जेंटलमेंस गेम बनाने वाली टेक्नोलॉजी:अंपायर से नहीं होती गलती, ना खिलाड़ी बेईमानी कर पाते हैं;
इन 10 तकनीक ने बदल दिया क्रिकेट
ICC टी-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप में टीम इंडिया के मिशन की शुरुआत पाकिस्तान के खिलाफ होगी। भारतीय टीम ने वार्म अप मैच में शानदार प्रदर्शन करते हुए इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दोनों टीमों को हराया है। वैसे, मैच के दौरान कई बार ऐसा मौका आता है जब अंपायर से गलती हो जाती है। अंपायर की इसी गलती को सुधारने के लिए टेक्नोलॉजी तीसरी आंख का काम करती है। अब इस खेल में कई हाईटेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां हम इन्हीं टेक्नोलॉजी के बारे में बता रहे हैं…
1. स्टम्प कैमरा
इस तकनीक का इस्तेमाल स्टम्प में कैमरा लगाकर किया जाता है। साथ ही, एक माइक भी लगा दिया जाता है, ताकि जरूरत के वक्त स्टम्प कैमरा से डिसीजन दिया जा सके। इस बार इसमें फ्रंट के साथ रिवर्स कैमरा का भी यूज किया जा रहा है।
ऐसे करती है काम : पिच के दोनों छोर पर जो स्टम्प होते हैं उनमें से मिडिल स्टम्प में ये कैमरे लगा होता है। साथ ही, उसके पीछे की तरफ एक माइक लगाया जाता है। इस तकनीक से मैच के दौरान रन आउट का डिसिजन या फिर गेंदबाज के हाथ से लगकर गेंद स्टम्प को टकराती है, तब उस डिसीजन को देने में आसानी हो जाती है।
2. अंपायर कैमरा
इस कैमरे को खास अंपायर के लिए बनाया गया है, जो उसकी कैप के ऊपर फिट रहता है। इसकी मदद से अंपायर की नजर कहां पर है इस बात का पता चल जाता है।
ऐसे करती है काम : अंपायर कैमरा की मदद से टीवी दर्शकों के लिए एक नया एंगल मिल जाता है। इसका मैच के दौरान खिलाड़ियों को कोई फायदा नहीं मिलता। हालांकि, कई बार अंपायर के करीब से गुजरने वाली गेंद की हरकत इससे साफ देखी जा सकती है।
3. स्निकोमीटर
क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली एक तकनीक स्निकोमीटर है। इस तकनीक का इस्तेमाल टेस्ट, वनडे, टी-20 सभी तरह के फॉर्मेट में किया जाता है।
ऐसे करती है काम : ये टेक्नोलॉजी साउंड पर काम करती है। जब कोई गेंदबाज बॉलिंग करता है तब उसके हाथ से छूटने के बाद बल्लेबाज के बल्ले से टकराने या कीपर के दस्ताने तक पहुंचने के सफर के दौरान गेंद की हरकत पर स्निकोमीटर से नजर रखी जाती है। ये तकनीक उस वक्त बहुत काम की हो जाती है जब गेंद बल्ले के एकदम करीब से गुजरती है। उस वक्त स्निकोमीटर की मदद से ये देखा जाता है कि गेंद ने बल्ले को छुआ है या नहीं। अगर गेंद बल्ले से जरा सी भी टच हुई है तो फिर स्निकोमीटर पर वेव आ जाती हैं।
4. ग्राफिक्स पैकेज
किसी भी मैच के दौरान डीटेल दिखाने के लिए ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए खास पैकेज बनाए जाते हैं, जिसमें मैच से जुड़ी हर बात शामिल होती है।
ऐसे करती है काम : ग्राफिक्स की मदद से टीवी दर्शकों को मैच की जानकारी दी जाती है। जैसे मैच का स्कोर, बल्लेबाज/गेंदबाज का प्रदर्शन, खिलाड़ी का करियर रिकॉर्ड, नेट रन रेट कई तरह के ग्राफिक्स शामिल होते है। इन दिनों क्रिकेट मैदान के ऊपर और हवा में भी ग्राफिक्स दिखाए जाते हैं। मैच प्रिव्यू और रिव्यू के लिए भी भी ये इस्तेमाल होते हैं।
5. LED स्टम्प और बेल्स
क्रिकेट में अब खास तौर पर बनाए गए LED स्टम्प और बेल्स का इस्तेमाल किया जाने लगा है। हालांकि, इस तरह के स्टम्प काफी महंगे होते हैं।
