वाराणसी… इतिहास लेखन में बहुत कुछ लिखा जाना बाकी:
BHU के प्रोफेसर बोले- मुस्लिमों और अंग्रेजों ने 600 साल में किया हिंदू संस्कृति पर प्रहार
वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के एकेडमिक स्टाफ काॅलेज में इतिहास लेखन में हुई भूल और आजादी की लड़ाई में काशी के रोल पर वक्ताओं ने कहा कि आधुनिक भारत में अंग्रेजी हुकूमत के अनुसार इतिहास लिखा और पढ़ाया गया। वहीं हिंदूओं की महान संस्कृति को नजर अंदाज किया गया। अभी इतिहास लेखन में बहुत लिखा जाना बाकी है। इस देश पर मुस्लिम और अंग्रेजों ने लगभग 600 साल तक शासन किया। भारत की संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास हुआ। लेकिन हिंदू समाज ने जमकर सामना किया और आक्रमणकारियों के मंसूबे सफल नहीं हो पाए।
इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सह सचिव संजय ने कहा कि हम आजादी 75वें वर्ष में लगातार सांस्कृतिक विकास की ओर बढ़ रहे हैं। वीर सावरकर, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. हेडगेवार और गांधी ने स्वतंत्रता दिलाई। वहीं अब गांव-गांव जाकर युवाओं को स्वामी विवेकानंद के आदर्शो को बताना होगा। राष्ट्रीय चिंतन की धारा का प्रवाह आज पूरे देश में हो चुका है। उसको अमल में लाने की जरूरत है।
काशी के तुलसी और कबीर ने जोड़ा हिंदू समाज
BHU मेंप्रा पत्रकारिता विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र ने कहा कि काशी ने हमेशा से दुनिया और देश को दिशा दी है। आजादी आंदोलन में काशी का बड़ा योगदान रहा है। जब मुगलों ने देश में आतंक फैलाया था और हिंदू समाज बिखर चुका था, ऐसे में तुलसी, कबीर और रैदास ने भारतीय समाज को जोड़ा। जब भारतीय समाज दिशाहीन था, तब काशी लोकमंगल की कामना कर रही थी। काशी से ही रामलीला की शुरुआत हुई जिससे जनजागृति फैली।
गांव-गांव में फैलाएंगे सुराज
डॉ. मिश्र ने कहा कि अंग्रेजों से लोहा काशी नरेश चेतसिंह ने लिया। आजादी के 75वें वर्ष में हम सुराज की संकल्पना को आगे बढ़ाने में लगे हैं। वाराणसी और चंदौली के गांव-गांव में इसे फैलाया जाएगा। भारतीय जीवन दर्शन का मूल केंद्र काशी ही है। उन्होंने कहा कि मालवीय जी, बाबू हरिश्चंद्र, डॉ. एनी बेसेंट, शिव प्रसाद गुप्त, महावीर प्रसाद दिवेदी, आचार्य राम चंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के विचारों से काशी के लोगों को दिशा मिली है। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काशी विभाग संघ चालक प्रोफेसर जेपी लाल ने किया। कार्यक्रम का संचालन विभाग कार्यवाह त्रिलोक नाथ शुक्ल और धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर प्रवेश श्रीवास्तव ने किया।
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