कश्मीर में बिहारी मजदूरों के घर से रिपोर्ट:कभी डर का माहौल नहीं रहा
लॉकडाउन में कश्मीरियों ने हमें घर बैठे खिलाया; अब अचानक आतंकियों ने हमारे साथी की हत्या कर दी
बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले 57 साल के वीरेंद्र पासवान श्रीनगर में पानीपुरी का ठेला लगाकर अपनी रोजी रोटी चलाते थे। दिन में करीब 700-800 रुपए कमाई हो जाती थी। दो साल से यह सिलसिला चल रहा था। 5 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे वीरेंद्र अपने घर से पानीपुरी का ठेला लेकर के तो निकले, लेकिन वापस नहीं लौटे। आतंकियों ने उनकी हत्या कर दी।
दैनिक भास्कर रिपोर्टर वैभव पलनीटकर और मुदस्सिर कल्लू श्रीनगर के आलमगीर इलाके में वीरेंद्र के घर पहुंचे और उनके साथ रहने वालों से बात की। पढ़िए ये ग्राउंड रिपोर्ट…
सड़क के किनारे एक पुराने खंडहर जैसे मकान में घुसते ही 3-4 पानीपुरी के ठेले खड़े हैं। सिर नीचे झुकाकर पतली सी सीढ़ियों से चढ़ते हुए हम वीरेंद्र के पहली मंजिल वाले कमरे तक पहुंचे। वहां पहुंचने पर यकीन ही नहीं हुआ कि यहां कोई रहता भी होगा। बिहारी मजदूर मुश्किल हालातों में रहकर भी अपने घर भेजने के लिए 4 पैसे इकट्ठा कर लेते हैं। एक छोटे से कमरे में रहकर वीरेंद्र पानीपुरी तैयार करते थे, उनके साथ बिहार के ही दूसरे मजदूर भी रहते थे, वे भी पानीपुरी, भेलपुरी बेचने का काम करते हैं।
कश्मीर में दूसरे राज्यों के 3 लाख लोगों को रोजगार, इनमें हजारों बिहारी भी
फोटो में- मृतक वीरेंद्र पासवान का किराए का कमरा। 6×4 के इसी कमरे में वे रहते थे। बिहार के बाकी मजदूर भी यहां ऐसे ही कमरों में गुजारा कर रहे हैं।
कश्मीर में करीब 3 लाख लोग दूसरे राज्यों से आकर रहते हैं, इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो केंद्र सरकार के मुलाजिम हैं। रोजगार की तलाश में आने वाले लोग यहां पर तरह-तरह के मजदूरी के काम करते हैं। शहरों में बढ़ई, मिस्त्री, बेलदारी, रेहड़ी, पटरी से लेकर होम वर्कर तक का काम करते हैं। वहीं कश्मीर के गांवों में खेती-किसानी के काम में भी बड़ी तादाद में बिहारी मजदूर लगे हुए हैं। ये मजदूर सेब उतारने से लेकर केसर की खेती तक का काम सीख चुके हैं।
कभी कोई डर का माहौल नहीं रहा
बांका के रहने वाले पंकज पासवान भी यहां पानीपुरी बेचते हैं। वीरेंद्र उनके साथ ही रहते थे। पंकज श्रीनगर में 27 साल से रह रहे हैं। पहले उनकी पत्नी और बच्चे भी साथ रहते थे, लेकिन आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद बिगड़े हालातों के मद्देनजर उन्होंने परिवारवालों को घर भेज दिया। पंकज बताते हैं, ‘वीरेंद्र इतना सीधा-साधा था कि ज्यादा किसी से बात भी नहीं करता था। कभी कोई डर का माहौल ही नहीं रहा।‘
वीरेंद्र की मौत के बाद उनका पानीपुरी का ठेला सूना पड़ा है। वे पिछले दो साल से यहां पानीपुरी बेचने का काम करते थे।
‘कोई धमकी भी नहीं मिली। यहां आस-पड़ोस के सब लोग खूब मदद भी किया करते थे। लॉकडाउन के वक्त यहां के स्थानीय लोगों ने हमें 4 महीने बैठाकर खिलाया। वीरेंद्र भी तब यहीं थे। लोग आकर आटा, चावल, सब्जियां देकर जाते थे।’
यहां के खुशनुमा मौसम में मजा आता है
बिहार के ही रहने वाले पंडा ठाकुर वीरेंद्र के साथ उसी कमरे में रहा करते थे। पंडा ठाकुर मजदूरी का काम करते हैं और कभी-कभी भेलपुरी का ठेला लगाते हैं। हमने उनसे पूछा कि अपने घर से इतना दूर आकर क्यों रहते हैं? पंडा बताते हैं, ‘यहां मौसम हमेशा खुशनुमा रहता है, इसलिए हमें यहां रहने में मजा आता है। यहां पर दूसरे शहरों की तरह कॉम्पिटिशन नहीं है। रहने का खर्च भी ज्यादा नहीं है और हमारी अच्छी-खासी कमाई हो जाती है। बिहार से ज्यादा हमारे मुरीद कश्मीर में हैं, यहां लोग किसी को भूखा सोने नहीं देते हैं। इसलिए यहां टिके हुए हैं।’
