जब महिलाओं पर माता आती है:क्यों नवरात्रि ‘देवी आने’ के लिए परफेक्ट मौसम है ?
भारत ही नहीं, यूरोपीय देशों में भी 'आत्मा आने' की घटनाएं हो रहीं
हर धर्म के लोगों का सुपर-नैचुरल ताकतों पर विश्वासपुरुष भी खुद पर देवी-देवता के आने का दावा कर रहेमिडिल ऐज और कम पढ़े-लिखे लोग ज्यादा शिकार
माता का जगराता चल रहा है। सारे लोग झूम रहे हैं, तभी शोर सुनाई पड़ता है। आस्तिक लोगों की भीड़ अचानक एक महिला के चारों ओर घेरा बना लेती है। थोड़ी देर पहले नॉर्मल लग रही वो महिला फटी हुई आवाज में बोलने लगती है। वह तेजी से झूमने भी लगती है। कुछ महिलाएं आगे बढ़कर उसके बाल खोल देती हैं। उसके माथे पर सिंदूर की बड़ी-सी बिंदी लगा दी जाती है।
हरदम कपड़े संभालकर चलने वाली उस महिला को अब कपड़ों की सुध भी नहीं। उसे सिर पर माता की चुनरी ओढ़ा दी जाती है और लोग नीचे बैठकर उसके पैर छूने लगते हैं। ऐसा कहा जाता है कि उस महिला पर देवी आ गई है। कुछ मिनटों या लगभग आधे घंटे तक देवी उसके शरीर में रहती है, फिर छू-मंतर हो जाती है।
नवरात्रि में महिलाओं पर आती है माता
नवरात्रि में कई महिलाएं अजीबो-गरीब व्यवहार करने लगती हैं और कहा जाता है कि उन पर माता आ गई। जब तक तथाकथित तौर पर देवी शरीर में रहती है, महिला की खूब पूजा होती है। लोग उससे अपने फ्यूचर को लेकर सवाल करते हैं। बीमार लोग अपने इलाज के लिए माता का हाथ सिर पर रखवाते हैं। ऐसे नजारे अक्सर दिख जाते हैं।
ये तो हुई टेम्परेरी तौर पर माता आने की बात, वहीं बहुत से लोग स्थाई तौर पर खुद को देवी या देवता क्लेम करने लगते हैं। कई पुरुष भी ऐसा कर चुके हैं। 1971 बैच के IPS अधिकारी डीके पांडा ऐसे ही एक शख्स थे। वे भगवान कृष्ण की भक्ति में ऐसे डूबे कि खुद को राधा कहने लगे। वे कहते थे कि खुद भगवान ने सपने में आकर उनसे ये भेद खोला कि वे राधा थे। सालों तक वे छिपकर राधा बने रहे, फिर साल 2005 में वे खुलकर सामने आ गए। वे राधा की तरह कपड़े पहनने और श्रृंगार करने लगे। माथे पर सिंदूर और हाथों में चूड़ियां पहनने लगे।
क्या वाकई देवी आती हैं?
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये सच नहीं है। छत्तीसगढ़ अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र इस पर लगभग दो दशक से काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उनके सामने छत्तीसगढ़ या पड़ोसी राज्यों जैसे झारखंड, ओडिशा के अलावा दूर-दराज के राज्यों से भी कई ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जहां महिलाओं पर अचानक माता आ जाती है। साइंस की भाषा में ये पजेशन सिंड्रोम है।
इस सिंड्रोम के शिकार को ये लगने लगता है कि उस पर किसी देवी-देवता का वास है। कई बार लोग भूत-पिशाच जैसी बातें करते हैं, ये भी पजेशन सिंड्रोम का ही उदाहरण है। इस अवस्था में मरीज अपने नॉर्मल व्यवहार से हटकर हरकतें करने लगता है और बाद में क्लेम करता है कि ये सब आत्मा या देवी-देवता ने उससे करवाया।
हर धर्म के लोगों का सुपर-नैचुरल ताकत पर विश्वास
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ने साल 1969 में दावा किया था कि ये सिंड्रोम किसी एक देश या जेंडर तक सीमित नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की 488 सोसाइटी में है। अलग-अलग धर्मों में भी ये दिखता है। जैसे हिंदुओं में देवी या माता आना है, वैसे ही इस्लाम में जिन्न आना या फिर क्रिश्चियनिटी में ऐसा दिख जाता है, जब लोग अपने ऊपर किसी सुपर-नैचुरल ताकत का वास होने का दावा करने लगते हैं।

इस सिंड्रोम का सीधा कनेक्शन मानसिक बीमारियों से है
संभावित मेंटल डिसऑर्डर- कभी नॉर्मल, कभी एब्नॉर्मल पर्सनैलिटी
मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर – आत्मा या देवी के आने का दावा
साइकियाट्रिक बीमारी – जैसे डिल्यूशनल डिसऑर्डर
सिजोफ्रेनिया – जागते हुए भी सोए हुए की तरह बिहेवियर- स्लीप वॉकिंग या ट्रांस स्टेट
क्यों सब पर नहीं आती माता?
