता जा रहा था। यही कारण है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस डर को मिटाने के लिए शायद बीजेपी सरकार ने नई पारी का शुभारंभ किया है। लेकिन किसी ने सच कहा है, भविष्य की रणनीति को बनाने और जानने से पहले अतीत के पन्नों में झांकना जरूरी बन जाता है। और शायद बीजेपी यह करना भूल गई है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

संसद से तो राहुल गांधी को जनता ने ही लगभग निकाल बाहर कर दिया था।उनके नेतृत्व में लड़े गए लगातार दो लोकसभा चुनावों में देश की जनता ने उनकी पार्टी को नहीं चुना।और 2019 में तो राहुल गांधी खुद भी वो सीट हार बैठे थे जहां से ना सिर्फ उनकी मां, उनके पिता दशकों तक बल्कि वो खुद 15 सालों तक सांसद रहे। कांग्रेस और राहुल की चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने का काम भारत जोड़ो यात्रा ने किया है ,या नहीं इसका जवाब तो चुनावों में ही मिलेगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि राहुल पर इस तरह संगठित हमला कर के बीजेपी उनका और उनकी पार्टी का भाव जरूर बढ़ा रही है। लेकिन इस पूरी कवायद की वजह से कांग्रेस विपक्ष की सबसे मजबूत पार्टी और राहुल विपक्ष के सबसे आक्रामक छवि वाले नेता बन कर उभर सकते हैं। शायद यही राजनीति है जो कभी बनती है तो कभी बिगड़ भी जाती है। लिहाजा चुनाव 2024 में होने हैं, अब देखना दिलचस्प होगा कि आखिर किसके सर पर ताज सजेगा।

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