अकाल तख्त की मांग- सिंघु बॉर्डर पर युवक की हत्या की स्वतंत्र एजेंसी करे जांच
चंडीगढ़. अमृतसर स्थित अकाल तख्त ( Akal Takht) के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह (Giani Harpreet Singh) ने सिंघु बॉर्डर पर हुई कथित बेअदबी को लेकर दलित सिख लखबीर सिंह की हत्या को कानून और व्यवस्था की असफलता करार देते हुए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. उन्होंने घटना की एक स्वतंत्र एजेंसी से गहन जांच की मांग की है. उन्होंने वैश्विक स्तर पर सिखों की छवि के बारे में चिंता जताते हुए कहा कि यह घटना भावनात्मक धार्मिक भावनाओं का परिणाम है जिसे अत्यंत सटीकता और दक्षता के साथ निपटाया जाना चाहिए. जत्थेदार ने कहा कि घटना के सभी पहलुओं की जांच और खुलासा किया जाना चाहिए ताकि सिख समुदाय का सही पक्ष दुनिया के सामने पेश किया जा सके.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार किए गए मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का हवाला देते हुए, जिसमें कहा गया है कि ‘एक व्यक्ति हिंसक रास्ते पर तभी जाता है जब कानून और शासन उसके मानवाधिकारों की रक्षा नहीं करता है’. उन्होंने मीडिया को घटना के अधूरे पहलुओं को दिखाकर सिखों की छवि खराब करने से बचने की भी सलाह दी. जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब सिखों के लिए प्रमुख हैं. सिंघु बॉर्डर की घटना की पृष्ठभूमि में पिछले पांच वर्षों के दौरान पंजाब में बेअदबी की लगभग 400 घटनाएं हुई हैं.
‘कानून व्यवस्था और तंत्र न्याय नहीं दे सका’
उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था और तंत्र न्याय नहीं दे सका. ज्यादातर मामलों को अपराधियों को मानसिक रूप से बीमार घोषित करने के बाद बंद कर दिया गया, जबकि इसके पीछे के मकसद और ताकतों का खुलासा करने से परहेज किया गया. अगर बेअदबी की घटनाओं के पीछे गलत करने वालों और असली साजिशकर्ताओं के लिए अनुकरणीय सजा होती, तो यह कम से कम सिख समुदाय के घावों को सांत्वना के रूप में भर देता.
उन्होंने मांग की कि एक स्वतंत्र एजेंसी को सिंघु बॉर्डर घटना के सभी पहलुओं, इसकी पृष्ठभूमि, इसके पीछे की ताकतों और इसके पीछे उनके मकसद की जांच करनी चाहिए. कानून को अपना काम करना चाहिए, लेकिन सच्चाई की जीत होनी चाहिए. पंजाब और हरियाणा की पुलिस को निष्पक्ष होकर अपना काम करना चाहिए और निर्दोष सिखों को परेशान करने से बचना चाहिए. इस बीच, एसजीपीसी की अध्यक्ष बीबी जागीर कौर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सिखों को बदनाम करने और विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को दबाने की कोशिश की जा रही है.