ऐसे करती है काम : LED स्टम्प और बेल्स देखने में जितने अट्रैक्टिव होते हैं, काम भी उतना ही शानदार करते हैं। जब गेंद इन स्टम्प से टकराती है और बेल्स उससे अलग हो जाती है तब इनमें लाइट जलना शुरू हो जाती है। ऐसे में रन आउट, स्टम्पिंग जैसे डिसिजन देने में अंपायर को आसानी हो जाती है।
6. हॉक आई
इस तकनीक का इस्तेमाल हर क्रिकेट मैच में किया जाता है। इसकी मदद से LBW (लेग बिफोर विकेट) का डिसिजन देने में आसानी हो जाती है। इस तकनीक से ये पता चलता है कि गेंद विकेट पर लगती या नहीं। इसे बॉल ट्रैकिंग सिस्टम भी कहा जाता है।
ऐसे करती है काम : हॉक आई के लिए क्रिकेट स्टेडियम में 6 कैमरे लगाए जाते हैं। इन कैमरों का काम बॉल के पाथ को ट्रैक करना होता है। बॉलर के हाथ से बॉल फेंके जाने के समय से लेकर फील्डर द्वारा रोक लिए जाने तक ये 6 कैमरे बॉल को ट्रैक करते हैं। इसके बाद कैमरे में कैप्चर इमेज का कम्प्यूटर 3D इमेज बनाता है। 3D इमेज बनाते समय बॉल की स्पीड, बाउंस और स्विंग को ध्यान में रखा जाता है। जिसकी मदद से LBW का डिसीजन आसान हो जाता है।
7. पिच विजन
इस तकनीक की मदद से गेंदबाजी और बल्लेबाजी की समीक्षा होती है। यानी गेंदबाज ने कितनी गेंद शॉर्ट, फुल, गुड लेंथ पर की। ठीक इसी तरह, बल्लेबाज किन गेंदों पर ज्यादा बीट हुआ और किन पर बेहतर खेला।
ऐसे करती है काम : इस तकनीक की मदद से मैच के दौरान फेकी जाने वाली हर गेंद पर नजर रखी जाती है। यानी गेंदबाजों ने पिच पर कहां गेंद फेकी और बल्लेबाज ने किस गेंद को कहां पर खेला। इस तकनीक का यूं तो मैच के दौरान कोई बड़ा काम नहीं होता, लेकिन इसकी मदद से बल्लेबाज और गेंदबाज अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं। साथ ही, गेंदबाज और बल्लेबाज की कमजोरी भी पता चल जाती है।
8. स्पाइडर कैम
वर्ल्ड कप में पहली बार स्पाइडर कैम का इस्तेमाल किया जा रहा है। मैच के LIVE टेलिकास्ट के लिए HD क्वालिटी के कैमरे के साथ स्पाइडर और ड्रोन कैमरा का भी इस्तेमाल होने लगा है।
ऐसे करती है काम : क्रिकेट मैच पर ऊपर से नजर रखने के लिए स्पाइडर कैम का इस्तेमाल किया जाता है। यह पूरे मैच पर ऊपर से नजर बनाए रखने का नया तरीका है। यह केबल और तार की मदद से फ्लाइंग एरिया में कैमरा को वर्टिकली और हॉरिजेंटली मूव करने में मदद करता है। टीवी पर इस कैमरे के टॉप एंगल शॉट्स बेहतर नजर आते हैं।
9. बॉल स्पिन RPM
इस तकनीक को खास स्पिन गेंदबाजों (स्पिनर) के लिए बनाया गया है। स्पिन गेंदबाज गेंद तो कितना टर्न करा रहा है इस बात का पता इस तकनीक से चल जाता है।
ऐसे करती है काम : बॉल स्पिन RPM (रिवॉल्यूशन पर मिनट) टेक्नोलॉजी बताती है कि स्पिन बॉलर के हाथ से निकलने के बाद बॉल कितनी तेजी से स्पिन कर रही है। इसका नतीजा यह होता है कि तुरंत ही हमें अपने टीवी स्क्रीन पर बॉल की रोटेशनल स्पीड देखने को मिल जाती है।
10. हॉट स्पॉट
ये एक खास तरह की टेक्नोलॉजी है, जिसकी मदद से गेंद के स्पॉट प्वाइंट का पता लगाया जाता है। गेंद जहां भी टच होती है वहां पर एक व्हाइट स्पॉट बन जाता है।
ऐसे करती है काम : हॉट स्पॉट टेक्नोलॉजी की मदद से यह पता लगाया जाता है कि बॉल ने बैट्समैन के किस हिस्से को टच किया है। यानी वो बैट, बैट्समैन के पैड, या फिर बैट्समैन की बॉडी पर कहां टच हुई है। इसके लिए फील्ड के दो तरफ दो इन्फ्रारेड कैमरे लगाए जाते हैं। यह कैमरा बॉल द्वारा बैट्समैन के पैड या बैट पर हिट किए जाने की इमेज को कैच करता है। बाद में, ये ब्लैक एंड व्हाइट पिक्चर के साथ गेंद के स्पॉट को बताता है। अगर गेंद बल्ले से मामूली सा भी टच हुई है तो बल्ले पर एक व्हाइट स्पॉट बन जाता है।
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