दुनिया के लिए कितना बड़ा खतरा बन सकती है हाइपरसोनिक मिसाइल? जानें भारत पर इसका असर

चीन के टेस्ट से टेंशन में अमेरिका

चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट ने अमेरिका की समेत दुनिया की चिंताएं बढ़ा दी हैं। अमेरिकी जनरल मार्क मिले ने इसे स्पुतनिक जैसा मोमेंट बताया है। मिले ने इसे बहुत चिंताजनक बताया। दरअसल 1957 में सोवियत संघ ने दुनिया के पहले उपग्रह स्पुतनिक को लॉन्‍च कर सबको चौंकाया था। इसके बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों के बीच अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हो गई थी।

चीन के टेस्ट के बाद एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे हैं कि दुनिया में एक बार फिर हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है। आखिर ये हाइपरसोनिक मिसाइल होती है क्या है? ये काम कैसे करती है? चीन ने ये टेस्ट कब किया? क्या चीन ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश है? एक्पर्ट्स क्यों इस टेस्ट पर चिंता जता रहे हैं? आइये जानते हैं…

क्या है हाइपरसोनिक मिसाइल?

हाइपरसोनिक मिसाइल ऐसी मिसाइल्स को कहते हैं जो मैक 5, यानी आवाज की गति (343 मीटर/सेकंड) से 5 गुना ज्यादा या उससे भी ज्यादा स्पीड से टारगेट की ओर बढ़ती हैं। ये एक घंटे में करीब 6,200 किलोमीटर की यात्रा कर सकती है। न्यूक्लियर वैपन ले जाने में भी सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइल बहुत कम हाइट पर भी आम बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइल से ज्यादा गति से उड़ान भर सकती हैं। अपनी यात्रा के दौरान ये दिशा भी बदल सकती हैं, यानी आम मिसाइल की तरह ये तय रास्ते पर ही नहीं चलती हैं।

हाइपरसोनिक मिसाइल काम कैसे करती हैं?

हाइपरसोनिक मिसाइल की स्पीड इंटरकॉन्टिनेन्टल मिसाइल से कम होती है, लेकिन इन मिसाइलों के बीच रास्ते में दिशा बदलने की क्षमता की वजह से ये दुश्मन के डिफेंस सिस्टम को चकमा देने में सफल रहती हैं। बहुत कम हाइट पर भी उड़ने की ताकत इन्हें दुश्मन के रडार की पकड़ में भी नहीं आने देती।

इसके तहत एक व्हीकल मिसाइल को अंतरिक्ष में लेकर जाता है। इसके बाद मिसाइल इतनी तेजी से आगे बढ़ती है कि एंटी मिसाइल सिस्टम इसे ट्रैक नहीं कर पाते हैं। बैलिस्टिक मिसाइल भी हाइपरसोनिक गति से चलती हैं, लेकिन जब उन्हें एक जगह से लॉन्च किया जाता है तो पता चल जाता है कि वो कहां गिरेंगी। इसके चलते एंटी मिसाइल सिस्टम इन्हें आसानी से ट्रैक कर सकते हैं, क्योंकि लॉन्च करने के बाद इनकी दिशा नहीं बदली जा सकती है। वहीं, हाइपरसोनिक मिसाइल की लॉन्चिंग के बाद भी उसकी दिशा बदली जा सकती है। ये मिसाइल आर्क और प्रोजेक्टाइल नहीं बनाती हैं। इन वजहों से ही ये एंटी मिसाइल सिस्टम के पकड़ में नहीं आती हैं। यानी, कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि अगर कोई देश हाइपरसोनिक मिसाइल लॉन्च करता है तो उसे रोकना लगभग नामुमकिन होगा।

चीन ने कब किया हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट?

16 अक्टूबर को चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल टेस्ट करने की खबर मीडिया में आई। हालांकि, दावा किया गया कि ये टेस्ट फेल रहा। वहीं, दूसरी ओर चीन ने इस तरह के टेस्ट से इनकार कर दिया। इसके बाद भी चीन की इस कोशिश से अमेरिकी खुफिया एजेंसियां हैरान हैं। अमेरिका ने पहले इस परीक्षण की पुष्टि नहीं की थी, लेकिन अब मान लिया है।

ब्रिटिश अखबार फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सेना की तरफ से दागा गया लॉन्ग मार्च रॉकेट एक हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल लिए हुए था, जो अंतरिक्ष की निचली कक्षा में पहुंचने के बाद धरती का चक्कर लगाकर तेजी से अपने टारगेट की तरफ बढ़ा। हालांकि, यह टारगेट से करीब 32 किलोमीटर दूर गिरा। इस टेस्ट को चीन ने पूरी तरह गोपनीय रखा है।

टेस्ट फेल रहा, फिर क्यों कहा जा रहा चिंताजनक?

चीन या ये टेस्ट भले ही फेल हो गया हो, लेकिन इससे चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक विकसित करने के करीब पहुंचने की पुष्टि हो गई है। इस टेस्ट ने दिखा दिया है कि चीन न सिर्फ हाइपरसोनिक हथियार बनाने में आगे है, बल्कि वह अमेरिका की खुफिया तंत्र को भी चकमा दे सकता है।

क्या दुनिया के लिए बड़ा खतरा हैं हाइपरसोनिक मिसाइल?

हाइपरसोनिक मिसाइल से परमाणु बम के साथ ही परम्परागत बम भी लॉन्च किया जा सकता है। इससे क्या लॉन्च करना है ये लॉन्च करने वाले देश पर निर्भर करता है। यही, चिंता का कारण है, क्योंकि मिसाइल का इस्तेमाल जिन परिस्थतियों में होगा उस वक्त देश बुरे से बुरे नतीजे वाले विकल्प को ही इस्तेमाल करेगा।

क्या सिर्फ चीन हाइपरसोनिक मिसाइल पर काम कर रहा है?

हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलप करने की क्षमता रखने वाला चीन इकलौता देश नहीं है। 2020 में अमेरिका ने हाइपरसोनिक मिसाइल के प्रोटोटाइप का सफल परीक्षण करने का ऐलान किया। पेंटागन ने मार्च 2020 में ऐलान किया कि टेस्ट ग्लाइड व्हेकिल ने हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ान भरी।

रूस के पास भी हाइपरसोनिक मिसाइल है। दिसंबर 2019 में पहला हाइपरसोनिक मिसाइल उसकी सेना में शामिल हुई। इससे साथ ही रूस ने दुनिया का पहला हाइपरसोनिक हथियार से लैस देश होने का दावा किया। उस वक्त रूस के अधिकारियों ने दावा किया था कि टेस्ट के दौरान मिसाइल ने मैक 27, यानी करीब 33 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरी थी।

चीन टेस्ट भारत के लिए कितनी बड़ी चिंता?

चीन का टेस्ट सफल हो या नहीं हो उसके रडार में पूरा भारत है, क्योंकि दोनों देश पड़ोसी हैं। इस वजह से बिना हाइपरसोनिक हथियार के भी दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश एक दूसरे को आसानी से निशाना बना सकते हैं। चीन ही नहीं भारत भी हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी के डेवलपमेंट पर काम कर रहा है। भारत का डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) सफलतापूर्वक हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉस्ट्रेटर व्हेकिल (HSTDV) का टेस्ट कर चुका है।

HSTDV एक अनाम एयरक्राफ्ट था, जो हाइपरसोनिक स्पीड से उड़ सकता था। ये एयरक्राफ्ट मैक 6 स्पीड से महज 20 सेकंड में 32.5 किलोमीटर एल्टीट्यूड तक जा सकता है।

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