टीचर्स ने स्कूल में पिटाई से लेकर रेप तक किए:स्कूल जाने से डरे बच्चे,
मार्च से अब तक 10 से ज्यादा मारपीट और घिनौनी हरकत के मामले
राजस्थान में चूरू जिले में बीते दिनों प्राइवेट स्कूल में एक गुस्साए टीचर ने सातवीं क्लास के स्टूडेंट को इतना पीटा कि उसकी जान चली गई। आश्चर्य है कि शिक्षा के मंदिरों में बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं और शिक्षा विभाग के पास इन्हें रोकने का कोई सिस्टम ही नहीं है। यहां तक कि कुछ दिन पहले एक सरकारी स्कूल के टीचर ने नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म के प्रयास जैसी घिनौनी हरकत कर डाली।
विभाग के पास ऐसी घटनाओं का डाटा तक नहीं
शिक्षा विभाग के पास ऐसी घटनाओं का कोई अधिकृत डाटा ही नहीं है, जिससे पता चल सके कि बीते वर्षों में कितने बच्चों के साथ मारपीट के केस बने। विभाग ऐसा कोई रिकॉर्ड ही नहीं रखता। पिछले एक महीने में सरकारी स्कूल में बच्चियों के साथ अभद्रता, दुष्कर्म के प्रयास के तीन मामले सामने आए, बच्चों के साथ बेरहमी से पिटाई के चार मामले और एक प्राइवेट स्कूल में बच्चे की हत्या तक हो गई।
पिछले डेढ़ साल में स्कूल बहुत कम समय के लिए खुले। इसके बाद भी मार्च से अब तक करीब 12 से ज्यादा शिकायतें शिक्षा निदेशालय तक पहुंची। मार्च 2021 में धौलपुर, उदयपुर में स्कूल में बच्चों से मारपीट के तीन मामले जबकि सितंबर में जोधपुर के पिपाड़ और झुंझुनू के बुहाना में स्कूल में अत्याचार के मामले दर्ज हो चुके हैं।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की चाइल्ड डेवलपमेंट जनरल में प्रकाशित रिसर्च।
कार्रवाई के नाम पर महज नोटिस
किसी भी स्टूडेंट की पिटाई करने पर सरकारी स्कूल के शिक्षक को शिक्षा सेवा नियमों के तहत 16 सीसी के तहत कारण बताओ नोटिस दिया जाता है। निदेशालय स्तर पर चार-पांच बार पेशी के बाद इन मामलों से टीचर बरी हो जाता है। अब तक एक भी ऐसा मामला नहीं है, जब किसी सरकारी स्कूल के टीचर को सस्पेंड या फिर सेवा से बर्खास्त किया गया हो।
मान्यता रद्द करना मुश्किल
प्राइवेट स्कूल में मारपीट के दर्जनों केस न सिर्फ पुलिस थानों में दर्ज हुए, बल्कि बाल आयोग, महिला आयोग तक भी पहुंचे। शिक्षा विभाग ने आज तक किसी स्कूल की मान्यता रद्द नहीं की। ताजा चूरू के प्राइवेट स्कूल में बच्चे की हत्या मामले में भी शिक्षा मंत्री ने मान्यता रद्द करने के आदेश दिए हैं। दरअसल, मान्यता रद्द करने का अधिकार शिक्षा निदेशक के पास नहीं है। यह अधिकार शासन सचिवालय के पास है।
विश्वभर में है पिटाई पर रोक
भारत ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चों की पिटाई पर रोक लगा दी है। इससे पहले भी रोक थी, लेकिन शिक्षा का अधिकार कानून में इसे स्पष्ट रूप से लिया गया। इसके अलावा वर्ष 1970 में इटली, जापान, मॉरिशस में पिटाई पर रोक लगाई गई। अब तक दुनिया के करीब सौ देश बच्चों की पिटाई के खिलाफ कानून बना चुके हैं।
क्यों पीटते हैं टीचर?
सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के मनोविज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. निशांत चौधरी का कहना है बच्चों की पिटाई पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। इससे आज के स्टूडेंट्स जब टीचर बनेंगे तो वो भी अपने स्टूडेंट को पीटेंगे। जिस बच्चे की पिटाई होती है, वो सुधरता नहीं है बल्कि वो यह मान लेता है कि उसकी इस गलती की सिर्फ इतनी ही सजा है। फिर वो उस गलती को बार-बार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाता है।
टीचर ट्रेनिंग में क्या सिखाते हैं
राजकीय राधाकृष्णन टीचर ट्रेनिंग कॉलेज बीकानेर के प्राचार्य हरेंद्र सिंह बताते हैं कि टीचर ट्रेनिंग के दौरान सिखाया जाता है कि बच्चों को पीटना कानूनन गलत है। पीटना तो दूर उसे डराना, धमकाना और अपमानित करना भी अपराध है। इसी कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. शशिकांत त्रिवेदी का कहना है कि बच्चों को समझ नहीं आने तक पढ़ाना हर टीचर को ट्रेनिंग में सिखाया जाता है।
नेशनल अवार्ड विजेता मैथ्स टीचर अचला वर्मा का कहना है कि बच्चों की पिटाई तो दूर उसे डांटा भी नहीं जाता। उसे ऐसा शब्द भी नहीं कहा जाता कि उसे हीनभावना महसूस हो। उनका मानना है कि बच्चों की परेशानी को गहराई से समझने की जरूरत होती है।
समय समय पर नोटिस
राज्य और केंद्र सरकार के स्कूली शिक्षा से जुड़े सभी संस्थान समय-समय पर पिटाई नहीं करने के संबंध में आदेश जारी करते रहे हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड नई दिल्ली और राजस्थान शिक्षा निदेशालय बार-बार ऐसे परिपत्र जारी करता है।
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