बीजेपी और आरएसएस के लिए बिहार क्यों बना हुआ है चुनौती, आइए जाने..
बिहार –वैसे तो देश की राजनीति में बिहार का भी बड़ा योगदान है इससे ठीक पहले बिहार की तीनों बड़ी पार्टियों यानी बीजेपी, जेडीयू और आरजेडी की ओर से विरोधी पार्टी के टूटने का दावा किया जा रहा था। इस मामले पर राज्य का सियासी पारा चढ़ा हुआ है। आखिर भाजपा के सामने कौन सी राजनीतिक और वैचारिक चुनौतियां हैं ।और कौन से सामाजिक समीकरण हैं। जिसके चलते बिहार के किले को बीजेपी जीतने में असफल हो गई है। कहीं इसके पीछे संघ की छाप तो नहीं है। फिर कुछ ठोस और बुनियादी वजह हो । उत्तर प्रदेश में 80 सीटों में से 62 सीटें मिली यहां उनकी सफलता की दर 78% रही बिहार में उसे 40 सीटों में से 17 सीटें मिली यहां उसकी सफलता की दर 42% रही 2014 में भाजपा को बिहार में 40 सीटों में से 22 सीटें मिली थी।
उस समय उसकी सफलता की दर 55% थी जहां हिंदी पट्टी के अन्य सभी शेष राज्यों में भाजपा की सफलता की दर 75% से लेकर 100% तक है वहीं बिहार में उसकी सफलता का दर 42% हो जाता है ।यानी बिहार एकमात्र राज्य है जहां भाजपा आज तक विधानसभा चुनाव में अपने दम पर ना तो बहुमत हासिल कर पाई है, ना अभी तक अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री बना पाई है। बिहार में एनडीए गठबंधन के टूटने के कई कारण हैं। हम आपको यहां बिहार में एनडीए गठबंधन टूटने की वो सात वजह बताएंगे। जिसकी वजह से लगभग 17 सालों से बिहार में विकास का माहौल बनाने वाले बीजेपी- जेडीयू का गठबंधन टूट गया।
नीतीश कुमार एक बार फिर से पलट गए और एक बार फिर से उन्होंंने आरजेडी के साथ हाथ मिला लिया है। हालांकि आरजेडी के साथ हाथ मिलाने की वजह लोगों रास नहीं आ रही है। उनका कहना है कि नीतीश कुमार की पूरी राजनीति आरजेडी के जंगल राज के खिलाफ रही है। ऐसे में उनका एक बार फिर लालटेन थामना जनता की समझ से परे है।
नीतीश कुमार बीजेपी के अपने मुद्दों पर असहज महसूस कर रहे थे। जिसमें सीएए, एनआरसी, युनिफॉर्म सिविल कोड, जातिगत जनगणना आदि के एजेंडे थे। उसकी वजह से भी खुद को असहज महसूस कर रहे थे। पत्रकारों के सवालों के जवाब उन्हें असहज बना रहे थे। बीजेपी की ओर से हिंदू मुसलमान, राम मंदिर जैसे मुद्दे उठाए जा रहे थे। जिसका जवाब नीतीश कुमार को असहज कर दे रहा था। ऐसे कई मौके आए जिन पर नीतीश कुमार का पॉलिटिकल स्टैंड और बीजेपी का स्टैंड बिल्कुल अलग था।
अंतिम वजह कथित तौर पर वह ऑडियो टेप माना जा रहा है। जिसमें बीजेपी के नेता की ओर से जेडीयू के विधायकों को खरीदने की बात कही जा रही है। विधायकों को जेडीयू छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का ऑफर दिया जा रहा है। बताते चलें कि इस कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग ने नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होने के ताबूत में आखिरी कील ठोंकी। वैसे तो पिछले दो सालों के दौरान बीजेपी और जेडीयू कई मुद्दों पर आमने-सामने आ चुके थे। मगर यह मामला आखिरी कील साबित हुए।