दुनिया के कई देशों में लगा कोरोना का तीसरा टीका; क्या हमें भी बूस्टर डोज की जरूरत है?
कोरोना से अतिरिक्त सुरक्षा के लिए दुनियाभर के कई देश लोगों को वैक्सीन का बूस्टर डोज दे रहे हैं। भारत सरकार भी जल्द ही बूस्टर डोज को लेकर गाइडलाइन जारी कर सकती है। कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख सदस्य डॉ. एनके अरोरा ने एक अखबार से बात करते हुए ये जानकारी दी है। उनका कहना है अगले 10 दिन में बूस्टर डोज को लेकर गाइडलाइन आ सकती है। इसमें बताया जाएगा कि वैक्सीन का बूस्टर डोज कैसे, कब और किन्हें दिया जाएगा।
समझते हैं, अभी किन देशों में बूस्टर डोज दिया जा रहा है? किसे दिया जा रहा है? क्या कोरोना रोकने में बूस्टर डोज कारगर है? और एक्सपर्ट से जानते हैं कि क्या हमें भी बूस्टर डोज की जरूरत है?…
कहां-कहां दिया जा रहा है बूस्टर डोज?
Our World in Data के मुताबिक, दुनियाभर के 35 से भी ज्यादा देश अपने नागरिकों को बूस्टर डोज दे रहे हैं। इनमें अमेरिका, इजराइल, ब्रिटेन, चिली, फ्रांस जैसे देश शामिल हैं। इजराइल ने सबसे पहले अपने नागरिकों को बूस्टर डोज देना शुरू किया। अलग-अलग देशों में कोमॉर्बिडिटी और अलग-अलग फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए लोगों को कोरोना वैक्सीन का तीसरा डोज दिया जा रहा है।
इजराइल
इजराइल सबसे पहला देश है, जिसने बूस्टर डोज देने की शुरुआत की थी। इजराइल जुलाई से ही अपने नागरिकों को वैक्सीन का बूस्टर डोज लगा रहा है। अब तक 40 लाख से भी ज्यादा लोगों को वैक्सीन का तीसरा डोज लग चुका है। अगस्त में केवल 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को ही वैक्सीन का तीसरा डोज दिया जा रहा था, लेकिन फिलहाल 12 से ज्यादा उम्र के लोगों को बूस्टर डोज दिया जा रहा है।
अमेरिका
सितंबर में अमेरिका ने बूस्टर डोज के लिए अप्रूवल दिया था। कहा गया था कि दोनों डोज लगवाने के 6 महीने बाद लोग बूस्टर डोज ले सकेंगे। सितंबर में ये केवल फाइजर की वैक्सीन को ही बूस्टर शॉट्स के लिए अप्रूवल मिला था, लेकिन फिलहाल तीन वैक्सीन के बूस्टर शॉट्स लग रहे हैं। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन के दोनों डोज लगवा चुके लोग 2 महीने बाद ही तीसरा डोज भी लगवा सकते हैं। अमेरिका में बूस्टर डोज के लिए वैक्सीन के मिक्स एंड मैच को भी मंजूरी दे दी है। अब तक 2.62 करोड़ लोगों को वैक्सीन का बूस्टर डोज लग चुका है।
ब्रिटेन
ब्रिटेन में भी दूसरे डोज के 6 महीने बाद फाइजर और मॉडर्ना के बूस्टर डोज दिए जा रहे हैं। ब्रिटेन में बढ़ते केसेस के बाद 30 अक्टूबर को सरकार ने गाइडलाइन में बदलाव करते हुए कोमॉर्बिडिटी वाले लोगों के लिए ये अवधि कम कर 5 महीने तक दी है। अब तक 93 लाख से ज्यादा लोगों को बूस्टर डोज दिए जा चुके हैं।
कनाडा
कनाडा ने नवंबर से बूस्टर डोज देने की शुरुआत की है। यहां पर मॉडर्ना और फाइजर की वैक्सीन के बूस्टर डोज दिए जा रहे हैं। कोमॉर्बिडिटी और उम्र के हिसाब से डोसेस की क्वांटिटी को अलग-अलग रखा गया है। 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोग फाइजर का बूस्टर डोज लगा वा सकते हैं।
कहां-किन शर्तों के साथ लगाया जा रहा है बूस्टर डोज?
