क्यों आखिर अमूल दूध पीता है इंडिया, जानिए यहां
अमूल की पूरी कहानी:अंबानी-अडानी से भी ज्यादा लोगों को रोजगार देता है, 100 करोड़ से ज्यादा लोग रोज इसके प्रोडक्ट खाते-पीते हैं
एक सहकारी समिति सालभर से जश्न मना रही है। हर रोज जश्न। दावा कर रही है कि सिर्फ 75 साल में उसने वो हासिल कर लिया है, जो पूरे हिन्दुस्तान में कोई संस्था या कंपनी नहीं कर पाई। दावा ये है कि हर रोज भारत के 100 करोड़ लोग इसका प्रोडक्ट खाते या पीते हैं।
100 करोड़ रोज का मतलब समझते हैं, मतलब हर 3 में से 2 आदमी रोज इनके सामान का इस्तेमाल करता है। यानी जब आप ये खबर पढ़ रहे होंगे तो आपने या तो इनका सामान खा लिया होगा या रात सोने से पहले जरूर खा लेंगे। ऐसी कोई संस्था नहीं है जो इस तरह का दावा कर सके। इस संस्था का नाम है- अमूल। चलिए आपको इसकी एक झांकी दिखाते हैं-
हर 3 में 2 आदमी रोज अमूल का कुछ न कुछ खाए-पिए बिना नहीं रह पाता
दैनिक भास्कर ने अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी से बात की। उन्होंने बताया कि देश में करीब 100 करोड़ लोग अमूल का दूध या कोई न कोई प्रोडक्ट खाते या पीते हैं।
फिलहाल अमूल गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, कश्मीर, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, पंजाब सहित 16-17 राज्यों में मौजूद है। ये बाकी राज्यों में पहुंचने के लिए पूरे दमखम से लगा हुआ है।
पहले दिन 247 लीटर दूध इकट्ठा किया था, अब रोजाना 2.50 करोड़ लीटर
जब अमूल की शुरुआत हुई, तब पहले कुछ दिनों तक रोजाना 247 लीटर तक ही दूध इकट्ठा हो पाता था, लेकिन 75 साल में कंपनी दिन दूनी और रात चौगूनी ताकत से बढ़ी।
आज ये रोज 2.50 करोड़ लीटर दूध इकट्ठा करती है। जानते हैं कितने लोग रोजाना अमूल को दूध भेजते हैं, 35 लाख से ज्यादा पशुपालक या किसान। इनमें से 27 लाख तो अकेले गुजरात के हैं। बचे 7 लाख दूसरे राज्यों के हैं।
चौंकिए मत, सच में अमूल अंबानी-अडानी से भी ज्यादा रोजगार देता है
अमूल रोजगार देने के मामले में भारत के टॉप कॉरपोरेट्स, जैसे रिलायंस, अडानी ग्रुप और टाटा ग्रुप से भी आगे है। आरएस सोढ़ी के बताए अनुसार, 1 लाख लीटर दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और ड्रिस्ट्रीब्यूशन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से करीब 6000 लोगों को रोजगार मिलता है।
इसी हिसाब से जब 2.50 करोड़ लीटर दूध पर काम करने के लिए कुल 15 लाख कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। इनमें दुग्ध उत्पादक, प्लांट वर्कर, ट्रांसपोर्ट, मार्केटिंग, डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स के लोग शामिल हैं।
कुल 87 प्लांटों में बनते हैं अमूल के प्रोडक्ट, सबसे बड़ा प्लांट एक गांव में है
डेयरी, बेकरी, मिठाई, आइस्क्रीम और गैर-डेयरी वाले सामान बनाने के लिए अमूल ने 87 प्लांट लगाए हैं। इनमें से 30 प्लांट अकेले गुजरात में हैं। इसमें सबसे खास बात ये है कि अमूल का सबसे बड़ा प्लांट गांधीनगर जिले के भाट गांव में स्थित है।
इसके पीछे ये एक स्ट्रेटेजी है। सबसे बड़े प्लांट के गांव में रखने से ब्रांड की इमेज ऐसी बनी रहती है कि इसके पास दूध से जुड़ी प्योर चीजें हैं, क्योंकि इनका सबसे बड़ा प्लांट एक गांव में है। वहीं तो दूध पैदा होता है।
किसानों और चरवाहों की मदद से शुरू हुई संस्था आज रूरल इकॉनॉमी में 30% का योगदान देती है
आरएस सोढ़ी बताते हैं कि अमूल का मूल उद्देश्य छोटे किसानों और चरवाहों को बाजार से जोड़ना और उन्हें उनकी मेहनत का अच्छा दाम दिलाना था। इसी उद्देश्य के साथ हम पिछले 75 साल से आगे बढ़ रहे हैं।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अमूल रोजाना करीब 150 करोड़ रुपए का योगदान देता है। पशुपालन और खेती के माध्यम से किसानों को आय होती है, उसमें अमूल से मिलने वाली आय का कंट्रिब्यूशन करीब 30% होता है। अमूल अपनी कमाई का 80% किसानों को देता है।
फायदा कमाने वाली बिजसेन ऑर्गनाइजेशन नहीं, अमूल एक आंदोलन था
अमूल कोई कंपनी नहीं है। इसका कोई एक मालिक नहीं है। ये एक सहकारी समिति है। असल में ये एक सहकारी आंदोलन है। इसकी शुरुआत जब देश आजाद नहीं हुआ था तभी शुरू हो गया था।
