उत्तराखंड के पूर्व सीएम ने इशारों इशारों में सरकार पर साधा निशाना!

उन्होंने बिना नाम लिये तंज किया भ्रष्टाचार के लिए राजनीतिक शुचिता लानी होगी, नहीं तो ऊपर से नीचे आ रहे भ्रष्टाचार में वह दे रहे हैं, यह ले रहे हैं।

 

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री न्यूजनशा के संवाद में ठेठ सूफियाना अंदाज में पार्टी, राज्य और राजनीतिक शुचिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंकते दिखे, फाउंडर एडिटर विनीता यादव से बात करते हुए त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि देवस्थानम बोर्ड और ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर फैसला तो सबको साथ लेकर किया था, किंतु जनसमर्थन नहीं मिला, विरोध हुआ, जनमत का फैसला शिरोधार्य है। ठेठ कुशल रणनीतिकार की तरह रावत ने आलाकमान के फैसले को उचित ठहराते हुए खुद को राजनीति का अनाड़ी साबित कर दिया। चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराते हुए भ्रष्टाचार पर प्रहार करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा इसके लिए सोच विकसित करनी होगी।

 

सरकार पर साधा  निशाना!

उन्होंने बिना नाम लिये तंज किया भ्रष्टाचार के लिए राजनीतिक शुचिता लानी होगी, नहीं तो ऊपर से नीचे आ रहे भ्रष्टाचार में वह दे रहे हैं, यह ले रहे हैं। इसे जड़ से समाप्त करना होगा तभी बात बनेगी, उनका मानना है कि इसे होने से ही रोकना होगा।। रावत का दावा है की जब हम राजनीति करते हैं तो राजनीति में केवल इमानदारी से काम करना, अच्छा काम करना ही काफी नहीं होता है, आपको अच्छी राजनीति करनी भी आनी चाहिए और अगर आप इस में विफल रहते हैं, तो यह तय मानिए कि राजनीति में आपको सफलता नहीं मिलेगी । यहीं उनकी चूक रही, जिसने उनके राजनीतिक कॅरियर पर विराम लगा दिया। रावत का कहना है कि वह केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, और वह चाहते हैं कि उनको एक सामाजिक कार्यकर्ता की छवि के तौर पर ही जाना जाए । उन्होंने कहा सामाजिक जीवन के चार दशकों तक उन्होंने एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया। चाहे वह उत्तरकाशी के आपदा रही हो या फिर उत्तराखंड त्रासदी हर मोके पर वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अपने दायित्व का निर्वाह करते आए हैं । रावत का कहना है कि साफगोई किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के साथ उसकी कार्यप्रणाली का परिचायक है। ऐसे में आपको तय करना है की यदि कोई कार्य हो सकता है तो उसके लिए हां और अगर नहीं हो सकता है तो न कहने की क्षमता भी होनी चाहिए। लोगों को अनावश्यक समय देकर और उनसे न मिलना और उन्हें आश्वासन देकर टरकाना। उनकी परंपरा के खिलाफ है । उन्होंने कहां वह स्वीकार करते हैं बावजूद कुशल प्रशासक के वह कुशल रणनीतिकार न होने की वजह से मात खा गए । उनसे चूक कहा हुई। क्या उन्हें कोई बड़ा पद मिलना चाहिए, इस पर रावत का कहना है भारतीय जनता पार्टी बहुतायत की पार्टी है। बहुत सारी विचारधाओ का स्रोत है। लिहाजा यहां पर हर विचारधारा और सोच के व्यक्ति हैं। हर व्यक्ति का अपना नजरिया और सोच है, इसे पार्टी के लिहाज से परिभाषित नहीं किया जा सकता । हर व्यक्ति अपनी विचारधारा से काम करता है, रावत का कहना है कि उन्हें भी परिस्थितियों ने सबक सिखाया होगा यह कहा जा सकता है। उन्हें किसी पद की लालसा नहीं है। बकौल रावत में इस समय पार्टी के सबसे बड़े पद पर हैं। उनकी निगाह में कार्यकर्ता पार्टी का सबसे बड़ा पद है और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है ।इसमें वह अपने लिहाजा से अपनी भूमिका के अनुसार जैसे चाहे निभा सकते हैं। क्योंकि यह एकमात्र ऐसा पद है, जिसे कोई छीन नहीं सकता।। मदरसों के सर्वे के सवाल पर उन्होंने कहा कि मदरसों के सर्वे के पीछे सरकार की मंशा पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहिए । किंतु मदरसों में जिस तरह की गतिविधियां और सामान मिले हैं, वह चिंता का विषय है। वैसे तो पुलिस और गुप्तचर विभाग अपना काम करता है । परंतु इन्हें लेकर ऐसे कुछ मसले हैं जो पेशानी पर बल डालते हैं। लिहाजा इनका समाधान होना ही चाहिए। वैसे संबंधित थाने के पास समस्त रिकॉर्ड होता है। वह केवल उसी स्थान पर जाते हैं, जहां उन्हें संदेह होता है । यह कहना ठीक नहीं होगा कि अल्पसंख्यक निशाने पर हैं । यह भारत का चरित्र नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो बांग्लादेश और पाकिस्तान न बनते। भारत का चरित्र सर्वे भवंतु सुखना का है। भारत बंधुत्व की भावना से काम करता है, जहां तक सवाल अल्पसंख्यकों का है तो पारसी अल्पसंख्यक हैं। पूरी दुनिया से समाप्त हो गए पर भारत में फलफूल रहे हैं । इसकी वजह है कि भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां सबके लिए सब कुछ करने की आजादी है। किसी की आस्था और पूजा पद्धति को कभी प्रभावित करने का प्रयास नहीं किया जाता।।।