अमेरिका में कोमॉर्बिडिटी और रिस्क वाले एरिया में रहने/काम करने वाले 18+ उम्र के लोग बूस्टर डोज लगवा सकते हैं।ब्रिटेन में केवल उन्हें ही बूस्टर डोज नहीं दिया जा रहा है, जिन्हें पहले दोनों डोज की वजह से गंभीर रिएक्शन हुई थी। बाकी लोगों को बूस्टर डोज लेने की सलाह दी गई है। कोमॉर्बिडिटी वाली प्रेग्नेंट महिलाओं को भी बूस्टर डोज दिया जा रहा है।कनाडा में उम्र और कोमॉर्बिडिटी के हिसाब से अलग-अलग ग्रुप्स को बूस्टर डोज दिया जा रहा है।इजराइल में 12 साल से ऊपर के सभी लोग बूस्टर डोज के लिए एलिजिबल हैं।जापान ने नवंबर में ही फाइजर के बूस्टर डोज को मंजूरी दी है। दिसंबर से हेल्थकेयर वर्कर्स और जनवरी से बुजुर्ग आबादी को बूस्टर डोज दिया जाएगा।
क्या कोरोना को रोकने में बूस्टर डोज कारगर है?
इजराइल में बूस्टर डोज की इफेक्टिवनेस को लेकर एक स्टडी की गई थी। 7.28 लाख लोगों पर की गई इस स्टडी में सामने आया था कि वैक्सीन का बूस्टर डोज कोरोना की वजह से हॉस्पिटलाइजेशन रोकने में 93% कारगर है। साथ ही कोरोना के गंभीर लक्षणों को रोकने में भी 92% इफेक्टिव है।वैक्सीन के दोनों डोज लगवाने के 5-6 महीने बाद एंटीबॉडी लेवल में कमी आने लगती है। इंग्लैंड में फाइजर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस को लेकर की गई स्टडी में सामने आया था कि दूसरा डोज लगवाने के 2 हफ्ते तक वैक्सीन इंफेक्शन को रोकने में 90% कारगर है, लेकिन 5 महीने बाद केवल 70% ही कारगर रह जाती है। इसी स्टडी में मॉडर्ना वैक्सीन की इफेक्टिवनेस भी समय के साथ कम होती गई थी।
क्या भारत में भी बूस्टर डोज देने की जरूरत है?
महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहारिया के मुताबिक,
भारत में ज्यादातर वैक्सीनेशन पिछले कुछ महीनों में हुआ है; इसलिए फिलहाल बूस्टर डोज की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वैक्सीनेशन के 10 से 12 महीने तक प्रोटेक्शन रहता है। साथ ही इस बात को कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि भारत जैसे देश में बूस्टर डोज की जरूरत है।शरीर में एंटीबॉडी नहीं होना और कम होना दो अलग-अलग बातें हैं। आपके शरीर में एंटीबॉडी की संख्या समय के साथ भले ही कम हो जाए, लेकिन आपके शरीर के मेमोरी सेल्स वायरस के स्ट्रक्चर को स्टोर कर लेते हैं। अगली बार आपके शरीर में जैसे ही वायरस आता है ये सेल्स वायरस की पहचान कर एंटीबॉडी को काम पर लगा देते हैं।भारत की ज्यादातर आबादी को अभी वैक्सीन का सिंगल डोज ही मिला है, इसलिए भारत का फोकस अभी बूस्टर डोज की बजाय ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीनेट करने पर होना चाहिए, क्योंकि पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी में आप ज्यादा बड़े ग्रुप का फायदा देखते हैं। बूस्टर डोज से ज्यादा आबादी प्रोटेक्ट होने की बजाय केवल व्यक्ति ही प्रोटेक्ट होगा।हालांकि, कुछ स्पेशल ग्रुप जैसे कम एंटीबॉडी डेवलप करने वाले लोगों को तीसरे डोज के तौर पर वैक्सीन का अतिरिक्त डोज दिया जा सकता है। ऐसे लोगों के लिए ये बूस्टर डोज की बजाय उनके प्राइमरी वैक्सीनेशन का ही हिस्सा होगा।एक बार ज्यादा से ज्यादा लोगों का पूरी तरह वैक्सीनेशन होने के बाद भारत बूस्टर डोज पर विचार कर सकता है।
क्या कहीं बूस्टर डोज देने के बाद गंभीर साइड इफेक्ट देखे गए?
नहीं। जिन देशों में लोगों को बूस्टर डोज दिए जा रहे हैं वहां अभी तक किसी भी तरह के कोई साइड इफेक्ट नहीं देखे गए हैं। जिस तरह पहले और दूसरे डोज के बाद हल्का बुखार, सिर और हाथ-पैर दर्द होता है उसी तरह बूस्टर डोज के बाद भी इस तरह के सामान्य लक्षण देखे गए हैं।
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