1945 में गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों ने ब्रिटिश सरकार की शोषणकारी नीति के खिलाफ हड़ताल शुरू कर दी थी। इसी के बाद 1946 में दो छोटे गांवों से रोजाना सिर्फ 247 लीटर दूध इकट्ठा कर अमूल सहकारी समिति की शुरुआत हुई।
1945 में कॉन्ट्रैक्टर आणंद से दूध इकट्ठा कर मुंबई भेजा करते थे। हालांकि, दूध उत्पादकों को दूध की सही कीमत न मिलने से उनमें रोष था। इसी के चलते सरदार पटेल ने मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में 1946 में एक किसान बैठक बुलाई थी।
इसमें सहकारी दुग्ध उत्पादक समितियों और जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ संचालित डेयरी की स्थापना का निर्णय लिया था। इस तरह खेड़ा जिला दुग्ध उत्पादक संघ की स्थापना के साथ 14 दिसंबर 1946 को अमूल की स्थापना हुई थी।
एक मैकेनिकल इंजीनियर बन गया भारत का ‘मिल्कमैन’
अमूल को ब्रांड बनाने में डॉ. वर्गीज कुरियन का अहम योगदान रहा है। केरल के 28 साल के मैकेनिकल इंजीनियर वर्गीज कुरियन डेयरी के संचालन करने सरकारी कर्मचारी के रुप में 1949 में आणंद शहर आए थे। तब कोई नहीं जानता था कि डॉ. कुरियन आणंद को भारत की दुग्ध राजधानी बना देंगे। उनके संचालन में 1955 में अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड) का जन्म हुआ।
वर्गीज कुरियन लगभग हर तरह से अमूल के आर्किटेक्ट थे और आज उन्हें भारत के ‘मिल्कमैन’ के रूप में जाना जाता है। डॉ. वर्गीज कुरियन ने अमूल को टेक्नोलॉजी के मामले में भी लगातार अपग्रेड रखा और यही वजह है कि आज अमूल के पास दुनिया की बेहतरीन मशीनरी वाला प्लांट है।
55 साल की ‘अमूल गर्ल’ का आज भी कोई जवाब नहीं
पोल्का डॉटेड फ्रॉक में बटर लगी ब्रेड स्लाइस पर जीभ घुमाने वाली लड़की आज अमूल की ब्रांड आइडेंटिटी बन चुकी है। अमूल के प्रोडक्ट्स, होर्डिंग्स, एडवरटाइजमेंट और सोशल मीडिया समेत हर जगह करंट टॉपिक पर एक लाइन में मैसेज देने वाली ‘अमूल गर्ल’ का जन्म 1966 में हुआ था।
उस समय अमूल के प्रतिद्वंद्वी पोलसन बटर की ब्रांड पहचान भी इतनी छोटी लड़की ही थी। इसी के खिलाफ मुंबई की एड एजेंसी FCB उल्का के सिल्वेस्टर डा. कुन्या ने अपने इलस्ट्रेशन आर्टिस्ट यूस्टेस फर्नांडिस और ऊषा कात्रक के साथ अमूल गर्ल को बनाया था।
डेयरी के बाद FMCG बनने पर फोकस
अमूल भी धीरे-धीरे गैर-डेयरी उत्पादों की ओर बढ़ रहा है। अमूल ने 2019 से नॉन-डेयरी सेगमेंट में एंट्री की है। इसने जन्मय ब्रांड के तहत खाद्य तेल, आटा, मिल्क बेस्ड कार्बोनेटेड सेल्टजर और शहद भी लॉन्च किया है। इसके अलावा पोटेटो स्नैक्स और फ्रोजन फूड में भी आगे बढ़ रही है।
इस तरह अमूल का सीधा मुकाबला अडानी विलमर, आईटीसी, मैरिको, नेस्ले, ब्रिटानिया और हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल) जैसे टॉप ब्रांडों के साथ है। सोढ़ी ने बताया, अभी हम लर्निंग फेज में हैं। इसलिए हम धीरे-धीरे गैर-डेयरी उत्पादों की ओर बढ़ रहे हैं।
हर 200 मीटर पर एक अमूल पार्लर बनाने की पॉलिसी
गुजरात के 2,300 सहित वर्तमान में कंपनी के पूरे देश में 10,000 से अधिक पार्लर हैं। रेसिडेंशियल सोसायटी के अलावा गार्डंस, पार्क और पेट्रोल पंपों जैसी जगहों पर भी अमूल पार्लर हैं, क्योंकि यहां लोगों की आवाजाही लगी रहती है।
अमूल का लक्ष्य हर 200 मीटर पर लोगों को अमूल उत्पाद उपलब्ध कराने का है। इसके अलावा अमूल बढ़ती जरूरतों को देखते हुए गुजरात, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में अपनी खुद की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने जा रही है। इसके चलते 2025 तक अमूल की प्रोसेसिंग 4.25 करोड़ लीटर प्रतिदिन तक पहुंच जाएगी।
पिछले 25 वर्षों में 3423% टर्नओवर बढ़ा
अमूल की आर्थिक ग्रोथ पर नजर डालें तो 1994-95 में गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) का टर्नओवर 1,114 करोड़ रुपए था, जो 2020-21 में 39,248 करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है।
अमूल और उससे जुड़े 18 डिस्ट्रिक्ट को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स का संयुक्त टर्नओवर 53,000 करोड़ रुपए को पार कर चुका है। सोढ़ी ने बताया कि 2021-22 में संयुक्त रूप से 63,000 करोड़ रुपए के टर्नओवर की उम्मीद है।
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