चिंता करना हो सकता है फायदेमंद:एंग्जाइटी को तनाव में न बदलकर, मोटिवेशन और प्लानिंग में करें इस्तेमाल
लाइफ में अचानक बदलाव आने पर नर्वस होना नॉर्मल बात है। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसकी लाइफ में कोई चिंता न हो। लेकिन कई शोध बताते हैं कि एंग्जाइटी यानी चिंता का एक पॉजिटिव पहलू भी हैं, जहां इसका इस्तेमाल मोटिवेशन, स्ट्रेटेजी और प्लानिंग के लिए कर सकते हैं। जर्नल ऑफ इंडिविजुअल डिफरेंसेज में प्रकाशित रिसर्च में ये बात सामने आई कि लोग तब बेहतर परफॉर्म करते हैं, जब वे अपनी एंग्जाइटी को स्वीकार करें, और अपनी पूरी ताकत से लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित हो जाएं। कई साइकोलॉजिस्ट्स भी मानते हैं कि एंग्जाइटी नॉर्मल है पर इसमें आगे की प्लानिंग और खुद को मोटिवेट करने की गुंजाइश होती है, जो जरुरी भी है।
एंग्जाइटी क्या है?
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार एंग्जाइटी एक इमोशन है, जिसके लक्षण हर व्यक्ति में अलग हो सकते हैं। किसी को फ्लाइट में ट्रेवल करते समय एंग्जाइटी होती हैं, तो कोई व्यक्ति अजनबी से डेट पर पूछने की कोशिश करते समय घबरा सकता है। एंग्जाइटी आने वाले खतरे से अलर्ट करने की एक फीलिंग है,जो ज्यादातर लोगों में सिचुएशन को देखकर पनपती हैं। कई लोगों को एंग्जाइटी छोटी-छोटी चीजों पर भी होने लगती, जैसे नौकरी के लिए इंटरव्यू में जानने से पहले या फिर स्पीच देने से पहले। हालांकि, ये एंग्जाइटी उनके लिए बिल्कुल भी खतरनाक नहीं हैं फिर भी ऐसी सिचुएशन में बॉडी रिएक्ट करती है।
कैसे फायदेमंद है एंग्जाइटी?
साइकोलॉजिस्ट समृद्धि खत्री बताती हैं कि जब व्यक्ति एंग्जाइटी का अनुभव करता है तो उनके पास केवल दो ऑप्शन होते हैं कि एक्सट्रा एनर्जी कहां लगाएं या एंग्जाइटी कैसे छुपाएं। कई बार कलाकार भी स्टेज पर परफॉर्म करने से पहले एंग्जाइटी का शिकार होते हैं। यहां तक कि एग्जाम से पहले बच्चों में भी चिंता नजर आती है। कई शोध बताते हैं कि एंग्जाइटी परफॉर्मेंस खराब नहीं करती है, बल्कि बेहतर कर सकती है। चिंता करने से चीजों को ज्यादा अच्छे से समझ पाते हैं, लेकिन ये व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वे इसे किस तरह हैंडल करते हैं। ऐसे में हमेशा कोशिश करें कि एंग्जाइटी को पॉजिटिव तरीके से इस्तेमाल करें, ताकि आप बेहतर परफॉर्म कर सके।
इन बातों का रखें ध्यान
कनाडा यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू के शोध के अनुसार एक हद तक चिंता किसी खास घटना के बारे में अधिक चीजें याद रखने में मदद करती है, लेकिन ज्यादा चिंता करने वाले लोगों को अलर्ट रहना चाहिए, क्योंकि इससे दिमाग पर असर पड़ता है। हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि चिंता तनाव का रूप न ले। इसके लिए एंग्जाइटी और तनाव में फर्क समझें। एंग्जाइटी को पॉजिटिव तरीके से बैलेंस कर फायदा उठाएं। किसी भी बारे में चिंता करते वक्त उसमें रिस्क फैक्टर के बारे में सोचने के साथ उससे निपटने के बारे में भी सोचे। कई चीजों के बारे में एक साथ सोचने से बचे, ताकि दिमाग सिंगल टास्किंग रहे। हमेशा अपना फोकस पॉजिटिव नतीजों की तरफ रखें।
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