चांदनी चौक का नया रूप:देश के सबसे मशहूर बाजार की कहानी

लेखक और इतिहासकार सोहेल हाशमी की जुबानी; शाहजहां से अब तक कैसे बदला चांदनी चौक

देश के सबसे मशहूर और बड़े बाजार चांदनी चौक का कायाकल्प हो गया है। अगर आप पहले कभी दिल्ली स्थित चांदनी चौक बाजार आए होंगे तो आपका सामना भारी अव्यवस्थाओं, बेहिसाब ट्रैफिक, बिजली के तारों का जंजाल, खराब सड़कों, बदतर सीवेज से हुआ होगा। अब वो दिन गुजर गए। अब चांदनी चौक में पैदल घूमने के लिए बेतहाशा जगह है। बैठने की सुंदर व्यवस्था है। वॉशरूम से लेकर साफ-सफाई तक सारी सुविधाएं नए सिरे से तैयार हैं।

चांदनी चौक के इस सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट का काम मार्च 2019 में शुरू हुआ और कुछ दिन पहले 12 सितंबर 2021 को इसका उद्घाटन कर दिया गया। इस मौके पर हम आपको चांदनी चौक की सैर मुगल बादशाह शाहजहां के दौर से वर्तमान तक कराएंगे और हमें गाइड करेंगे दिल्ली के इतिहास, संस्कृति, स्थापत्य, खान-पान पर मजबूत पकड़ रखने वाले इतिहासकार और लेखक सोहेल हाशमी। इसके अलावा हम चांदनी चौक पर रहने वाले लोगों, कारोबारियों, पर्यटकों से भी बात करके उनके अनुभव जानेंगे।

लाल किले से फतेहपुरी मस्जिद तक फैला है आज का चांदनी चौक

इतिहासकार सोहेल हाशमी के साथ हमने चांदनी चौक की सैर लाल किले के सामने से शुरू की, यहीं से बाजार की शुरुआत होती है। लाल किले से फतेहपुरी मस्जिद तक 1.3 किमी की सड़क है। ये पूरी सड़क ही चांदनी चौक बाजार कहलाती है। सोहेल बताते हैं- शाहजहां ने दिल्ली शहर 1650 के आसपास बसाया था, तो दिल्ली के अलग-अलग इलाके अपने खानदान के लोगों को दे दिए थे। उन्हीं पर जिम्मेदारी थी कि वो उन इलाकों को विकसित करने की योजना पर काम करें।

सोहेल हाशमी इतिहासकार और लेखक हैं। दिल्ली के इतिहास, संस्कृति, स्थापत्य और खान-पान पर उनकी अच्छी पकड़ है।

शाहजहां की बेगम ने फतेहपुरी समेत कुछ मस्जिदें बनवाईं। शाहजहां की सबसे बड़ी बेटी बेगम जहांनारा को जिम्मेदारी दी गई कि वो शहर का सबसे बड़ा बाजार बनाएं। बेगम जहांनारा ने ही ये चांदनी चौक बड़ा बाजार बनाया। ये बाजार दिल्ली शहर को करीब दो हिस्सों में बांटता है। लाल किले से फतेहपुरी मस्जिद की तरफ बढ़ने पर बाईं तरफ जो इलाका है वो शहर का दो तिहाई हिस्सा था, दाईं तरफ का हिस्सा एक तिहाई हिस्सा था। चांदनी चौक बाजार सन 1659 में जब बना था तो इसमें 5 बाजार हुआ करते थे।

तब के चांदनी चौक के प्रमुख बाजार

1. उर्दू बाजार

2. दरीबा बाजार

3. कोतवाली बाजार

4. चांदनी चौक बाजार

5. फतेहपुरी बाजार

अब इन पाचों बाजारों को मिलाकर ही हम चांदनी चौक बाजार कहते हैं। लाल किले से लेकर दरीबा कलां तक जो बाजार था, वह उर्दू बाजार कहलाता था। इसे उर्दू बाजार इसलिए कहते थे क्योंकि यहां बीच में फौज की एक छावनी थी और फौज को तुर्की में उर्दू कहा जाता है। चांदनी चौक में लाल किले की तरफ से प्रवेश करने पर बाईं तरफ लाल पत्थर वाला जैन मंदिर है, 1920 तक इसे उर्दू मंदिर के नाम से जाना जाता था। आगे बढ़ने पर दरीबा कलां आता है जो अब जलेबी गली के नाम से मशहूर हो गया है।

