अयोध्या का राजपरिवार दिवाली पर कुलदेवता शिव को लगाता है भोग, सरयू की आरती के साथ संपन्न होती है पूजा

दीपावली के दिन पूरा देश श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में उत्सव मनाता है। इस उत्सव का तरीका हर जगह अलग-अलग होता है और समय के साथ इसमें कई बदलाव भी आए हैं। मगर अयोध्या का राजपरिवार आज भी अपनी सदियों पुरानी परंपरा को कायम रखे हुए है।

आज भी राजपरिवार दीपावली पूजन में कुलदेवता और कुलदेवी को गन्ना चढ़ाकर भोग लगाता है। कुबेर और लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है और मध्यरात्रि में सरयू की आरती की परंपरा भी आज तक निभाई जाती है।

राजपरिवार में कुबेर और लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व
अयोध्या के राजा जगदंबा प्रताप नारायण सिंह ने विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और शैलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र को गोद लिया था। सारा परिवार एक साथ अयोध्या के राज सदन में रहता है। राज परिवार के यतींद्र मिश्र ने बताया कि राजपरिवार में कुबेर और लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। यह प्रथा सैकड़ों वर्ष पुरानी है।

गौरी-गणेश, अन्नपूर्णा, नवग्रह पूजन के बाद रात्रि 10 बजे के बाद कुलदेवता शिव का हवन-पूजन राजपरिवार करता है। दीपावली पर सिर्फ एक दिन के लिए सोने के सिक्कों पर बने गौरी, गणेश, कुलदेवता और देवी की प्रतिमा को बाहर निकाला जाता है। उस दिन पूजा करने के बाद उसे वापस तिजोरी में रख दिया जाता है। कुलदेवता को चावल की खीर, सूरन का भरता और चने की दाल की पूरी का भोग भी लगता है।

कनक भवन की पूजा है खास
अयोध्या का सबसे सुंदर मंदिर कनक भवन को माना जाता है। मान्यता है कि यह भवन कैकेयी ने सीता को मुंह दिखाई में दिया था। दीपावली के दिन यहां भगवान राम-जानकी का महाअभिषेक होता है। उन्हें दिव्य वस्त्र-आभूषण धारण कराए जाते हैं। अयोध्या आगमन की खुशी में 56 प्रकार के व्यंजनों से भगवान का भोग लगता है। उनकी महाआरती होती है।

कुबेर-लक्ष्मी को लगता है केसर की गुझिया का भोग
दीपावली के दिन राजसदन में भगवान कुबेर और मां लक्ष्मी को 11 प्रकार के मिष्ठान्न का भोग लगता है। इसे राजसदन में ही तैयार कराया जाता है। केसर की बनी गुझिया 150 वर्षों से दीपावली पर भोग में लगती है। इसके अलावा विशेष मिठाइयों में मंसूर, खाजा, ठेकुआ, घेवर, अनरसा, लौंगलता, चंद्रकला, बालूशाही, मलाई के लड्‌डुओं का भोग दीपावली को चढ़ाया जाता है।

खबरें और भी हैं…

Related Articles

Back to top button