लखीमपुर हिंसा के सियासी मायने, BJP के सामने डैमेज कंट्रोल बड़ी चुनौती,
प्रियंका गांधी फ्रंटफुट पर खेलकर सपा-बसपा के समीकरण बिगाड़ रहीं
3 अक्टूबर 2021 को राजधानी लखनऊ से 130 किमी दूर लखीमपुर-खीरी में जो कुछ हो रहा था, उसका अंदाजा सियासत के केंद्र में बैठे लोगों को भी नहीं था। हालांकि, सूरज ढलने के साथ लखीमपुर चर्चाओं में आ गया और शाम तक पूरे देश की निगाहें इस जिले पर थी। खबर आई कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे ने अपनी गाड़ी के नीचे किसानों को कुचल दिया। 4 किसानों की मौत हो गई है।
सरकार ने हिंसा के बाद ऐसा मैनेजमेंट किया कि किसी भी नेता को लखीमपुर पहुंचने नहीं दिया। कांग्रेस ने फ्रंट फुट पर खेला और माइलेज लेने में भी आगे रही। अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि इस हिंसा के बाद किस सियासी दल को कितना फायदा और कितना नुकसान हुआ।
दैनिक भास्कर के 5 रिपोर्टर्स अपनी 5 रिपोर्ट के जरिए सियासी पहलू से आपको रूबरू करा रहे-
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री का आरोपी बेटा।
विनोद मिश्रा बता रहे भाजपा की राजनीति..
सत्ताधारी भाजपा को नफा या नुकसान?
हिंसा के बाद सीएम योगी ने अपना गोरखपुर दौरा रद्द किया। वे लखनऊ लौट आए। रात में ही सीनियर अफसरों के साथ मीटिंग की और ADG प्रशांत कुमार और अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी को मौके पर भेजा। सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा की आग को पूरे सूबे में फैलने से रोकना था।
लिहाजा तुरंत ही लखीमपुर में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई। किसी को वहां जाने की इजाजत नहीं थी। एक तरफ अधिकारी सरकार की ओर से किसानों से बातचीत कर सहमति बनाने में जुटे थे तो दूसरी तरफ भाजपा के थिंक-टैंक इसे सियासी अखाड़ा बनने से रोकने की रणनीति बना रहे थे।
भाजपा को अपने सियासी नुकसान से ज्यादा विपक्षी दलों की सियासी फायदे को लेकर चिंता थी। सरकार ने महज 20 घंटे के भीतर कुछ इस तरह से हालात को संभाला कि विपक्ष की सारी सियासत धरी की धरी रह गई। जो माहौल अगली सुबह से गरमाया हुआ था, दोपहर 1 बजते-बजते शांत हो गया।
किसान नेता राकेश टिकैत और प्रदेश के ADG प्रशांत कुमार की साथ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की तस्वीर सामने आते ही विपक्ष की आवाज ठंडी पड़ गई। किसान नेता राकेश टिकैत के सहारे समझौता करा योगी ने विपक्ष के सारे वार फेल कर दिए। भाजपा ने आंदोलन में हुई हिंसा के बाद भी इसे उग्र होने से रोक दिया।
राहुल गांधी और प्रियंका ने मंगलवार को लखीमपुर में तीन मृतक किसानों के परिवारों से मुलाकात की।
फ्रंट फुट पर खेलने वाली कांग्रेस को मिला पॉलिटिकल माइलेज
हिंसा ने यूपी में जमीन मजबूत करने की तैयारी में जुटी कांग्रेस के लिए संजीवनी के समान था। महासचिव प्रियंका गांधी ने सुबह का इंतजार किए बगैर रात में ही लखीमपुर जाने का प्लान बना लिया। सुबह जब तक लोगों की नींद खुलती, उनका सीओ को धाराएं गिनाने वाला वीडियो वायरल हो चुका था। प्रियंका सीतापुर पहुंच गई थी, लेकिन पुलिस हिरासत में।
प्रियंका ने इस हिरासत से ही सियासत शुरू कर दी। पहले उनका झाड़ू लगाने वाला वीडियो आया, फिर मोदी से सवाल। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी जान आ गई थी। कैमरे का फोकस अब प्रियंका पर था। प्रियंका के लिए कांग्रेस के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री लगातार लखनऊ पहुंचने की कोशिश में थे।
6 अक्टूबर को भी राहुल दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ लखनऊ पहुंचे, सीतापुर गए और प्रियंका के साथ किसानों से मुलाकात की। तीन दिनों तक मीडिया का सारा फोकस और अटेंशन कांग्रेस पर ही रहा। कहा जा रहा है कि कांग्रेस जिस तरह से फ्रंट फुट पर खेली है, इसका चुनावी फायदा ज्यादा मिले या ना मिले। प्रियंका गांधी एक मजबूत नेता के तौर पर जरूर उभरी हैं।
अखिलेश यादव ने आज लखीमपुर में पीड़ित परिजनों से मुलाकात की।
सपा को मिला मुद्दा, पूरे प्रदेश में विजय यात्रा
समाजवादी पार्टी यूपी में मुख्य विपक्षी दल है। लिहाजा ऐसे मुद्दे को लेकर सपा का स्टैंड बहुत साफ था। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के लखीमपुर जाने के प्लान की आहट मिलते ही पुलिस ने उन्हें और दूसरे सपा नेताओं को नजरबंद कर लिया। अखिलेश नहीं माने और सड़क पर आकर कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। उधर, उनके घर के बाहर पुलिस की एक जीप में आग लगा दी गई।