सड़क के दोनों तरफ लाल बलुआ पत्थर के स्तंभ सरीखे बनवाए गए हैं। जिस पर पर्यटक, मुसाफिर और कारोबारी बैठ सकेंगे।

दरीबे के सामने से जो बाजार शुरू होता था वो दरीबा बाजार कहलाता था। इसके आगे बढ़ने पर शीशगंज गुरुद्वारा आता है। गुरुद्वारे के आगे जहां अब गुरुद्वारे की धर्मशाला है, वहां पहले शहर की कोतवाली हुआ करती थी। 10-15 साल पहले वो जगह खाली करके गुरुद्वारे को दे दी गई। यहीं से कोतवाली बाजार शुरू होता था। इसके आगे बढ़ने पर पुराना टाउनहॉल आता है। इसी जगह पर जहांनारा बेगम की सराय हुआ करती थी। ईरान, मध्य एशिया से जो सौदागर, कारोबारी आते थे वो यहीं ठहरते थे। इसके पीछे बेगम जहांनारा का बाग था, जो बाद में कंपनी बाग कहलाया और उसी जगह पर फिर गांधी पार्क बना।

‘चांदनी चौक’ नाम पड़ने की दिलचस्प कहानी

चांदनी चौक बाजार के बीचों-बीच से एक नहर बहा करती थी। नहर को रोककर बेगम जहांनारा ने एक तालाब बनवा लिया था। तालाब को भरने के बाद नहर लाल किले की तरफ से बाहर आती थी। जब चांदनी रात के दिन चांद की रोशनी तालाब पर पड़ती थी तो तब चांदनी रोशनी प्रतिबिंबित होकर आसपास की इमारतों पर पड़ती थी। इसलिए उस बाजार का नाम चांदनी चौक पड़ा। इसी के आगे बढ़ने पर हमें फतेहपुरी बाजार मिलता है।

शाहजहां ने 1639 में लालकिले की आधारशिला रखी और 1648 में नौरोज के दिन शहर का उद्घाटन किया गया। तब तक चांदनी चौक बाजार भी तैयार हो चुका था। बाजार में ग्राउंड फ्लोर पर दुकानें हुआ करती थीं और पहली मंजिल पर कोठियां और हवेलियां हुआ करती थीं। जब ये बाजार खुला, उस वक्त इसमें करीब 1300-1400 दुकानें थीं। अब तो सिर्फ मेन रोड पर ही इससे ज्यादा दुकानें हैं और मेन रोड से दोनों तरफ जो गलियां निकलती हैं, उसमें तो हजारों की तादाद में दुकानें हैं। ये दुनिया का तब का सबसे बड़ा बाजार था। एक जगह पर इतनी सारी दुकानें और व्यापार पूरी दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलता।

चांदनी चौक का फाउंटेन चौक, स्वर्ण गुंबदों वाला शीशगंज गुरुद्वारा। इस सड़क के आगे लाल किला है।

सौंदर्यीकरण में ऐतिहासिक संरक्षण पर कितना ध्यान?

जब भी किसी ऐतिहासिक स्थल, बाजार का संरक्षण किया जाता है, तो उसके कुछ साफ सिद्धांत हैं। सबसे अहम ये है कि जिस शक्ल में आपको ऐतिहासिक वस्तु मिली है, उसे उसी रूप में संरक्षित किया जाए। उसमें बाद में किए गए बदलावों को अलग किया जाए और जगह के वास्तविक रूप में बदलाव न किया जाए। जिस दौर में चांदनी चौक बना था उस दौर में लोग आम तौर पर पैदल चला करते थे। कुछ लोग जरूर बग्घियों, घोड़ों, हाथियों पर आया करते होंगे। जब ये बाजार तैयार हुआ था तो मुख्य सड़क की चौड़ाई करीब 37 मीटर हुआ करती थी, बीच में नहर थी और सड़क के दोनों तरफ पेड़ थे, लेकिन 1912 में वायसराय लॉर्ड हॉर्डिंग्स ने सड़क के किनारे के पेड़ कटवा दिए।

