मजबूत इच्छाशक्ति की मिसाल भारत, भागीदारी से कोविड-19 टीकाकरण को बनाया सफल

भारत मुझे आशान्वित करता है क्योंकि उसने दिखाया है कि कोई देश मजबूत नेतृत्व और स्वास्थ्य तंत्र में निरंतर निवेश के माध्यम से कैसे अपनी जनता की रक्षा करने में सक्षम है। जो समय बीत गया उसका कुछ नहीं किया जा सकता परंतु भविष्‍य को अवश्य संवारा जा सकता है।

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भारत ने कई व्यापक टीकाकरण अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है

बिल गेट्स। भारत की क्षमताओं ने मुझे बार-बार प्रभावित किया है। करीब 130 करोड़ की आबादी वाले उपमहाद्वीप सरीखे इस देश ने स्वास्थ्य के मोर्चे पर कठिन चुनौतियों का बखूबी तोड़ निकाला है। इसी कड़ी में भारत ने अब सौ करोड़ से अधिक कोविड रोधी टीके लगाकर एक और अविस्मरणीय उपलब्धि हासिल की है। यह वैक्सीन अभियान बहुत बड़ा होने के साथ ही तेज रफ्तार भी रहा। भारत की 73 प्रतिशत से अधिक आबादी को टीके के पहली खुराक दी जा चुकी है। वहीं 30 प्रतिशत लोग दोनों खुराक ले चुके हैं। इनमें से 48 प्रतिशत महिलाएं हैं। भारत की इस सफलता का विश्लेषण दो कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है। एक तो यह कि इससे उत्साहित भारत इस मोर्चे पर निरंतरता के साथ आगे बढ़ सके। दूसरा यह कि भारत के अनुभव से सीख लेकर दूसरे देश अपनी परिस्थितियों के अनुसार उसे अपना सकें।

जहां तक भारत की सफलता के बिंदुओं की बात है तो सबसे पहली बारी दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आएगी। इसकी कमान स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाली। उन्होंने इस साल 31 दिसंबर तक सभी वयस्क भारतीयों के टीकाकरण का लक्ष्य तय किया। अन्य नेताओं ने उनके आह्वान पर तत्काल अपेक्षित प्रतिक्रिया दी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उच्च स्तरीय समितियां गठित की गईं, जिन्होंने वैक्सीन के शोध एवं विकास और विनिर्माण का खाका तैयार करने के साथ ही देश भर में वैक्सीन की चरणबद्ध आपूर्ति की योजना बनाई। इसकी शुरुआत सबसे अधिक जोखिम वाले वर्गों को वरीयता देने के साथ हुई।

भारत की सफलता का दूसरा बिंदु टीकाकरण में भारत की महारत से जुड़ा है। भारत ने कई व्यापक टीकाकरण अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया है। भारत का सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम दुनिया में स्वास्थ्य पर होने वाले सबसे विस्तृत सरकारी खर्चों में से एक है। भारत में हर साल 2.7 करोड़ नवजात शिशुओं का आवश्यक टीकाकरण किया जाता है। वहीं हर साल एक से पांच वर्ष के 10 करोड़ से अधिक बच्चों को बूस्टर डोज दी जाती है। भारत में करीब 27,000 कोल्ड चेन फैसिलिटी हैं। ये हैरतअंगेज आंकड़े यही दर्शाते हैं कि एक कारगर एवं प्रभावी स्वास्थ्य तंत्र को बनाने के लिए साल दर साल निरंतर रूप से निवेश होता आया है। ऐसा तंत्र जो दुर्गम और दूरदराज, के इलाकों में भी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करा पाए। महामारी के दौरान यह बुनियादी ढांचा महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। अभी भारत में करीब 3,48,000 सरकारी और 28,000 निजी केंद्र कोविड-19 टीकाकरण में लगे हैं। इनमें उत्तर और पूवरेत्तर के तमाम दुर्गम इलाके भी हैं। भारत में सक्रिय 23 लाख आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों जैसा प्रशिक्षण दिया गया, ताकि देश में कोविड-19 का सुगम टीकाकरण सुनिश्चित हो सके। इस सफलता का तीसरा पहलू वैक्सीन और टीकों के विकास एवं उनके उत्पादन में भारत की विशेषज्ञता को भुनाने से जुड़ा है।

कोविड महामारी से पहले भी भारतीय टीकों ने मेनिनजाइटिस, निमोनिया और डायरिया जैसी बीमारियों से दुनिया भर में करोड़ों लोगों की जान बचाई है। हमें गर्व है कि हमारे फाउंडेशन ने भारत के विभिन्न हिस्सों से लेकर निम्न एवं मध्यम आय वर्ग वाले कई देशों में इन टीकों को सुरक्षित एवं किफायती रूप से उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार सहित कई विनिर्माताओं के साथ मिलकर काम किया। इनमें सीरम इंस्टीट्यूट, भारत बायोटेक और बीआइओई जैसे संस्थान शामिल हैं। अब भारत में निर्मित कोविशील्ड और कोवैक्सीन भारतीयों को कोविड-19 के खिलाफ रक्षा कवच प्रदान कर रही हैं।

भारत ने टीकाकरण अभियान की डिजिटल निगरानी के लिए अपनी सूचना प्रौद्योगिकी शक्ति का बखूबी इस्तेमाल किया। कोविन जैसा ओपन सोर्स प्लेटफार्म इसकी उम्दा मिसाल है, जो टीकाकरण से जुड़ी विविध सूचनाओं और जानकारियों को समाहित किए हुए है। यह प्लेटफार्म भारत में अन्य स्वास्थ्य संबंधी अभियानों को सार्थक बनाने में सक्षम होगा। ऐसे प्लेटफार्म दूसरे देशों के लिए भी उपयोगी होंगे।

भारतीयों ने अपनी भागीदारी से कोविड-19 टीकाकरण को सफल बनाया है। पोलियो उन्मूलन में मिले अनुभवों से सीख लेते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने लोगों को लामबंद करने पर ध्यान केंद्रित किया। लोगों को जागरूक करने के लिए हरसंभव उपाय किए, जिनके अपेक्षित नतीजे भी मिले। टीके को लेकर लोगों की हिचक तोड़ी गई। इसके लिए ‘वैक्सीन महोत्सव’ भी आयोजित किया गया, जिसमें लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। इस प्रगति के बावजूद हम तब तक सहज नहीं हो सकते जब तक कि दुनिया में अधिकांश लोगों को टीका न लग जाए। हमें कोरोना के नए प्रतिरूपों से भी सावधान रहना होगा।

वैक्सीन का असमान वितरण भी चिंताजनक है। निम्न आय वर्ग वाले देशों की तीन प्रतिशत से भी कम आबादी को टीका मिल पाया है। इन सवालों के जवाब अधिक से अधिक वैक्सीन विकास और उनके तेज उत्पादन में निहित हैं। इसके लिए वैक्सीन की वैश्विक विनिर्माण क्षमता को धार देनी होगी। कोवैक्स और वैक्सीन मैत्री जैसी गतिविधियों के जरिये भारत इसमें महती भूमिका निभाकर योगदान के लिए तैयार है। भारत मुझे आशान्वित करता है, क्योंकि उसने दिखाया है कि कोई देश मजबूत नेतृत्व और स्वास्थ्य तंत्र में निरंतर निवेश के माध्यम से कैसे अपनी जनता की रक्षा करने में सक्षम है। जो त्रासद समय बीत गया, उसका कुछ नहीं किया जा सकता, परंतु आने वाले समय को अवश्य संवारा जा सकता है।

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