हमने पंडा से पूछा कि क्या वे अपने साथी की हत्या के बाद वापस बिहार लौटने के बारे में तो नहीं सोच रहे? इस पर वे कहते हैं- ‘वीरेंद्र की हत्या के बाद डर तो लग रहा है, लेकिन वापस लौटने के बारे में हम नहीं सोच रहे। यहां के कई सारे लोगों ने आकर हमें हिम्मत दी है। मुस्लिम समुदाय के कई लोग आए जिन्होंने कहा- डरना मत, हम आपके साथ हैं। फिर अगर कमाना है तो काम तो करना ही होगा।‘
वीरेंद्र के साथ रहने वाले पंडा ठाकुर मजदूरी का काम करते हैं। वे भी कभी-कभी भेलपुरी का ठेला लगाते हैं।
यहां की सरकार ने दी 6 लाख की मदद, बिहार के नेताओं ने पूछा तक नहीं
वारदात के दिन को याद करते हुए पंकज बताते हैं, ‘कुछ लोग कह रहे थे कि गोलगप्पे वाले को मार दिया गया, लेकिन हमें यकीन नहीं हुआ। जब हमारे मकान मालिक ने फेसबुक पर फोटो दिखाया, तब हम समझ गए कि वीरेंद्र को मार दिया। इसके बाद हम अस्पताल गए। अधिकारियों ने कहा कि अगर आप बॉडी बिहार ले जाना चाहते हैं, तो हमारे पास व्यवस्था तैयार है, लेकिन हम लोगों के पास लोग भी नहीं थे और वक्त भी कम था।‘
‘इसलिए वीरेंद्र के घरवालों से हमने पूछा कि क्या करना है, तो घर वालों ने कहा कि वीरेंद्र को उसके भाई से अग्नि दिलवा कर वहीं अंतिम संस्कार कर दो। वीरेंद्र के परिवार को जम्मू कश्मीर सरकार ने 6 लाख रुपए की मदद की, लेकिन बिहार से किसी नेता ने पूछा तक नहीं। वीरेंद्र के परिवार में पत्नी और 6 बच्चे थे। वे दिन-रात अपनी बेटियों की शादी की चिंता करते रहते थे।’
कश्मीर के बारे में जो बात होती है, वो बिल्कुल गलत है
बिहार के बांका जिले के रहने वाले पंकज पासवान भी पानीपुरी बेचते हैं। वीरेंद्र इनके साथ ही रहते थे। वे मोबाइल पर वीरेंद्र की तस्वीर दिखा रहे हैं।
पंकज पासवान से हमने कुछ बातें कश्मीर के हालातों पर की। हमने उनसे पूछा कि पूरे देश में लोगों के बीच नरेटिव बनाया जाता है कि कश्मीर में लोग बहुत कट्टर हैं, धार्मिक तनाव ज्यादा है, क्या वाकई में ऐसा है? पंकज बताते हैं, ‘मैं 27 साल से यहां रह रहा हूं और दावे के साथ कह सकता हूं कि ये बात पूरी तरह से गलत है। यहां लाखों बिहारी रहते हैं, अगर लोग खराब होते तो क्या हम यहां रह पाते। मेरी बेटी 7वीं तक यहीं के स्कूलों में पढ़ी है। इन्हीं बच्चों के साथ खेलकूद कर बड़ी हुई। हम कश्मीरी लोगों के साथ ही मिलजुलकर रहते हैं। मुझे यहां बिहार से ज्यादा अच्छा लगता है। मैं मरते दम तक यहीं रहूंगा।’
कश्मीरियों को भा गया है बिहारी पानीपुरी का जायका
इसके बाद हम एक पानीपुरी बेचने वाले धनंजय पासवान के साथ ठेला लेकर निकले और श्रीनगर के आलमगीर इलाके से डाउनटाउन होते हुए हम पहुंचे उस जगह, जहां वे पानीपुरी का ठेला लगाते हैं। धनंजय बताते हैं, ‘हम टूरिस्ट वाले इलाके में अपना ठेला नहीं लगाते हैं। पानीपुरी ज्यादातर कश्मीरी लोग ही खाते हैं। स्कूल-कॉलेज की लड़कियों को हमारी पानीपुरी बहुत पसंद आती है। अगर हमारे ठेले की पानीपुरी कोई एक बार खा ले तो गारंटी है कि दूसरी बार लौटकर जरूर आएगा।’
धनंजय पासवान पानीपुरी का ठेला लेकर जाते हुए। वे लंबे समय से यहां पानीपुरी बेच रहे हैं। वे कहते हैं कि कश्मीरी लोग हमारी पानीपुरी ज्यादा पसंद करते हैं।
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