एतड़के से प्रियंका लाइमलाइट में थीं, पर 10 बजते-बजते मीडिया के सारे कैमरे अखिलेश पर फोकस कर चुके थे। अखिलेश यादव ने मांग की कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को इस्तीफा देना चाहिए और पीड़ितों के परिजनों को 2 करोड़ रुपए की मदद दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं, लखनऊ में आवास से जब पुलिस ने अखिलेश को हिरासत में लिया तो सैकड़ों की संख्या जमे समर्थकों ने पुलिस की गाड़ी को घर लिया।
सपा के झंडे और टोपी के साथ पहुंचे लोगों ने एक तरफ जिंदाबाद के नारे लगाए तो दूसरी तरफ मीडिया के सामने झंडे भी लहराते दिखे, जिससे टीवी के सामने बैठी करोड़ों जनता को यह संदेश जाए कि सपा के लोग सड़क पर उतरकर किसानों का समर्थन कर रहे हैं। पार्टी इसे बड़ा मुद्दा बनाने में चूक गई। अब इसका पॉलिटिकल माइलेज लेने के लिए बड़ी तैयारी हो रही है। 12 अक्टूबर से अखिलेश यादव किसानों को साधने के लिए विजय यात्रा पर निकलेंगे।
बसपा अध्यक्ष मायावती और महासचिव सतीश मिश्र।
सोशल मीडिया तक सिमटी बसपा
बसपा को 2014 लोकसभा चुनाव के बाद 2017 विधानसभा और फिर 2019 लोकसभा चुनाव की तरह 2022 में जातिगत समीकरण के फेल होने का डर सता रहा है। केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद जातीय एंगल फेल रहे और राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़े और जीते गए।
ऐसे में मायावती की कोशिश है कि वह खुद को किसानों के समर्थन में खड़ा दिखाएं और अगले चुनाव में पार्टी के लिए जीत की राह प्रशस्त हो सके। हालांकि इस घटना को लेकर बसपा अन्य दलों की सक्रियता के सामने सबसे पीछे नजर आ रही है। लखीमपुर की घटना में बसपा धरातल पर कहीं नहीं दिखी, बस सोशल मीडिया पर ही सरकार के खिलाफ बयानबाजी और पीड़ितों को मदद करने की घोषणाएं करती नजर आई।
बसपा को पता है कि पश्चिमी यूपी के चुनाव में किसानों का वोट कितनी अहमियत रखता है, जिसके चलते 2019 के चुनाव में सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, श्रावस्ती व अमरोहा की सीट पर विजय श्री हासिल की थी। इस बार उसका धरातल पर कोई आंदोलन न होने से उसके कैडर और समर्थक उससे दूर जाते दिख रहे हैं। इसका ही नतीजा है कि 2007 के विधान सभा के चुनाव में 206 सीटें जीत सरकार बनाने वाली बसपा 2017 में 19 सीटों पर ही सिमट गई।
राकेश टिकैत को सरकार ने लखीमपुर जाने की इजाजत दी थी।
किसान आंदोलन की धार तराई में हुई तेज
लखीमपुर घटना के बाद एक बड़े तबके की दलील है कि प्रदेश सरकार ने मामले को बहुत जल्द निपटा दिया। साथ ही किसान आंदोलन की धार को कमजोर कर दिया। यहां तक की राकेश टिकैत की भूमिका को भी लेकर सवाल उठने लगा। हालांकि यह महज एक पहलू है। मंत्री के बेटे पर अभी तक कोई कार्रवाई न होने से इस घटना के बाद किसान आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद तराई के जिलों में भी फैल गया है।
महज 20 घंटे के बाद अंदर समझौता करने के सवाल पर भी संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना जवाब पेश किया। दलील दी कि शुरूआती मांग पूरी होने के बाद मृतक किसान का अंतिम संस्कार करना प्राथमिकता का काम था, इसलिए ऐसा किया गया। मंत्री को हटाने और उनके बेटे की गिरफ्तारी तक आंदोलन जारी रहेगा।
मंगलवार सुबह वायरल वीडियो, जिसमें थार गाड़ी किसानों पर चढ़ती नजर आती है, उसने सरकार की मुसीबत फिर से बढ़ा दी। यह सच है कि विपक्ष इस घटना का लाभ नहीं ले पाया लेकिन इससे संयुक्त किसान मोर्चा उन जिलों में भी पहुंच गया, जहां उसकी पैठ पहले से कमजोर थी।
आंकड़ों की बात करे तो उत्तर प्रदेश में करीब साढ़े तीन करोड़ किसान परिवार है। जिसमें करीब 16 करोड़ की आबादी आती है। अब इसमें 70 लाख से ज्यादा गन्ना किसान आते है। बताया जा रहा है कि इनके पास 3 करोड़ से ज्यादा वोट है।
लखीमपुर में 3 अक्टूबर को भड़की थी हिंसा
केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र के बेटे पर किसानों को कुचलने का आरोप है।
रविवार यानी 3 अक्टूबर को किसानों ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र का विरोध करते हुए काले झंडे दिखाए थे। इसी दौरान एक गाड़ी ने किसानों को कुचल दिया था। इससे 4 किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद भड़की हिंसा में आरोप है कि किसानों ने एक ड्राइवर समेत चार लोगों को पीट-पीटकर मार डाला था। इस हिंसा में एक पत्रकार भी मारा गया।
इस मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र समेत 15 लोगों के खिलाफ हत्या और आपराधिक साजिश का केस दर्ज किया गया है। सरकार और किसानों के बीच समझौता हुआ। सरकार ने मृतकों के परिवार को 45 लाख रुपए मुआवजा दिया। एक सदस्य को सरकारी नौकरी के साथ घटना की न्यायिक जांच और 8 दिन में आरोपियों की गिरफ्तारी का वादा भी किया गया है।
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