भारत की तुलना अगर अन्य देशों से की जाए तो हर देश में आपको विशेष पूजा, धर्म और विश्वास पद्ति मिलेगी । परंतु भारत में ऐसा संभव नहीं है, यहां कोई चर्च जाता है, कोई मंदिर जाता है, कोई नास्तिक है। सबकी अपनी धार्मिक पद्धतियां हैं, और सबको अख्तियार है कि वे अपने धर्म का पालन अपने अनुसार करें हमारे वेद पुराणों ने तो हर उस महापुरुष को संत का दर्जा दिया है, जिसने बंधुत्व और सामाजिक मानदंडों का पालन किया है । रावत ने देव स्थानम बोर्ड और गैरसेंण पर साफ किया दोनों मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई थी, और इस पर विपक्ष का भी समर्थन प्राप्त था। रावत ने कहा कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर उत्तराखंड से यूपी के मुख्यमंत्री रहे पंडित नारायण दत्त तिवारी की भी इच्छा थी, परंतु वह नहीं कर सके, और यह देवस्थानम बोर्ड का प्रस्ताव 1 साल तक चर्चा के बाद केबिनेट फिर सदन में पारित हुआ। जिस दौरान सदन में पारित हुआ वह सदन में थे ही नहीं, उन्होंने कहा जहाँ तक सवाल इसके विरोध का है तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी इसके पक्ष में खड़ी थी, परंतु बाद में जिस तरह से इसका विरोध हुआ। उससे पता चलता है कि जनादेश से राजनीतिक व्यवस्था बनी है, और इस व्यवस्था के अनुसार उन्हें हटना पड़ा। उन्होंने कहा भाजपा जनता की पार्टी है, लिहाजा जनता के जनादेश के सामने पार्टी नतमस्तक हुई और उन्हें हटा दिया। भृष्टाचार पर त्रिवेंद्रम ने कहा कि उनका मानना है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के बजाय यदि आप चोरी को रोके तो आपको चौकीदार की आवश्यकता नहीं होगी। यही वजह है कि वह मानते हैं कि प्रशासन को चलाने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत होती है ना कि प्रबंधन की । उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार सदैव ऊपर से नीचे आता है।इसलिए जनता की भागीदारी जनता की विश्वसनीयता भी होनी चाहिए कि वे ऐसे नेता को चुने जो उनके काम करने के लिए उनका जनप्रतिनिधि बने न कि अपने फायदे के लिए। केवल 15 दिन के चुनावी फायदे के लिए अपने मतदान के माध्यम से अपने मताधिकार को गिरवी रख देने वाला मतदाता कैसे एक सुशासन की कल्पना कर सकता है। इसके लिए तभी राह तभी संभवआसान होगी जब मतदाता अपनी भागीदारी को पारदर्शिता और स्वच्छता के साथ निभाए। रावत का कहना है कि वह एक विचारधारा से जुड़े हुए व्यक्ति हैं, जिसमें राजनीतिक शुद्धता बहुत अनिवार्य है, और हो सकता है की इन सबके चलते आप राजनीति के सर्वोच्च पद पर न पहुंच पाए । परंतु एक कार्यकर्ता के रूप में जो आपको संतोष मिलेगा, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकते।

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