कौन होगा कांग्रेस का राष्ट्रिय अध्यक्ष, जानिए क्या कहते है समीकरण!
हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे एक खुले कटु पत्र में कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाया है। हो सकता है कि
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आखिरकार 22 साल के अंतराल के बाद पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कराने जा रही है। पिछली बार वर्ष 2000 में जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। जैसी कांग्रेस की संरचना है, उसे देखते हुए यह तय है कि आधिकारिक उम्मीदवार की ही जीत होगी। हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने सोनिया गांधी को लिखे एक खुले कटु पत्र में कांग्रेस पार्टी को आईना दिखाया है। हो सकता है कि उन्होंने पार्टी को अध्यक्ष चुनाव के लिए बाध्य किया हो, अन्यथा यह स्थगित भी हो सकता था, जैसा कि पिछले सवा तीन वर्षों से होता रहा है।
हालांकि आधिकारिक उम्मीदवार कौन होगा, इस पर अब तक कोई सहमति नहीं है। अशोक गहलोत इस दौड़ में प्रमुख उम्मीदवार नजर आ रहे हैं, पर वह राजस्थान छोड़ने के प्रति अनिच्छुक रहे हैं। वह जोर दे रहे हैं कि उनका उम्मीदवार (सचिन पायलट नहीं) राजस्थान का नया मुख्यमंत्री बने। लेकिन दिल्ली में गहलोत और जयपुर में पायलट कांग्रेस के लिए बेहतर होगा। पुराने नेता गहलोत के पास मुख्यमंत्री के रूप में पार्टी और प्रशासन को संभालने का अनुभव है, वह कांग्रेस और देश को समझने वाले ओबीसी नेता हैं, जिन्हें पार्टी के असंतुष्ट नेता भी स्वीकार करेंगे और गांधी परिवार के वह विश्वासपात्र हैं। आज स्थिति यह है कि कांग्रेस न तो गांधी परिवार के बिना और न ही उसके साथ रह सकती है। नए चेहरे के रूप में राजस्थान में पायलट पार्टी में एक नई ऊर्जा का संचार करेंगे और वर्ष 2023 के चुनाव में पार्टी विरोधी रुझानों का मुकाबला करेंगे।
आज जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ लोग मोदी के बाद की भाजपा में नेतृत्व की बात करते हैं, तो योगी आदित्यनाथ और देवेंद्र फड़णवीस के अलावा वे हिमंत विस्वा सरमा और सिंधिया की भी बात करते हैं, हालांकि दोनों बाहरी हैं। जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, कपिल सिब्बल जैसे अन्य कई नेता कांग्रेस छोड़कर चले गए। यदि सच कहा जाए, तो ये सभी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व और निर्णय लेने की शैली के कारण पार्टी छोड़कर गए, जिसमें पहुंच की कमी और एक छोटी-सी मंडली में उनका घिरे रहना शामिल है। लेकिन यह भी तथ्य है कि उन्हें कांग्रेस में अपना भविष्य नजर नहीं आया। सबसे महत्वपूर्ण बात कि कांग्रेस का भी कोई भविष्य नजर नहीं आता और राहुल के नेतृत्व में पार्टी के फिर से जी उठने की कोई उम्मीद नहीं है।