ये तो हुई सिंड्रोम की बात, लेकिन ऐसा क्यों है कि कुछ ही लोग इस सिंड्रोम का शिकार होते हैं? डॉक्टर मिश्र के मुताबिक, देवी या देवता आने का दावा करने वाले ज्यादातर लोग वks होते हैं, जो किसी न किसी मानसिक परेशानी से जूझ रहे होते हैं। वे जब भक्ति के माहौल में जाते हैं, जहां भजन या आरती चल रही होती है तो म्यूजिक उनके दिमाग पर असर करता है। जिससे वे ट्रांस स्टेट में पहुंच जाते हैं। ये एक किस्म का हिप्नोटिज्म है, जिसमें मरीज खुद से ही सम्मोहित हो जाता है। वो तंद्रा में आकर झूमने लगता है, या कुछ भी बोलने लगता है।
नॉर्मल स्टेट में कैसे ला सकते हैं?
देखा गया है कि जैसे ही म्यूजिक बंद किया जाता है, महिला या लड़की अपने आप झूमना बंद कर देती है। या फिर एक तरीका ये भी है कि देवी या देवता आने का क्लेम करने वालों को उस माहौल से बाहर निकाला जाए। जैसे ही उन्हें वहां से हटाया जाता है, वो वापस सामान्य हो जाती हैं। कई बार उन पर पानी छिड़कना भी काम कर जाता है, लेकिन इन सब बातों से ज्यादा जरूरी है कि हम ऐसी महिला, लड़की या व्यक्ति से बात करें। उसे समझाएं कि देवी आना जैसी बात महज भ्रम है। प्रॉब्लम पर बात करना काफी मदद कर सकता है।
आस्था की आड़ में कारोबार भी
बहुत से लोग तो वाकई पजेशन सिंड्रोम का शिकार होते हैं, लेकिन कई शातिर लोग भी होते हैं, जो आस्था से खेलते हैं। वे खुद पर देवी या देवता आने का दावा करते हैं। यहां तक कि वे यह भी कह देते हैं कि उन पर हफ्ते से इस दिन तक देवी आती हैं। इस तरह से वे दुकान सजा लेते हैं। या वीक के किसी खास दिन उन पर देवी आती है। लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं। कई बार ये भी होता है कि देवी या देवता आने का क्लेम करने वाले अपनी पर्सनल दुश्मनी भी निकालते हैं। वे किसी बीमार को देखकर कह देते हैं कि फलां आदमी के तंत्र-मंत्र के कारण बीमारी हुई। इसके बाद एक नया ही खेल शुरू हो जाता है, जिसकी शिकार महिला को डायन करार दे दिया जाता है। कहीं-कहीं उन्हें टोनही भी कहते हैं।
डायन बता कर मार दी जाती है महिला
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने साल 1999 के बाद से ‘विच हंटिंग’ पर डेटा इकट्ठा करना शुरू किया। इसमें पाया गया कि 2001 से लेकर 2014 तक लगभग 2290 महिलाओं को डायन कहते हुए उन्हें मार दिया गया। देश के कई राज्यों में ऐसा हो रहा है। इनमें राजस्थान, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य टॉप पर हैं। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में ऐसा ज्यादा दिख रहा है।
क्या इल्जाम लगते हैं महिलाओं पर?
किसी का खेत सूख जाए, कोई बीमार हो जाए, बच्चे बीमार हो जाएं या फिर गांव में बारिश न हो- ऐसे सारे मामलों का ठीकरा उसी महिला पर फूटता है, जिसे डायन कहा जा रहा हो। इसके बाद उस पर पाशविक अत्याचार का खेल शुरू हो जाता है। उसके बाल छील दिए जाते हैं। परिवार को गांव से बाहर कर दिया जाता है। महिला का मुंह काला करके उसे गांव भर में घुमाया जाता है। कई बार ये हिंसा जान लेने पर जाकर ही रुकती है। हालांकि सरकार ने प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन फ्रॉम विच-हंटिंग बिल लागू किया है, जिसके तहत कड़ी सजा और जुर्माने का नियम है, लेकिन इसके बाद भी देश में डायन प्रताड़ना जारी है।
किस पर आती हैं देवी?
महिलाओं पर पजेशन सिंड्रोम का ज्यादा असरपुरुष भी खुद पर देवी या देवता के आने का दावा कर रहेमिडिल ऐज और कम पढ़े-लिखे लोग ज्यादा शिकार
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