सौंदर्यीकरण में सड़कों का फर्श सीमेंट का बनाया गया है और लाल रंग दिया गया है। इस सड़क में अभी से दरारें आने लगी हैं। इसकी वजह ये है कि दिन में तो यहां पर हैवी व्हीकल नहीं आते, लेकिन रात में ट्रैफिक खोल दिया जाता है और बड़े ट्रकों की एंट्री होती है। सरकार ने जो फ्लोर बनवाया है, उस पर ये भारी भरकम ट्रक नहीं चल सकते हैं। सड़कों के किनारे लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। चांदनी चौक की पुरानी सड़क पर कभी लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया गया है। लाल बलुआ पत्थर एक नरम पत्थर है और सड़कों पर इस पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। सड़क के बीच में कुछ-कुछ ग्रेनाइट के पत्थर लगाए गए हैं, जबकि ग्रेनाइट पत्थर दिल्ली में होता ही नहीं है। मुगल काल की इमारतों में भी ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

सौंदर्यीकरण में सड़कों का फर्श सीमेंट का बनाया गया है और लाल रंग दिया गया है। सफाई की विशेष व्यवस्था की गई है। लोगों की सुविधा के लिए 4 शौचालय और 2 पुलिस पोस्ट बनाए गए हैं।

नए चांदनी चौक में क्या-क्या बदलाव हुए?

सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक वाहनों की आवाजाही पर बैनपूरी सड़क पर 124 CCTV कैमरे से निगरानीरात 12 बजे तक स्ट्रीट फूड की दुकानें खुली रखने की अनुमतिबिजली के लटकते तारों को अंडर ग्राउंड कर दिया गया हैलोगों की सुविधा के लिए 4 शौचालय और 2 पुलिस पोस्टवॉटर ATM, कूड़ेदान और बैठने के लिए बलुआ पत्थर की सीटें

लोगों का क्या कहना है?

चांदनी चौक में 25 साल से रिक्शा चलाने वाले हेमपाल बताते हैं कि सौंदर्यीकरण का जब से काम हुआ है तब से कमाई बढ़ गई है। इसकी वजह बताते हुए हेमराज कहते हैं कि सड़कें अच्छी हो गई हैं और ट्रैफिक नहीं रहता, इसलिए ज्यादा चक्कर भी लग पाते हैं और बाहरी ऑटो या कैब का भी कॉम्पिटिशन नहीं रहा। इसके अलावा घूमने-फिरने वाले लोग भी बढ़ गए हैं।

नए नियमों के मुताबिक दिन में सिर्फ रिक्शा चालकों को ही चांदनी चौक की सड़क पर चलने की अनुमति दी गई है। मोटर वाहनों पर रोक है।

फतेहपुरी मस्जिद के बाहर घड़ी की दुकान लगाने वाले मोहम्मद शाहिद बताते हैं, ‘जब से रेनोवेशन का काम हुआ है तब से सहूलियत ज्यादा हो गई है। पहले के मुकाबले ट्रैफिक कम लगता है। नुकसान ये हुआ है कि अब मोटर व्हीकल आने पर पाबंदी है, तो हमारा टू व्हीलर तक का कस्टमर नहीं आ पा रहा है, लेकिन टूरिस्ट वाला कस्टमर बढ़ा है।’

चांदनी चौक में माल ढोने वाली हाथगाड़ी चलाने वाले चंद्रप्रकाश तिवारी बताते हैं, ‘जब से नई सड़कें बन गई हैं तब से दिन में माल गाड़ी नहीं चलाने दिया जा रहा है। चांदनी चौक में ही 10 हजार लोग माल ढोने का काम करते हैं, उनके रोजगार पर संकट है। पुलिस कहती है कि इस पर दिन में हाथ ठेला नहीं चलेगा। अभी पुलिस सख्ती नहीं कर रही है, लेकिन जब सख्ती करेंगे तो क्या करेंगे?’

लहंगा, शेरवानी का कारोबार करने वाले बॉबी भाई की दुकान भी चांदनी चौक में है और वो रहते भी यहीं हैं। बॉबी बताते हैं, ‘चांदनी चौक को बाहर से चमका दिया गया है, लेकिन अंदर की गलियां अभी भी ज्यों की त्यों हैं, वहां कोई काम नहीं किया गया है। मेन रोड ऊंची कर दी गई है, अब अंदर की गलियों में सीवर की दिक्कत होगी। मेन रोड पर 700 दुकानें ही होंगी, लेकिन वहीं गलियों में 70 हजार दुकानें हैं। जरूरी है कि सरकार अंदर की व्यवस्थाएं भी ठीक कराए। सरकार को स्थाई पार्किंग के बारे में भी सोचना चाहिए।’

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